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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॒ विश्वा॑नि॒ सुधि॑ता॒ग्नेर॑श्याम॒ मन्म॑भिः। विप्रा॑सो जा॒तवे॑दसः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । विश्वा॑नि । सुऽधि॑ता । अ॒ग्नेः । अ॒श्या॒म॒ । मन्म॑ऽभिः । विप्रा॑सः । जा॒तऽवे॑दसः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि विश्वानि सुधिताग्नेरश्याम मन्मभिः। विप्रासो जातवेदसः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि। विश्वानि। सुऽधिता। अग्नेः। अश्याम। मन्मऽभिः। विप्रासः। जातऽवेदसः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथा जातवेदसो विप्रासो वयं मन्मभिरग्नेर्विश्वानि सुधिता पर्यश्याम तथैव यूयमपि प्राप्नुत ॥८॥

    पदार्थः

    (परि) सर्वतः (विश्वानि) सर्वाणि (सुधिता) सुष्ठु धृतानि (अग्नेः) पावकस्येव (अश्याम) प्राप्नुयाम (मन्मभिः) विज्ञानविशेषैः सह (विप्रासः) मेधाविनः (जातवेदसः) जातविद्या विद्वांसः सन्तः ॥८॥

    भावार्थः

    विद्वद्भिर्मनुष्यैर्यथा मेधाविनो सृष्ट्यात्मनोर्विद्याग्रहणाय प्रयतन्ते तथैव विद्योन्नतये प्रयतितव्यम् ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (जातवेदसः) विद्वान् हुए (विप्रासः) बुद्धिमान् हम लोग (मन्मभिः) विज्ञान विशेषों के सहित (अग्नेः) अग्नि के सदृश (विश्वानि) सम्पूर्ण (सुधिता) उत्तम प्रकार धारण किये शास्त्रों को (परि) सब ओर से (अश्याम) प्राप्त हों, वैसे ही आप लोग भी प्राप्त हूजिये ॥८॥

    भावार्थ

    विद्वान् मनुष्यों को चाहिये कि जैसे बुद्धिमान् विद्वान् सृष्टि और आत्मा की विद्या ग्रहण के लिये प्रयत्न करते हैं, वैसे ही विद्यावृद्धि के लिये प्रयत्न करें ॥८॥

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    विषय

    उत्तम हितकर वस्तुओं की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] हम (अग्नेः मन्मभिः) = उस प्रभु के मनन व स्तोत्रों द्वारा (विश्वानि) = सब सुधिता उत्तम हितकर वस्तुओं को (परिअश्याम) = प्राप्त करें। जितना जितना हम ज्ञान प्राप्त करते हैं और प्रभुस्मरण करनेवाले होते हैं, उतना उतना ही उत्तम हितकर वस्तुओं को प्राप्त करते हैं। [२] इन वस्तुओं द्वारा, इनके ठीक प्रयोग द्वारा हम (विप्रासः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले होते हैं [वि+प्रा पूरणे] और (जातवेदसः) = ज्ञानी बन पाते हैं। इस ठीक प्रयोग से हमारे शरीरों में किसी प्रकार की न्यूनता नहीं होती और हमारे मस्तिष्क ज्ञान से उज्ज्वल होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु का उपासक उत्तम हितकर वस्तुओं को प्राप्त करता है। उनके ठीक प्रयोग से यह शक्ति सम्पन्न व ज्ञानी बनता है।

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    हम (विप्रासः) बुद्धिमान् (जातवेदसः) उत्तम ज्ञान और ऐश्वर्य से सम्पन्न होकर भी (अग्नेः) ज्ञानी, तेजस्वी और अग्रणी पुरुष के (मन्मभिः) मनन करने योग्य वचनों, विचारों और बल सामर्थ्यों से (विश्वानि) सब प्रकार के (सुधितानि) सुख से धारण करने योग्य, उत्तम हितकारी ज्ञानों और पदार्थों का (परि अश्याम) सब प्रकार से भोग करें। (२) हम परमेश्वर की स्तुतियों द्वारा सब ऐश्वर्य प्राप्त करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, २, ५, ७, ८ निचृद्गायत्री॥ ३, ९ विराड् गायत्री । ४, ६ गायत्री॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे बुद्धिमान विद्वान सृष्टी व आत्म्याची विद्या ग्रहण करण्यासाठी प्रयत्न करतात तसा विद्वान माणसांनी विद्या बुद्धीसाठी प्रयत्न करावा. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May we, inspired and enlightened yajakas, with sincere prayers, worship and do yajna to get all the benevolent and gracious gifts of Agni, lord omniscient of existence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of learned persons still runs.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Being endowed with intelligence and knowledge, we obtain by special scientific knowledge and attributes of an enlightened person. He is indeed, purifier like the fire, so you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The wise enlightened men try to acquire the knowledge of God and soul and the world. Likewise, you should also endeavor for the development of your knowledge.

    Foot Notes

    (मन्मभिः) विज्ञान विशेषै: सह। = With special scientific knowledge. (सुधिता) सुष्ठु धृतानि। = Upheld. It is noteworthy that Sayanacharya, Prof. Wilson and Griffith all take जातवेदस: as the adjective of Agni and interpret it as जातानि सर्वाणि वेत्तीति जातवेदाः सर्वज्ञ इत्यर्थ:। (सायणचार्यः)। “Agni, to whom all is known ” ( Wilson ) Singers of him (Agni) who knows all life (Griffith), but paradoxically they take the epithet for the fire. Rishi Dayananda Sarasvati has taken the epithet for an enlightened person or a great scholar who knows all.

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