ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 4/ मन्त्र 8
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - आप्रियः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ भार॑ती॒ भार॑तीभिः स॒जोषा॒ इळा॑ दे॒वैर्म॑नु॒ष्ये॑भिर॒ग्निः। सर॑स्वती सारस्व॒तेभि॑र॒र्वाक् ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदं स॑दन्तु॥
स्वर सहित पद पाठआ । भार॑ती । भार॑तीभिः । स॒ऽजोषाः॑ । इळाः॑ । दे॒वैः । म॒नु॒ष्ये॑भिः । अ॒ग्निः । सर॑स्वती । सा॒र॒स्व॒तेभिः॑ । अ॒र्वाक् । ति॒स्रः । दे॒वीः । ब॒र्हिः । आ । इ॒दम् । स॒द॒न्तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ भारती भारतीभिः सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्निः। सरस्वती सारस्वतेभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बर्हिरेदं सदन्तु॥
स्वर रहित पद पाठआ। भारती। भारतीभिः। सऽजोषाः। इळाः। देवैः। मनुष्येभिः। अग्निः। सरस्वती। सारस्वतेभिः। अर्वाक्। तिस्रः। देवीः। बर्हिः। आ। इदम्। सदन्तु॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
या भारतीभिः सह सजोषा भारती देवैर्मनुष्येभिश्च सह सजोषा इळा अग्निश्च सारस्वतेभिस्सह सरस्वती तिस्रो देवीरर्वागिदं बर्हिरासीदन्ति ताः सर्वे मनुष्या आसदन्तु ॥८॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (भारती) विद्याशिक्षाधृतावाक् (भारतीभिः) सुशिक्षिताभिर्वाणीभिः (सजोषाः) समानसेवनप्रीतिः (इळा) पृथिवी (देवैः) दिव्यैर्गुणैः (मनुष्येभिः) मननशीलैः (अग्निः) भास्वरः (सरस्वती) प्रशस्तज्ञानयुक्ता (सारस्वतेभिः) सरस्वत्यां भवैः (अर्वाक्) अधस्तात् (तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (देवीः) देव्यो देदीप्यमानाः (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (आ) (इदम्) प्रत्यक्षे वर्त्तमानम् (सदन्तु) तिष्ठन्तु ॥८॥
भावार्थः
येषां मनुष्याणां विद्वद्धारणानुकूला धारणा प्रशंसानुकूला स्तुतिर्वागनुवृता वाग्वर्त्तते तेऽन्तरिक्षस्थां शुभां वाणीं प्राप्यानन्दन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
जो (भारतीभिः) सुन्दर शिक्षित वाणियों के साथ (सजोषाः) एकसी सेवा और प्रीतिवाली (भारती) विद्या और शिक्षा से धारण किई हुई वाणी वा (देवैः) दिव्यगुण और (मनुष्येभिः) विचारशील पुरुषों के साथ समान सेवा और प्रीतिवाली (इळा) पृथिवी और (अग्निः) प्रकाशमान अग्नि वा (सारस्वतेभिः) वाणी में उत्पन्न हुए भावों के साथ (सरस्वती) प्रशंसित विज्ञानयुक्त वाणी (तिस्रः) उक्त तीनों (देवीः) देदीप्यमान (अर्वाक्) नीचे से (इदम्) इस (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (आ) अच्छे प्रकार स्थिर होती हैं, उनको सब मनुष्य (आ, सदन्तु) आसादन) करें, उनका आश्रय लें अर्थात् उनमें अच्छे प्रकार स्थित हों ॥८॥
भावार्थ
जिन मनुष्यों की विद्वानों की धारणा के अनुकूल धारणा, प्रशंसा के अनुकूल स्तुति, वाणी के अनुकूल वर्त्ताववाली वाणी वर्त्तमान है, वे अन्तरिक्षस्थ शुभ वाणी को प्राप्त होकर आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥८॥
विषय
