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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 28/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - उलूखलः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ॒य॒जी वा॑ज॒सात॑मा॒ ता ह्यु१॒॑च्चा वि॑जर्भृ॒तः। हरी॑इ॒वान्धां॑सि॒ बप्स॑ता॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒य॒जी इत्या॑ऽय॒जी । वा॒ज॒ऽसात॑मा । ता । हि । उ॒च्चा । वि॒ऽज॒र्भृ॒तः । हरी॑ इ॒वेति॒ हरी॑ऽइव । अन्धां॑सि । बप्स॑ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयजी वाजसातमा ता ह्यु१च्चा विजर्भृतः। हरीइवान्धांसि बप्सता॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आयजी इत्याऽयजी। वाजऽसातमा। ता। हि। उच्चा। विऽजर्भृतः। हरी इवेति हरीऽइव। अन्धांसि। बप्सता॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 28; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मुसलोलूखले कीदृशस्त इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    यावायजी वाजसातमौ स्तस्तौ स्त्रीपुरुषावन्धांसि बप्सन्तौ भक्षयन्तौ हरीइव मुसलोलूखलादिभ्य उच्चा उत्कृष्टानि कार्याणि विजर्भृतः॥७॥

    पदार्थः

    (आयजी) समन्ताद् यज्यन्ते सङ्गम्यन्ते पदार्था याभ्यां तौ स्त्रीपुरुषौ। अत्र बाहुलकादौणादिकः करणकारके इः प्रत्ययः। (वाजसातमा) वाजान् युद्धसमूहान् सनन्ति सम्भज्य विजयन्ते याभ्यां तावतिशायितौ। अत्र सर्वत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (ता) तौ (हि) खलु (उच्चा) उत्कृष्टानि कार्याणि। अत्र शेश्छन्दसि इति शेर्लोपः। (विजर्भृतः) विविधं धरतः (हरीइव) यथाऽश्वौ तथा (अन्धांसि) अन्नानि। अन्ध इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) (बप्सता) बप्सन्तौ। अत्र भसभर्त्सनदीप्योरित्यस्माल्लटः शत्रादेशः। घसिभसोर्हलि च। (अष्टा०६.४.१००) अनेनोपधालोपः सुगममन्यत्। भस धातोर्भर्त्सन इत्यर्थो नवीनो भक्षण इति प्राचीनोऽर्थः॥७॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा भक्षणकर्त्तारावश्वौ यानादीनि वहतस्तथैव मुसलोलूखले बहूनि विभागकरणादीनि कार्याणि प्रापयत इति॥७॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर मुसल और उलूखल कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    (आयजी) जो अच्छे प्रकार पदार्थों को प्राप्त होनेवाले (वाजसातमा) संग्रामों को जीतते हैं (ता) वे स्त्री पुरुष (अन्धांसि) अन्नों को (बप्सता) खाते हुए (हरी) घोड़ों के (इव) समान उलूखल आदि से (उच्चा) जो अति उत्तम काम हैं, उनको (विजर्भृतः) अनेक प्रकार से सिद्धकर धारण करते रहें॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे खानेवाले घोड़े रथ आदि को वहते हैं, वैसे ही मुसल और ऊखरी से पदार्थों को अलग-अलग करने आदि अनेक कार्यों को सिद्ध करते हैं॥७॥

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    विषय

    फिर मुसल और उलूखल कैसे हैं, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    यौ आयजी वाजसातमौ स्तः तौ स्त्रीपुरुषौ अन्धांसि बप्सन्तौ भक्षयन्तौ हरी इव मुसल उलूखलादिभ्य उच्चा उत्कृष्टानि कार्याणि विजर्भृतः॥७॥

    पदार्थ

    (यौ)=जो, (आयजी) समन्ताद् यज्यन्ते सङ्गम्यन्ते पदार्था याभ्यां तौ स्त्रीपुरुषौ=जो अच्छे प्रकार सङ्गति करते हुए पदार्थों को प्राप्त करते हैं, वे स्त्री और पुरुष, (वाजसातमौ) वाजान् युद्धसमूहान् सनन्ति सम्भज्य विजयन्ते याभ्यां तावतिशायितौ=संग्रामों को जीतते हैं और जो श्रेष्ठ, (स्तः)=हैं, (तौ)=वे दोनों, (स्त्रीपुरुषौ)=स्त्री और पुरुष, (अन्धांसि) अन्नानि=अन्नों को, (बप्सन्तौ) बप्सता=खाते हुए, (हरीइव) यथाऽश्वौ तथा=घोड़ों के समान, (मुसल)=मूसल, (उलूखलादिभ्य) ओखली आदि से, (उच्चा) उत्कृष्टानि कार्याणि=जो उत्कृष्ट काम हैं, उनको (विजर्भृतः) विविधं धरतः=अनेक प्रकार से सिद्ध कर धारण करते रहें॥७॥ 

