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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 1
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    ऋचं॒ वाचं॒ प्र प॑द्ये॒ मनो॒ यजुः॒ प्र प॑द्ये॒ साम॑ प्रा॒णं प्र प॑द्ये॒ चक्षुः॒ श्रोत्रं॒ प्र प॑द्ये। वागोजः॑ स॒हौजो॒ मयि॑ प्राणापा॒नौ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋच॑म्। वाच॑म्। प्र। प॒द्ये॒। मनः॑। यजुः॑। प्र। प॒द्ये॒। साम॑। प्रा॒णम्। प्र। प॒द्ये॒। चक्षुः॑। श्रोत्र॑म्। प्र। प॒द्ये॒ ॥ वाक्। ओजः॑। स॒ह। ओजः॑। मयि॑। प्रा॒णा॒पा॒नौ ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋचँवाचम्प्र पद्ये मनो यजुः प्र पद्ये साम प्राणम्प्र पद्ये चक्षुः श्रोत्रम्प्र पद्ये । वागोजः सहौजो मयि प्राणापानौ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋचम्। वाचम्। प्र। पद्ये। मनः। यजुः। प्र। पद्ये। साम। प्राणम्। प्र। पद्ये। चक्षुः। श्रोत्रम्। प्र। पद्ये॥ वाक्। ओजः। सह। ओजः। मयि। प्राणापानौ॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 1
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    व्याखान -

    व्याख्यान – हे करुणाकर परमात्मन्! आपकी कृपा से मैं (ऋचं वाचं प्रपद्ये) ऋग्वेदादिज्ञानयुक्त [श्रवणयुक्त] होके उसका वक्ता होऊँ तथा (मनः यजुः, प्रपद्ये) यजुर्वेदाभिप्रायार्थसहित सत्यार्थमननयुक्त मन को प्राप्त होऊँ । ऐसे ही (साम प्राणं प्रपद्ये) सामवेदार्थनिश्चय निदिध्यासनसहित प्राण को सदैव प्राप्त होऊँ । (चक्षुश्रोत्रं प्रपद्ये) मैं वेदानुकूल श्रवणशक्ति से अथर्ववेद का चिन्तन-मनन सदा करूँ । (वागोजः)  वाग्बल, वक्तृत्वबल, मनो- विज्ञानबल मुझको आप देवें । अन्तर्यामी आपकी कृपा से मैं इन सबको यथावत् प्राप्त होऊँ। (सहौजः)  शरीरबल, नैरोग्य, दृढ़त्वादि गुणों को मैं आपके अनुग्रह से सदैव प्राप्त होऊँ (मयि, प्राणापानौ) हे सर्वजगज्जीवनाधार ! प्राण [जिससे कि ऊर्ध्व चेष्टा होती है] और अपान [अर्थात् जिससे नीचे की चेष्टा होती है] - ये दोनों मेरे शरीर में सब इन्द्रिय, सब धातुओं की शुद्धि करनेवाले तथा नैरोग्य, बल, पुष्टि, सरलगति करनेवाले, स्थिर आयुवर्धक और मर्मस्थलों की रक्षा करनेवाले हों, उनके अनुकूल प्राणादि को प्राप्त होके आपकी कृपा से हे ईश्वर ! सदैव सुखी होके आपकी आज्ञा और उपासना में तत्पर रहूँ ॥५॥ "

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