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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 14
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वृषो॑ अ॒ग्निः समि॑ध्य॒तेऽश्वो॒ न दे॑व॒वाह॑नः। तं ह॒विष्म॑न्त ईळते॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषो॒ इति॑ । अ॒ग्निः । सम् । इ॒ध्य॒ते॒ । अश्वः॑ । न । दे॒व॒ऽवाह॑नः । तम् । ह॒विष्म॑न्तः । ई॒ळ॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषो अग्निः समिध्यतेऽश्वो न देववाहनः। तं हविष्मन्त ईळते॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषो इति। अग्निः। सम्। इध्यते। अश्वः। न। देवऽवाहनः। तम्। हविष्मन्तः। ईळते॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 14
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

    अन्वयः

    यो वृषो देववाहनोऽग्निरश्वो न समिध्यते तं हविष्मन्त ईळते ॥१४॥

    पदार्थः

    (वृषः) वर्षकः (अग्निः) पावकः (सम्, इध्यते) सम्यक् प्रकाश्यते (अश्वः) आशुगामी तुरङ्गः (न) इव (देववाहनः) यो देवान् दिव्यान् वेगादिगुणान् वाहयति प्रापयति सः (तम्) (हविष्मन्तः) बहूनि हवींष्यादानानि येषान्ते (ईळते) स्तुवन्ति ॥१४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यथा बलिष्ठा वेगवन्तोऽश्वा यानं सद्यो गमयन्ति तथैवाऽग्निरस्तीति वेद्यम्। यथाऽस्य गुणान् विद्वांसो जानन्ति तथैव यूयमपि जानीत ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जो (वृषः) वृष्टिकर्त्ता (देववाहनः) उत्तम वेग आदि गुणों को प्राप्त करानेवाला (अग्निः) अग्नि (अश्वः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश (सम्) (इध्यते) प्रकाशित किया जाता है (तम्) उसकी (हविष्मन्तः) बहुत शीघ्र ग्रहण करने योग्य वस्तुओं से युक्त पुरुष (ईळते) स्तुति करते हैं ॥१४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे बल और वेग से युक्त घोड़े वाहन को शीघ्र ले चलते हैं, वैसे ही अग्नि को भी समझना चाहिये और जैसे इस अग्नि के गुणों को विद्वान् लोग जानते हैं, वैसे आप लोग भी जानिये ॥१४॥

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    विषय

    'हविष्मान्' उपासक

    पदार्थ

    [१] (वृष:) = शक्तिशाली, (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (समिध्यते) = उपासकों से हृदयों में समिद्ध किये जाते हैं। वे प्रभु (अश्वः न) = अश्व के समान हैं। जैसे घोड़ा अपने सवार को लक्ष्य-स्थान पर पहुँचाता है, इसी प्रकार प्रभु उपासकों को लक्ष्य स्थान पर पहुँचानेवाले हैं। (देववाहन:) = देवों से ये प्रभु धारण किये जाते हैं। देववृत्ति के पुरुष ही हृदयों में प्रभु का दर्शन करते हैं। [२] (तम्) = उस प्रभु को (हविष्यमन्तः) = प्रशस्त हविवाले पुरुष ही (ईडते) = पूजते हैं। प्रभु का पूजन 'हवि' से होता है 'हविषा विधेम'। यज्ञशेष का सेवन करनेवाला यज्ञशील पुरुष ही प्रभु का सच्चा पूजन करता है 'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः'।

    भावार्थ

    भावार्थ- यज्ञशील बनकर हम प्रभु का पूजन करते हैं। प्रभु हमें शक्तिशाली व उन्नत बनाकर लक्ष्य-स्थान पर पहुँचाते हैं।

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    विषय

    यन्त्रचालकाग्निवत् नियन्ता के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (देववाहनः अश्वः न) जिस प्रकार विजय की कामना करने वाले राजा को अपने ऊपर रखने वाला अश्व वा अश्वसैन्य (वृषद) बलवान् एवं शत्रु पर शस्त्रास्त्र की वर्षा करता हुआ (सम् इध्यते) अच्छी प्रकार उत्तेजित होता है। उसी प्रकार (देववाहनः) वीर विजयी सैनिकों को अपने साथ युद्ध में ले जाने हारा, (अग्निः) अग्रणी नायक (वृषः) शस्त्रवर्षी, प्रजा पर शुखों की वृद्धि करने वाला वा शत्रुओं का दमन और सैन्य, प्रजा आदि का प्रबन्ध करने हारा होकर (सम् इध्यते) अच्छी प्रकार प्रकाशित होता है। (तं) उसको (हविष्मन्तः) बहुत से अन्न धनादि के स्वामी प्रजाजन (ईडते) स्तुति करते और चाहते हैं। (२) सब उत्तम गुणों, लोकों, विद्वानों को अपने में धारण करने से परमेश्वर ‘देववाहन’ है। व्यापक होने से ‘अश्व’ है। (३) प्राणों को धारण करने से देववाहन आत्मा है। भोक्ता होने से ‘अश्व’ है। ज्ञानवान् पुरुष उसकी स्तुति वर्णन करते हैं। देव अर्थात् द्योतक किरणों या प्रकाशों को धारने से अग्नि, सूर्य आदि भी ‘देववाहन’ हैं। जलादि सेचन करने से सूर्यादि ‘वृषा’ हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा। २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जसे बलवान व वेगवान घोडे वाहन शीघ्र चालवितात, तसेच अग्नीलाही समजावे व जसे या अग्नीच्या गुणांना विद्वान लोक जाणतात तसे तुम्हीही जाणा. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Virile and generous, Agni is lighted and raised, it shines and blazes. It is the carrier of fragrance to the divinities of heaven and earth. Devotees bearing sacred offerings worship it in yajna.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The fire which showers many bene-fits and causes rains is conveyor of many divine attributes like the speed. It is kindled speedily and catches speed like the horse. Men with oblations and blessed with acceptable virtues praise such a person.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! you should know that as mighty speedy horses drive a chariot quickly, so is this fire. You should know its properties as the scientists do.

    Foot Notes

    (देववाहन:) यो देवान् दिव्यान् वेगादिगुणान् वाहयति प्रापयति सः। =He who conveys many divine attributes like the speed and others. (हविष्मन्तः) बहूनि हवींष्यादानानि येषान्ते । – Those who have articles as oblations and acceptable virtues.

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