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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 19
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    1

    वि॒श्वत॑श्चक्षुरु॒त वि॒श्वतो॑मुखो वि॒श्वतो॑बाहुरु॒त वि॒श्वत॑स्पात्। सं बा॒हुभ्यां॒ धम॑ति॒ सं पत॑त्रै॒र्द्यावा॒भूमी॑ ज॒नय॑न् दे॒वऽएकः॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वत॑श्चक्षु॒रिति॑ वि॒श्वतः॑ऽचक्षुः। उ॒त। वि॒श्वतो॑मुख॒ इति॑ वि॒श्वतः॑ऽमुखः। वि॒श्वतो॑बाहु॒रिति॑ वि॒श्वतः॑ऽबाहुः। उ॒त। वि॒श्वत॑स्पात्। वि॒श्वतः॑ऽपा॒दिति॑ वि॒श्वतः॑ऽपात्। सम्। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। धम॑ति। सम्। पत॑त्रैः। द्यावा॒भूमी॒ इति॒ द्यावा॒भूमी॑। ज॒नय॑न्। दे॒वः। एकः॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् । सम्बाहुभ्यान्धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देवऽएकः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वतश्चक्षुरिति विश्वतःऽचक्षुः। उत। विश्वतोमुख इति विश्वतःऽमुखः। विश्वतोबाहुरिति विश्वतःऽबाहुः। उत। विश्वतस्पात्। विश्वतःऽपादिति विश्वतःऽपात्। सम्। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। धमति। सम्। पतत्रैः। द्यावाभूमी इति द्यावाभूमी। जनयन्। देवः। एकः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 19
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    व्याखान -

    (विश्वतः चक्षुः) विश्व [सब जगत् में] जिसका चक्षु [दृष्टि] है, जिससे अदृष्ट कोई वस्तु नहीं है तथा जिसके (विश्वतोमुखः विश्वतः बाहुः उत विश्वतः पात्) सर्वत्र मुख, बाहु, पग तथा अन्य श्रोत्रादि भी हैं, अर्थात् वही सर्वदृक्, सर्ववक्ता, सर्वाधारक और सर्वगत, व्यापक ईश्वर है। उसी से जो डरेगा वही धर्मात्मा होगा, अन्यथा कभी नहीं । वही विश्वकर्मा परमात्मा एक ही और अद्वितीय है। (द्यावाभूमी संजनयन्) पृथिवी से लेके स्वर्गपर्यन्त जगत् का कर्त्ता है, जिस-जिसने जैसा- जैसा पाप वा पुण्य किया है, उस-उसको न्यायकारी, दयालु जगत्पिता पक्षपात छोड़के (बाहुभ्याम्) अनन्त बल और पराक्रम- इन दोनों बाहुओं से सम्यक् (पतत्रैः) प्राप्त होनेवाले सुख-दुःख फल दान से सब जीवों को (धमति) [धमन-कम्पन] यथायोग्य जन्ममरणादि को प्राप्त करा रहा है। उसी निराकार, अज, अनन्त, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयामय, ईश्वर से अन्य को कभी न मानना चाहिए । वही याचनीय, पूजनीय, हमारा प्रभु स्वामी और इष्टदेव है, उसी से हमको सुख होगा, अन्य से कभी नहीं ॥ ३४ ॥

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