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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - सोमापूषणावदितिश्च छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सोमा॑पूषणा॒ रज॑सो वि॒मानं॑ स॒प्तच॑क्रं॒ रथ॒मवि॑श्वमिन्वम्। वि॒षू॒वृतं॒ मन॑सा यु॒ज्यमा॑नं॒ तं जि॑न्वथो वृषणा॒ पञ्च॑रश्मिम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमा॑पूषणा । रज॑सः । वि॒ऽमान॑म् । स॒प्तऽच॑क्रम् । रथ॑म् । अवि॑श्वऽमिन्वम् । वि॒षु॒ऽवृत॑म् । मन॑सा । यु॒ज्यमा॑नम् । तम् । जि॒न्व॒थः॒ । वृ॒ष॒णा॒ । पञ्च॑ऽरश्मिम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम्। विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वथो वृषणा पञ्चरश्मिम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमापूषणा। रजसः। विऽमानम्। सप्तऽचक्रम्। रथम्। अविश्वऽमिन्वम्। विषुऽवृतम्। मनसा। युज्यमानम्। तम्। जिन्वथः। वृषणा। पञ्चऽरश्मिम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 40; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाग्निवायुगुणानाह।

    अन्वयः

    हे वृषणा वाय्वग्निवद्वर्त्तमानौ विद्वांसौ युवां सोमापूषणा रजसोऽविश्वमिन्वं विषूवृतं सप्तचक्रं पञ्चरश्मिं मनसा युज्यमानं विमानं रथं जिन्वथः प्रापयतस्तं विजानीत ॥३॥

    पदार्थः

    (सोमापूषणा) अग्निवायू (रजसः) लोकसमूहस्य (विमानम्) वियतिगमकम् (सप्तचक्रम्) सप्तचक्राणि यस्मिँस्तम् (रथम्) रमणीयं यानम् (अविश्वमिन्वम्) अविद्यमानानि विश्वानि मिन्वन्ति येन तम् (विषूवृतम्) विषुणा व्यापकेन गमनेन वृतम् (मनसा) अन्तःकरणेन विचारेण (युज्यमानम्) (तम्) (जिन्वथः) गमयतः (वृषणा) बलिष्ठौ (पञ्चरश्मिम्) पञ्च प्राणाऽपानव्यानोदानसमाना रश्मय इव यस्मिँस्तम् ॥३॥

    भावार्थः

    मनुष्यैरन्तरिक्षे गमयितारं सप्तकलायन्त्रभ्रामणनिमित्तं सद्यो गमयितारं रथं कृत्वा सुखमाप्तव्यम् ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब अग्नि और वायु के गुणों को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (वृषणा) बलिष्ठ वायु और अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वानो ! तुम (सोमापूषणा) अग्नि और वायु (रजसः) लोकसमूह के (अविश्वमिन्वम्) जिससे अविद्यमान समस्त पदार्थों को अलग करते हैं जो (विषूवृतम्) व्यापक गमन से ढपा हुआ (सप्तचक्रम्) जिसमें सात चक्र (पञ्चरश्मिम्) तथा पाँच प्राण-अपान-व्यान-उदान और समान रश्मि के तुल्य विद्यमान (मनसा) जो अन्तःकरणस्थ विचार से (युज्यमानम्) युक्त किया जाता उस (विमानम्) आकाश में गमन करानेवाले (रथम्) रमणीय यान को (जिन्वथः) चलाते हैं (तम्) उसको जानो ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि अन्तरिक्ष में गमन करानेवाले सात कलायन्त्र घुमाने के जिसमें निमित्त, ऐसे शीघ्र गमन करानेवाले रथ को बनाकर सुख पावें ॥३॥

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    विषय

    अहुत शरीर-रथ

    पदार्थ

    १. (वृषणा) = शक्तिशाली व सब सुखों का वर्षण करनेवाले (सोमापूषणा) = सोम व पूषन् तत्त्व सौम्यता तथा तेजस्विता (तं रथम्) = उस शरीररूप रथ को (जिन्वथ) = हमें देते हैं-हमारे प्रति प्रेरित करते हैं [अस्मान् प्रति प्रेरयथः सा०] जो कि (रजसः विमानम्) = रजोगुण के विशिष्ट मानवाला है–जिसमें रजोगुण का बड़ा सुन्दर सम्मिश्रण है। (सप्तचक्रम्) = जो रस-रुधिर-मांस-अस्थि मज्जामेदस् व वीर्य नामक सात धातुरूप सात चक्रोंवाला है। (अविश्वमिन्वम्) = जो विश्व का अपरिच्छेद्य है [विश्वस्यापरिच्छेद्यम्]- जिसे पूरा-पूरा समझना बड़ा कठिन है अथवा जो उस सर्वत्र प्रविष्ट प्रभु का हिंसन करनेवाला नहीं, अर्थात् प्रभु का विस्मरण करनेवाला नहीं है। २. जो रथ (विषूवृतम्) = विविध उत्तम क्रियाओं में वर्तनवाला है। मनसा (युज्यमानम्) = मन से युक्त हो रहा है- मन जिसमें घोड़ों की लगाम के स्थानापन्न है। (पञ्चरश्मिम्) = पाँच ज्ञानेन्द्रियों की रश्मियोंवाला है- पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ जिसमें प्रकाश करनेवाली हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम व पूषा का समन्वय होने पर यह शरीर-रथ अत्यन्त उत्तम बनता है ।

