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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 14/ मन्त्र 15
    ऋषिः - यमः देवता - यमः छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    य॒माय॒ मधु॑मत्तमं॒ राज्ञे॑ ह॒व्यं जु॑होतन । इ॒दं नम॒ ऋषि॑भ्यः पूर्व॒जेभ्य॒: पूर्वे॑भ्यः पथि॒कृद्भ्य॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑ । मधु॑मत्ऽतमम् । राज्ञे॑ । ह॒व्यम् । जु॒हो॒त॒न॒ । इ॒दम् । नमः॑ । ऋषि॑ऽभ्यः । पू॒र्व॒ऽजेभ्यः॑ । पूर्वे॑भ्यः । प॒थि॒कृत्ऽभ्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय मधुमत्तमं राज्ञे हव्यं जुहोतन । इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्य: पूर्वेभ्यः पथिकृद्भ्य: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय । मधुमत्ऽतमम् । राज्ञे । हव्यम् । जुहोतन । इदम् । नमः । ऋषिऽभ्यः । पूर्वऽजेभ्यः । पूर्वेभ्यः । पथिकृत्ऽभ्यः ॥ १०.१४.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 14; मन्त्र » 15
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यमाय राज्ञे मधुमत्तमं हव्यं जुहोतन) पूर्वोक्त सर्वत्र राजमान समय को अनुकूल बनाने के लिये मधु या मिष्ट से युक्त हवि का होम करना चाहिये (पथिकृद्भ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः ऋषिभ्य इदं नमः) धर्म-मार्ग सम्पादन करनेवाले पूर्वजों की अपेक्षा भी जो पूर्व ऋषि हो चुके हैं, उनके लिये यह तीन मन्त्रों में कहा हुआ सोम घृत-मधु-सहित हवि का होमरूप कर्म नम्रतारूप या शिष्टाचाररूप हो ॥१५॥

    भावार्थ

    समय को उपयोगी बनाने के लिये मधु या मिष्ट वस्तु से युक्त हवि का होम करना चाहिये। इस प्रकार सोमादि ओषधि का रस घृत और मधु से मिश्रित हवियों का हवन करना आदि उत्तम कर्म पुराने ऋषियों के लिये शिष्टाचार का अनुष्ठान भी समझना चाहिये ॥१५॥

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    विषय

    नमस्कार

    पदार्थ

    [१] (यमाय) = सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नियमन करनेवाले, (राज्ञे) = संसार को व्यवस्थित [regulated] करनेवाले उस प्रभु की प्राप्ति के लिये (मधुमत्तमं हव्यम्) = अत्यन्त माधुर्य से युक्त हव्य को (जुहोतन) = अपने में आहुत करो। अर्थात् हम मधुरतम वाणी का ही प्रयोग करें, और सदा त्यागपूर्वक उपभोग करें, यज्ञशेष का ही सेवन करनेवाले बनें। [२] इस प्रभु की प्राप्ति के लिये ही हम उन (ऋषिभ्यः) = प्रभु का साक्षात्कार करनेवाले ज्ञानियों के लिये (इदं नमः) = इस नमस्कार को करते हैं जो ज्ञानी (पूर्वजेभ्यः) = हमारे पूर्वज हैं, आयुष्य में भी हमारे से बड़े हैं, (पूर्वेभ्यः) = अपना पूरण करनेवाले हैं, और (पथिकृद्भ्यः) = हमारे लिये मार्ग को बनानेवाले हैं। इन ऋषियों का अनुसरण करते हुए हम पथभ्रष्ट नहीं होते ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि हम [क] अत्यन्त मधुर बनें, [ख] हव्य का ही सेवन करें, [ग] मार्गदर्शक ज्ञानियों का सत्कार करें।

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    विषय

    राजा और ज्ञानदर्शी विद्वानों के प्रति सत्कार।

    भावार्थ

    (यमाय राज्ञे) नियन्ता व्यवस्थापक (राज्ञे) राजा के लिये (मधुमत्तमं) अति मधुर, अन्नयुक्त (हव्यं) ग्रहण करने योग्य पदार्थ (जुहोतन) प्रदान करो। (ऋषिभ्यः) ऋषियों के लिये यह आदर और (पूर्वजेभ्यः) पूर्वज और (पूर्वेभ्यः) पूर्व के (पथिकृद्भयः) मार्ग उपदेश करने वालों को (इदं नमः) यह इस प्रकार अन्न, वचनादि द्वारा आदर-सत्कार प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः॥ देवताः–१–५, १३–१६ यमः। ६ लिंगोक्ताः। ७-९ लिंगोक्ताः पितरो वा। १०-१२ श्वानौ॥ छन्द:- १, १२ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ३, ७, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ४, ६ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ८ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। १० त्रिष्टुप्। १३, १४ निचृदनुष्टुप्। १६ अनुष्टुप्। १५ विराड् बृहती॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यमाय राज्ञे मधुमत्तमं हव्यं जुहोतन) पूर्वोक्ताय सर्वत्र राजमानाय कालाय मधुमत्तमं मधुररसयुक्तं होतव्यं वस्तु जुहुत (पथिकृद्भ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः-ऋषिभ्यः-इदं नमः) धर्ममार्गसम्पादकेभ्यः पूर्वजापेक्षया पूर्वेभ्यः प्राक्तनेभ्यः ऋषिभ्य इदं मन्त्रत्रयोक्तं सोमघृतमधुमिश्रं हविष्प्रदानं नम्रत्वं शिष्टाचारोऽस्तु, अस्तीत्यर्थः ‘आम्राश्च सिक्ताः पितरश्च प्रीणिताः’ इतिवत् ॥१५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Offer the sweetest and holiest honeyed oblations to Yama, Lord of time and refulgent sovereign of the cosmic order. This homage is in honour of the sagely seers, the forefathers, the ancients who carved the paths of life for us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    काळाचा सदुपयोग करून घेण्यासाठी मध किंवा मधुर वस्तूने युक्त हवीचा होम केला पाहिजे. या प्रकारे सोम इत्यादी औषधीचा रस घृत व मधाने मिश्रित हवीचे हवन करणे इत्यादी उत्तम कर्म जुन्या ऋषींसाठी शिष्टाचाराचे अनुष्ठान समजले पाहिजे. ॥१५॥

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