Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 52 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 52/ मन्त्र 12
    ऋषिः - सव्य आङ्गिरसः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    त्वम॒स्य पा॒रे रज॑सो॒ व्यो॑मनः॒ स्वभू॑त्योजा॒ अव॑से धृषन्मनः। च॒कृ॒षे भूमिं॑ प्रति॒मान॒मोज॑सो॒ऽपः स्वः॑ परि॒भूरे॒ष्या दिव॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । अ॒स्य । पा॒रे । रज॑सः । विऽओ॑मनः । स्वभू॑तिऽओजाः । अव॑से । धृ॒ष॒त्ऽम॒नः॒ । च॒कृ॒षे । भूमि॑म् । प्र॒ति॒ऽमान॑म् । ओज॑सः । अ॒पः । स्वरिति॑ स्वः॑ । प॒रि॒ऽभूः । ए॒षि॒ । आ । दिव॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमस्य पारे रजसो व्योमनः स्वभूत्योजा अवसे धृषन्मनः। चकृषे भूमिं प्रतिमानमोजसोऽपः स्वः परिभूरेष्या दिवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। अस्य। पारे। रजसः। विऽओमनः। स्वभूतिऽओजाः। अवसे। धृषत्ऽमनः। चकृषे। भूमिम्। प्रतिऽमानम्। ओजसः। अपः। स्व१रिति स्वः। परिऽभूः। एषि। आ। दिवम् ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 52; मन्त्र » 12
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 2

    व्याखान -

    हे परमैश्वर्यवन् परात्मन्! (अस्य व्योमनः पारे) आकाशलोक के पार में तथा भीतर (स्वभूत्योजा) अपने ऐश्वर्य और बल से विराजमान होके (मनः धृषन्) दुष्टों के मन का धर्षण - तिरस्कार करते हुए (रजस्) सब जगत् तथा विशेष हम लोगों के (अवसे) सम्यक् रक्षण के लिए (त्वम्) आप सावधान हो रहे हो, इससे हम निर्भय होके आनन्द कर रहे हैं, किञ्च (दिवम्) परमाकाश (भूमिम्) भूमि तथा (स्वः) सुखविशेष मध्यस्थलोक इन सबको (ओजसः) अपने सामर्थ्य से ही (चकृषे) रचके यथावत् धारण कर रहे हो, (परिभूः एषि) सबपर वर्त्तमान और सबको प्राप्त हो रहे हो, (आदिवम्) द्योतनात्मक सूर्यादि लोक (अप:)  अन्तरिक्षलोक और जल इन सबके प्रतिमान[परिमाण] - कर्त्ता आप ही हो तथा आप अपरिमेय हो, कृपा करके हमको अपना तथा सृष्टि का विज्ञान दीजिए ॥ १३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top