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    विषय

    सोम पूषा, माता पिता के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( सोमा पूषणा ) सूर्य और पृथिवी दोनों ( रजसः ) लोकों, जनों के ( विमानं ) विशेष रूप से उत्पन्न करने वाले ( सप्तचक्रं ) सात ऋतु रूप चक्रों से युक्त ( अविश्वमिन्वम् ) विश्व अर्थात् जीवों के नाश न करने वाले ( विषू-वृतं ) सर्वत्र वर्त्तनेवाले या विशेष रूप से विविध सुखों का उत्पन्न करने वाला होकर पुनः वर्त्तने या लोटकर आने वाले ( रथम् ) रमण करने योग्य या वेगवान् रथ के समान संवत्सर को ( जिन्वथः ) चलाते हैं जिस प्रकार किसी रथ में सात चक्र हों और पांच रश्मि अर्थात् पाँच अश्वों या वेगवान् यन्त्र को चलाने की रासें या पट्टे हों, अच्छी प्रकार बनाया गया हो, वह ( मनसा ) ज्ञान और बुद्धिपूर्वक चलाया जाता हो उसको बलवान् दो पुरुष या, अग्नि और वायु, गैस दोनों तत्व चला रहे हों उसी प्रकार इस संवत्सर को वर्षण करने वाले सूर्य और पृथिवी दोनों ( मनसा = नमसा युज्यमानं ) अन्न द्वारा युक्त होने वाले ( पञ्च रश्मिम् ) पांचों ऋतु में दो या पांच प्रकार की ऋतूत्पादक सूर्य किरणों से युक्त संवत्सर को चलाते हैं। उसी प्रकार ( सोमापूषणा ) पुरुष और स्त्री दोनों ( रजसः ) वीर्य और रज दोनों के आश्रय पर ( विमानं ) विशेष रूप से बनने वाले ( सप्त-चक्रम् ) सात धातुओं के चक्र अर्थात् उत्पन्न होने और बदलते रहने की क्रिया से युक्त ( अविश्वमिन्त्रम् ) विश्व अर्थात् जीवगण जिसको नाश नहीं करते या जीव से जिसको पृथक् न रखा जा सके ऐसे ( विषूवृतं ) समस्त योनियों और लोकों में विद्यमान या विचित्र, अद्भुत रूप से और विविध रूपों के सुखों को देने वाले या विविध रूपों से सुखपूर्वक वर्त्तने, या चेष्टा करने वाले ( मनसा युज्यमानम् ) मन के द्वारा अश्व से रथ के समान जुड़ने या संचालित होने वाले ( पञ्च-रश्मिम् ) प्राण, अपान, उदान, व्यान, समान इन पांच प्रकार की रासों या प्रवर्त्तक शक्तियों से युक्त, या नाक, कान, त्वचा, आंख, और रसना इन पांच ज्ञानेन्द्रियों रूप ज्ञानप्रकाशक किरणों से युक्त ( तं रथम् ) इस, रमण करने योग्य देह को आत्मा और बुद्धि या प्राण और अपान के समान ( जिन्वथः ) पुष्ट करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः॥ १-३ सोमापूषणावदितिश्च देवता॥ छन्दः–१, ३ त्रिष्टुप्। २ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ६ निचृत् त्रिष्टुप्। ४ स्वराट् पङ्क्तिः॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी अंतरिक्षात गमन करविणाऱ्या सात यंत्रांना फिरवून तात्काळ गमन करणारे रथ तयार करून सुखी व्हावे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Soma and Pusha, fire and air, all-invigorating powers, create, animate and refresh that aerial chariot with seven chakras (circles and centres of energy) and five controls for the people it traverses the spaces and goes all over in all directions but is not perceived everywhere and it can be controlled with the mind.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The properties of the fire and air are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! you are showerers f happiness like the fire and air. You should know well about that charming vehicle (in the form of an aircraft) which is seven wheeled, which has five reins in the form of Prana, Apana, Vyana, Udana and Samana, which drive away all impurities of the body and do not harm any beings, A thoughtful mind harnesses it. The same mind goes to the distant places including the sky.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should enjoy happiness by manufacturing thoughtfully, the vehicles (aircrafts) which can go to the sky and distant places quickly. It should be harnessed with seven machines to be moved methodically.

    Foot Notes

    (सोमापूषणा) अग्निवायू। = Fire and air. (विमानम्) विगतिगमकम् । =Leading towards the sky. (विषूवृतम्) विषुणा व्यापकेन गमनेन वृतम्। = Going to distant places. (पञ्चरश्मिम् ) पत्रच-प्राणाऽपानव्यानोदान समाना रश्मयइव यस्मिस्तम् = In which the fire Pranas are like the reins. (रथम्) रमणीयं यानम् = Charming vehicle. (रजस:) लोकसमूहस्य। =Of the group of worlds.

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