ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 126/ मन्त्र 4
ऋषिः - कुल्मलबर्हिषः शैलूषिः, अंहोभुग्वा वामदेव्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराड्बृहती
स्वरः - मध्यमः
यू॒यं विश्वं॒ परि॑ पाथ॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । यु॒ष्माकं॒ शर्म॑णि प्रि॒ये स्याम॑ सुप्रणीत॒योऽति॒ द्विष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयू॒यम् । विश्व॑म् । परि॑ । पा॒थ॒ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । यु॒ष्माकम् । शर्म॑णि । प्रि॒ये । स्याम॑ । सु॒ऽप्र॒नी॒त॒यः॒ । अति॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यूयं विश्वं परि पाथ वरुणो मित्रो अर्यमा । युष्माकं शर्मणि प्रिये स्याम सुप्रणीतयोऽति द्विष: ॥
स्वर रहित पद पाठयूयम् । विश्वम् । परि । पाथ । वरुणः । मित्रः । अर्यमा । युष्माकम् । शर्मणि । प्रिये । स्याम । सुऽप्रनीतयः । अति । द्विषः ॥ १०.१२६.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 126; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वरुणः-मित्रः-अर्यमा) पूर्वोक्त वरुण, मित्र, अर्यमा (यूयं विश्वं परि पाथ) तुम सब सब ओर से रक्षा करो (युष्माकम्) तुम्हारे (प्रिये शर्मणि) अच्छे सुख शरण में (सुप्रणीतयः) शोभन आचरणवाले (द्विषः-अति) द्वेष करनेवाले विरोधियों को अतिक्रमण करके-दूर करके (स्याम) समर्थ होवें ॥४॥
भावार्थ
उन्हीं पूर्वोक्त मित्रादियों की अनुकूलता में सदाचारी बने हुए द्वेष करनेवाले विरोधियों से बचकर सुरक्षित रहें ॥४॥
विषय
उत्तम भावनाओं से प्रेरित होकर [चलें]
पदार्थ
[१] (वरुणः मित्र अर्यमा) = वरुण, मित्र और अर्यमा (यूयम्) = आप (विश्वम्) = सम्पूर्ण जगत् को (परिपाथ) = समन्तात् रक्षित करते हो । 'वरुण' हमें क्रोध से बचाता है, 'मित्र' काम के आक्रमण से हमारा रक्षण करता है और 'अर्यमा' हमें लोभ में नहीं फँसने देता। [२] हे वरुण, मित्र और अर्यमा! हम (युष्माकम्) = आपकी (प्रिये) = प्रिय (शर्मणि) = शरण में प्राप्त होनेवाले सुख में (स्याम) = हों । (सुप्रणीतयः) = हम उत्तम प्रणयनोंवाले हों। हमें आप सदा उत्तम मार्गों से ले चलिये । (द्विषः अति) = हमें ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध की भावनाओं से पार ही करिये।
भावार्थ
भावार्थ - क्रोध, काम व लोभ से दूर रहते हुए हम सुरक्षित हों। हम कामादि से दूर होकर उत्तम भावनाओं से ही कार्यों में प्रवृत्त हों । द्वेषों से सदा दूर रहें।
विषय
विश्वेदेव। पाप से रक्षा। सत्संग द्वारा सज्जनों की कृपा से पाप से पार होना, सब बुराइयों से छूटना।
भावार्थ
(वरुणः मित्रः अर्यमा) श्रेष्ठ राजा, स्नेही ब्राह्मण वर्ग, सूर्यवत् ये (यूयं विश्व परि पाथ) आप सब लोग समस्त जगत् की परि पाथ सब प्रकार से रक्षा करते हो। (युष्माकं प्रिये शर्मणि) आप लोगों के सर्वप्रिय शरणीय सुख में हम (सु-प्रणीतयः) उत्तम नीति, व्यावहार वाले होकर (द्विषः अति स्याम) भीतरी और बाह्य शत्रुओं के पार हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कुल्मलबर्हिषः शैलुषिरंहोमुग्वा वामदेव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५, ६ निचृद् बृहती। २–४ विराड् वृहती। ७ बृहती। ८ आर्चीस्वराट् त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वरुणः-मित्रः-अर्यमा यूयं विश्वं परि पाथ) हे वरुण ! मित्र ! अर्यमन् ! यूयं सर्वेऽस्मान् परिरक्षथ (युष्माकं प्रिये शर्मणि) युष्माकं प्रियसुखशरणे (सुप्रणीतयः) शोभनप्रणयनवन्तः-सदाचरणवन्तः (द्विषः-अति-स्याम) द्वेष्टॄन् विरोधिनोऽतिक्रम्य परास्य समर्था भवेम ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Mitra, Varuna and Aryama, you protect, guide and lead the world to their goal of success and fulfilment. We pray, under the loving care, security and felicity of your law and order, let us advance to our cherished goal, pursuing noble ethics and policies beyond the wicked.
मराठी (1)
भावार्थ
त्याच पूर्वोक्त मित्र इत्यादींच्या अनुकूलतेमुळे सदाचारी बनलेल्या लोकांनी द्वेष करणाऱ्या विरोधकापासून बचाव करून सुरक्षित राहावे. ॥४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal