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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 30/ मन्त्र 8
    ऋषिः - कवष ऐलूषः देवता - आप अपान्नपाद्वा छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्रास्मै॑ हिनोत॒ मधु॑मन्तमू॒र्मिं गर्भो॒ यो व॑: सिन्धवो॒ मध्व॒ उत्स॑: । घृ॒तपृ॑ष्ठ॒मीड्य॑मध्व॒रेष्वापो॑ रेवतीः शृणु॒ता हवं॑ मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । अ॒स्मै॒ । हि॒नो॒त॒ । मधु॑ऽमन्तम् । ऊ॒र्मिम् । गर्भः॑ । यः । वः॒ । सि॒न्ध॒वः॒ । मध्वः॑ । उत्सः॑ । घृ॒तऽपृ॑ष्ठम् । ईड्य॑म् । अ॒ध्व॒रेषु॑ । आपः॑ । रे॒व॒तीः॒ । शृ॒णु॒त । हव॑म् । मे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रास्मै हिनोत मधुमन्तमूर्मिं गर्भो यो व: सिन्धवो मध्व उत्स: । घृतपृष्ठमीड्यमध्वरेष्वापो रेवतीः शृणुता हवं मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । अस्मै । हिनोत । मधुऽमन्तम् । ऊर्मिम् । गर्भः । यः । वः । सिन्धवः । मध्वः । उत्सः । घृतऽपृष्ठम् । ईड्यम् । अध्वरेषु । आपः । रेवतीः । शृणुत । हवम् । मे ॥ १०.३०.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 30; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सिन्धवः) हे राष्ट्र को बाँधनेवाली-थामनेवाली आधारभूत प्रजाओं ! (वः) तुम्हारा-तुम्हारे द्वारा दिया हुआ (यः-गर्भः-उत्सः) जो राजा द्वारा ग्राह्य भाग उत्कृष्ट है (मधुमन्तम्-ऊर्मिम्-अस्मै-प्रहिनोत) उस मधुर उल्लासरूप-प्रसन्नताकारक को इस राजा के लिये देओ (घृतपृष्ठम्-ईड्यम्) जो कि तेजस्वी प्रेरणा देनेवाला है, उसे देओ (अध्वरेषु रेवतीः आपः-मे हवं शृणुत) हे धन धान्यवाली प्रजाओं ! राजसूययज्ञप्रसङ्गों में मुझ पुरोहित के वचन को सुनो-स्वीकार करो ॥८॥

    भावार्थ

    प्रजाएँ राष्ट्र का आधार हैं, उनकी ओर से मर्यादा से दिया हुआ राजा के लिये उपहारभाग ग्रहण करने योग्य है, राष्ट्रकार्य में उत्साह व प्रेरणा का देनेवाला है, इसलिये अवश्य देना चाहिये ॥८॥

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    विषय

    उत्साह, ज्ञान व निर्मलता

    पदार्थ

    [१] हे (सिन्धवः) = स्यन्दनशील रेतःकणो ! (यः) = जो (वः) = आपका (गर्भ:) = गर्भरूपेण मध्य में रहनेवाला (मध्वः उत्सः) = माधुर्य का चश्मा है, उस (मधुमन्तं ऊर्मिम्) = मधुर उत्साह तरंग को (अस्मै) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (प्रहिणोत) = प्रकर्षेण प्राप्त कराओ। आपके रक्षण से इसका जीवन माधुर्य का स्रोत ही बन जाए। उस माधुर्य में उत्साह तरंगति होता हो, अर्थात् आपका रक्षक स्फूर्ति - सम्पन्न माधुर्य को प्राप्त करे । [२] हे (आपः) = रेतः कणो! आप (रेवती:) = सब प्रकार की रयि से सम्पन्न हो । आप से उत्पन्न ऊर्मि उत्साह तरंग (घृतपृष्ठम्) = ज्ञान की दीप्ति व ईर्ष्यादि मानस मलों के क्षरण के पृष्ठ पर है और अतएव (ईड्यम्) = स्तुति के योग्य है। रेतः कणों से ज्ञान दीप्त होता है, मानस मल दूर होते हैं, जीवन को ये प्रशस्त बनाते हैं । [३] सो हे रेतःकणो! आप (अध्वरेषु) = इन जीवन के अहिंसात्मक यज्ञों में (मे) = मेरी (हवम्) = पुकार को (शृणुत) = सुनो, अर्थात् तुम मेरे अन्दर सुरक्षित रहते हुए मेरे जीवन में माधुर्य का संचार करो, मेरी ज्ञानदीप्ति व निर्मलता का आधार बनो, आपके रक्षण से मेरा जीवन सब आवश्यक रयि से सम्पन्न हो । यही मेरी प्रार्थना है। रेत: कणों के रक्षण से यह पूर्ण हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - रेतः कणों का रक्षण हमें उत्साह सम्पन्न ज्ञानी व निर्मल वृत्ति बनाता है ।

