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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 137/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सप्त ऋषय एकर्चाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    आप॒ इद्वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः । आप॒: सर्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आपः॑ । इत् । वा॒ । ऊँ॒ इति॑ । भे॒ष॒जीः । आपः । अ॒मी॒व॒ऽचात॑नीः । आपः॑ । सर्व॑स्य । भे॒ष॒जीः । ताः । ते॒ । कृ॒ण्व॒न्तु॒ । भे॒ष॒जम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आप इद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः । आप: सर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आपः । इत् । वा । ऊँ इति । भेषजीः । आपः । अमीवऽचातनीः । आपः । सर्वस्य । भेषजीः । ताः । ते । कृण्वन्तु । भेषजम् ॥ १०.१३७.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 137; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (आपः) जल (इत्-वै-उ) ही निश्चय से (भेषजीः) स्नान पान के द्वारा स्वास्थ्यकर हैं (आपः) जल (अमीवचातनीः) रोगनाशक हैं (आपः सर्वस्य भेषजीः) जल सबकी भेषज हैं (ताः-ते भेषजं कृण्वन्तु) वे जल तेरे लिये स्वास्थ्य करें ॥६॥

    भावार्थ

    जल स्नान और पान के द्वारा सब रोगों के ओषध हैं, स्वास्थ्यकर रसायनरूप हैं ॥६॥

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    विषय

    सर्वदोष हर 'आप' [जल]

    पदार्थ

    [१] (आप:) = जल (इद वा उ) = निश्चय से (भेषजी:) = औषध हैं। ये (आपः) = जल (अमीव- चातनी:) = रोगों का विनाश करनेवाले हैं। (आप:) = जल (सर्वस्य भेषजी:) = सब रोगों के औषध हैं। (ता) = वे जल (ते) = तेरे लिए (भेषजं कृण्वन्तु) = औषध को करें। [२] जल को उबालने से सोलह ग्राम जल का पन्द्रह ग्राम रह जाए तो इस उबले हुए जल में शक्ति द्विगुणित हो जाती है। चौदह ग्राम रह जाने पर यह शक्ति चौगुणी हो जाती है और तेरह ग्राम रह गया जल नवगुण शक्तिवाला हो जाता है। वस्तुतः वह जल [जल घातने] सब रोगों का घात करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जल के अन्दर सब औषध हैं। ये जल मनुष्य को नीरोग बनाते हैं । सूचना – [क] प्रातः काल का जलपान, [ख] भोजन में बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीना, [ग] पीने के लिए गरम [विशेषतः सर्दी में] स्नान के लिए ठण्डा पानी लेना [सादा], [घ] जब भी पीना धीमे-धीमे पीना। ये बातें बड़ी उपयोगी सिद्ध होंगी।

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    विषय

    रोगनाशक जलों का वर्णन।

    भावार्थ

    (आपः इत् वा उ) जल ही (भेषजीः) समस्त रोगों को दूर करने वाले और (अमीव-चातनीः) रोग-कारणों को नाश करने वाले हैं। (आपः सर्वस्य भेषजीः) जल सब रोगों के औषध हैं (ताः ते भेषजं कृण्वन्तु) वे तेरे लिये रोग नाशक हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः सप्त ऋषय एकर्चाः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, ४, ६ अनुष्टुप्। २, ३, ५, ७ निचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (आपः-इत् वै-उ-भेषजीः) जलानि स्नानपानाभ्यां स्वास्थ्यकराणि सन्तु (आपः-अमीवचातनीः) जलानि रोगनाशकानि “चातयतिर्नाशने” [निरु० ६।३०] (आपः सर्वस्य भेषजीः) जलानि सर्वस्य रोगस्य भेषजानि (ताः ते भेषजं कृण्वन्तु) तानि जलानि तुभ्यं भेषजं स्वास्थ्यं कुर्वन्तु ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All waters and other liquid energies are sanatives. Waters are cleansers and destroyers of disease and sickness. Waters are medicaments for all living beings. O man, O sufferer, let the waters cure and wash you clean as natural medicine.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जलस्नान व पान सर्व रोगांची औषधी आहे. स्वास्थ्य देणारे रसायन आहे. ॥६॥

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