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे खानेवाले घोड़े रथ आदि को ढोते हैं, वैसे ही मूसल और ओखल से टुकड़े करने आदि बहुत कार्यों को सिद्ध करते हैं॥७॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (यौ) जो (आयजी) अच्छे प्रकार सङ्गति करते हुए पदार्थों को प्राप्त करते हैं, वे स्त्री और पुरुष, (वाजसातमौ)  संग्रामों को जीतते हैं और जो श्रेष्ठ, (अन्धांसि)  अन्नों को (बप्सन्तौ) खाते हुए (हरीइव) घोड़ों के समान हैं। वे (मुसल) मूसल और (उलूखलादिभ्य) ओखली आदि से, (उच्चा) जो  उत्कृष्ट काम हैं, उनको  (विजर्भृतः) अनेक प्रकार से सिद्ध कर धारण करते रहें॥७॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (आयजी) समन्ताद् यज्यन्ते सङ्गम्यन्ते पदार्था याभ्यां तौ स्त्रीपुरुषौ। अत्र बाहुलकादौणादिकः करणकारके इः प्रत्ययः। (वाजसातमा) वाजान् युद्धसमूहान् सनन्ति सम्भज्य विजयन्ते याभ्यां तावतिशायितौ। अत्र सर्वत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (ता) तौ (हि) खलु (उच्चा) उत्कृष्टानि कार्याणि। अत्र शेश्छन्दसि इति शेर्लोपः। (विजर्भृतः) विविधं धरतः (हरीइव) यथाऽश्वौ तथा (अन्धांसि) अन्नानि। अन्ध इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) (बप्सता) बप्सन्तौ। अत्र भसभर्त्सनदीप्योरित्यस्माल्लटः शत्रादेशः। घसिभसोर्हलि च। (अष्टा०६.४.१००) अनेनोपधालोपः सुगममन्यत्। भस धातोर्भर्त्सन इत्यर्थो नवीनो भक्षण इति प्राचीनोऽर्थः॥७॥
    विषयः- पुनर्मुसलोलूखले कीदृशस्त इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः- यावायजी वाजसातमौ स्तस्तौ स्त्रीपुरुषावन्धांसि बप्सन्तौ भक्षयन्तौ हरीइव मुसलोलूखलादिभ्य उच्चा उत्कृष्टानि कार्याणि विजर्भृतः॥७॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्रोपमालङ्कारः। यथा भक्षणकर्त्तारावश्वौ यानादीनि वहतस्तथैव मुसलोलूखले बहूनि विभागकरणादीनि कार्याणि प्रापयत इति॥७॥ 

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    विषय

    'यज्ञ - शक्ति' व 'उच्च विहरण'

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार सोम का प्राणसाधना द्वारा शरीर में व्यापन करनेवाले पति - पत्नी (आयजी) - सोम को सर्वथा अपने साथ संगत करनेवाले व यज्ञशील होते हैं । 

    २. इस सोम को अपने साथ सङ्गत करने के कारण ही ये (वाजसातमा) - अधिक - से - अधिक शक्ति का सम्भजन करनेवाले होते हैं , अर्थात् शक्तिशाली बनते हैं । 

    ३. शक्ति - सम्पन्न बनकर (ता) - वे (हि) - निश्चय से (उच्चा विजर्भृतः) - उत्कृष्ट विहार करते हैं , अर्थात् उस समय इनका प्रत्येक कार्य उत्कर्ष को लिये हुए होता है । इनके कार्यों में नीचता [meanness] नहीं होती , इनके कर्म उदार ही होते हैं । 