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    विषय

    समुद्र नदीवत् राजा प्रजा का व्यवहार।

    भावार्थ

    हे (सिन्धवः) नदीवत् बहने वाली ! वेग से जाने वाली, एवं नाना सम्बन्धों से बांधने वाली प्रजाओ ! जिस प्रकार नदियें या जल गण अपने जलमय सार सूर्य या समुद्र को प्रदान करती हैं उसी प्रकार (वः) आप लोगों का, (यः) जो (मध्वः) अन्नादि का (उत्सः) उत्तम भाग है, (उत मधुमन्तम् ऊर्मिम्) और मधुर गुणयुक्त उत्तम भाग को (अस्मै प्र हिनोत) इसके लिये प्राप्त कराओ। (रेवतीः) हे उत्तम ऐश्वर्ययुक्त प्रजाओ ! (अध्वरेषु) यज्ञों, हिंसा रहित प्रजा पालनादि कर्मों तथा दृढ़ कार्यों में (ईड्यम्) स्तुति योग्य (घृत-पृष्ठम्) अन्न जल, वा स्नेह से परिपुष्ट इसको प्राप्त होकर (मे हवं शृणुत) मेरा ग्राह्य वचन श्रवण करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कवष ऐलूष ऋषिः॥ देवताः- आप अपान्नपाद्वा॥ छन्दः— १, ३, ९, ११, १२, १५ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ४, ६, ८, १४ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ७, १०, १३ त्रिष्टुप्। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सिन्धवः) हे राष्ट्रस्य बन्धयित्र्यस्तस्याधारभूताः प्रजाः “तद्यदेतैरिदं सर्वं सितं तस्मात् सिन्धवः” [जै० उ० १।९।२।९] (वः) युष्माकम् (यः-उत्सः-गर्भः) गर्भ इव ग्राह्यो राजग्राह्यो भागो मर्यादात उत्कृष्टोऽस्ति (मधुमन्तम्-ऊर्मिम्-अस्मै प्र हिनोत) तं मधुरमुल्लासरूपमस्मै राज्ञे प्रेरयत-प्रयच्छत (घृतपृष्ठम्-ईड्यम्) घृतम् तेजः पश्चाद्यस्य तथा च-अध्येषणीयं प्रदेयमेव तं प्रयच्छतेति सम्बन्धः (अध्वरेषु रेवतीः आपः मे हवं शृणुत) हे धनधान्यवत्यः प्रजाः ! राजसूययज्ञप्रसङ्गेषु मम पुरोहितस्य वचनं शृणुत-मन्यध्वम् ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O streams of life aflow, O dynamic people blest with wealth, honour and excellence, listen to my call and exhortation: Create and set in flow the sweetest honeyed waves of joy for this master power and ruler who is the fountain head and fathomless ocean source of your joy and fulfilment, refulgent and illustrious, adorable in the noblest yajnic meets of the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजा राष्ट्राचा आधार आहे. त्यांनी दिलेले उपहार राजाने ग्रहण करण्यायोग्य असतात. तो राष्ट्रात उत्साह व प्रेरणा देणारा आहे. त्याला अवश्य उपहार दिले पाहिजेत. ॥८॥

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