    ४. इस प्रकार ये उत्साह व शीघ्रता से कार्य करते हैं (इव) - जैसे (अन्धांसि) - अन्नों को (बप्सता) - भक्षण करनेवाले (हरी) - घोड़े । जिन घोड़ों को अन्न व भोजन ठीक मिलता है वे जिस प्रकार खुब हृष्ट - पुष्ट होकर वेग से मार्ग का आक्रमण करते हैं , उसी प्रकार ये यज्ञशील , शक्तिसम्पन्न , उत्कृष्ट विहरण करनेवाले पुरुष अनालस्य होकर क्रियाशील होते हैं । 

    भावार्थ

    भावार्थ - घर में पति - पत्नी यज्ञशील , शक्तिसम्पन्न व उत्कृष्ट कर्मों में विहरण करनेवाले बनें । 

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    विषय

    राजा नायक को उपदेश ।

    भावार्थ

    ( अन्धांसि ) नाना प्रकार के जौं चने आदि को ( बप्सता ) खाने वाले, (आयजी) परस्पर संगत और (वाज-सातमा) वेग से जाने वाले ( हरी इव ) जैसे दो घोड़े रथ को उठाते हैं उसी प्रकार ( आयजी ) एक साथ संगत होने, यज्ञ करने और दान देने वाले और ( वाज-सातमा ) ऐश्वर्य का उपभोग करने वाले स्त्री पुरुष (ता हि) वे दोनों ही ( उच्चा ) ऊँचे पद गृहस्थादि के कार्य-भार को ( विजर्भृतः ) उठाते हैं। और दोनों ( अन्धांसि बप्सता ) नाना अन्नों का उपभोग करते हैं। इसी प्रकार ऊखल मूसल भी ( आयजी ) परस्पर संगत, ( वाजसातमा ) अन्न देने वाले ऊँचे रक्खे जाते हैं वे भी (अन्धांसि बप्सता ) कूटते समय मानो अन्न खाते और औरों को कूटकर खिलाते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप आजीगर्तिऋषिः ॥ इन्द्रयज्ञसोमा देवताः ॥ छन्दः—१–६ अनुष्टुप् । ७–९ गायत्री ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे घोडे, रथ इत्यादीचे वहन करतात तसेच मुसळ व उखळातून पदार्थांना वेगवेगळे करणे इत्यादी क्रिया सिद्ध केल्या जातात. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Worshipful men and women, heroes of the creative battles of life, holding up their own yajnic achievements high, enjoy the delicacies of life and good health as the sun rays drink up the juices of herbs.

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    Subject of the mantra

    Then, what kind of the pestle and pounder are? This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (yau)=Those, (āyajī) =Men and women, who receive the substances through good association, (vājasātamau)=win the battles and who are best, (andhāṃsi)=the food, (bapsantau)=eating, (harīiva)=are like horses, [ve]=they, (musala)=the pestle, [aura]=and, (ulūkhalādibhya)=by the pounder etc. (uccā) =which are excellent works, to them, (vijarbhṛtaḥ)=possess after being accomplished by many ways.

    English Translation (K.K.V.)

    hose who have good associations and receive things, they men and women win the battles and those who eat the best of grains are like horses. The excellent works that they do with the help of pestle and pounder etc., keep them perfect in many ways.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is simile as a figurative in this mantra. Just as eating horses carry chariots etc., similarly grinding with pestles and pounders accomplishes many tasks.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How are mortar and pestle is further taught in the seventh Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Men and women who mix or collect various articles and jointly conquer many battles, perform and uphold many sublime acts with the proper use of the mortar and pestle while taking proper and nourishing food. They act like two horses.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (आयजी) समन्ताद् यज्यन्ते संगम्यन्ते पदार्था याभ्यां तो स्त्रीपुरुषौ ।। = Men and women who collect various articles. अत्र बाहुलकात् औणादिक: करणकारक इ: प्रत्ययः ( वाजसातमा ) वाजान् युद्धसमूहान सनन्ति संभजन्ते विजयन्ते याभ्यां तावतिशयितौ । अत्र सर्वत्र सुपां सुलुक् इत्याकारादेशः।। = Who conquer jointly. (विजर्भृत:) विविधं भरतः = Uphold variously. भृंञ्-धारणपोषणयोः (हरी इव) यथा अश्वौ तथा = like the horses.(बप्सतः) भक्षयन्तौ = Eating.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is upamalankara or simile used here. As two horses which oat well draw a chariot, in the same manner. the mortar and pestle accomplish many works like dividing and grinding etc.

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