भारती, इडा व सरस्वती
पदार्थ
[१] प्रस्तुत मन्त्र में 'भारती' द्युलोक की देवी है, 'इडा' पृथ्वीलोक की तथा 'सरस्वती' अन्तरिक्षस्थ देवी है। 'भरत' आदित्य हैं, उसकी रश्मियाँ 'भारती' हैं इन (भारतीभिः) = सूर्य-रश्मियों के साथ (सजोषा:) = संगत हुई हुई (भारती) = यह द्युलोकस्थ देवी हमें (आ अर्वाक्) = सर्वथा अभिमुख प्राप्त हो । शरीर में मस्तिष्क ही द्युलोक है। ज्ञानरश्मियाँ ही भारती हैं। यह ज्ञान की अधिष्ठातृ देवी भारती' ज्ञान-रश्मियों से संगत हुई हुई हमें प्राप्त हो । (२) (इडा) = यह पृथिवीस्थ देवी, वाग्देवता [वेदवाणी] (देवै:) = देववृत्तिवाले लोगों के साथ तथा (मनुष्येभिः) = विचारशील पुरुषों के साथ हमारे लिये (अग्निः) = अग्रणी हो, हमें आगे ले चलनेवाली हो । देववृत्तिवाले विचारशील पुरुषों के सम्पर्क में आकर हम इस वेदवाणी को प्राप्त हों और जीवन में आगे बढ़ें। [३] (सारस्वतेभिः) = संस्कृति के उपासकों द्वारा सरस्वती यह हृदयों को परिष्कृत करनेवाली- हृदयान्तरिक्ष को निर्मल करनेवाली सरस्वती हमें प्राप्त हो । [४] हमारा मस्तिष्क ज्ञानरश्मियों से दीप्त हो, हमारी वाणी ज्ञानप्रधान शब्दों का ही उच्चारण करनेवाली हो, हमारा हृदय परिष्कृत हो । इस प्रकार (तित्रः देवी:) = ये तीनों देवियाँ (इदं बर्हिः) = इस वासनाशून्य हृदय में आसदन्तु आसीन हों। हमारे हृदय में ज्ञान-परिष्कृत वाणी व संस्कृत-व्यवहारों (आचारों) को प्राप्त करने का संकल्प हो।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'भारती, इडा व सरस्वती' के उपासक बनें।
विषय
वीरों का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
(भारतीभिः भारती सजोषाः) जिस प्रकार सर्वप्राणिसमूह के पालक-पोषक सूर्य की दीप्ति उसकी अन्य पालक पोषक ताप विद्युत् आदि शक्तियों के साथ समान रूप से सेवन करने योग्य होकर (इदं बर्हिः आः) इस अन्तरिक्ष और इस भूलोक को प्राप्त होती है उसी प्रकार (भारती) प्रजा का भरण पोषण करने वाले मुख्य पुरुष की प्रजापालक नीति, शक्ति (भारतीभिः) ‘भरत’ अर्थात् अन्य प्रजापोषक पुरुषों की शक्तियों या सेनाओं और सभाओं से (सजोषाः) समान प्रीति से युक्त होकर (इदं बर्हिः आसीदतु) इस लोक अर्थात् प्रजाजन पर विराजे, उत्तम पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करें । (देवैः सजोषाः) ‘देव’ अर्थात् विद्वान् और व्यवहारज्ञ पुरुषों के साथ समान प्रीति युक्त होकर (इळा) पृथिवी अर्थात् पृथिवी निवासिनी प्रजा इस लोक पर प्रतिष्ठा से विराजे । (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी नायक (मनुष्येभिः सजोषाः आसीदतु) मननशील पुरुषों के साथ समान प्रीति युक्त होकर विराजे। (सारस्वतेभिः सरस्वती) ‘सरस्वती’ वेद वाणी का अभ्यास करने वाले विद्वानों से युक्त (सरस्वती) उत्तम ज्ञान वाली विद्वत् सभा इस लोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करे। अथवा (सारस्वतेभिः स्वरस्वती) सरस्वती अर्थात् स्त्री-जन, अपने विवाहित पतियों सहित प्रीति युक्त होकर प्रतिष्ठित पद पर विराजें। उस प्रकार (तिस्रः) तीनों (देवीः) देवियें ज्ञान और सुख देने वाली होकर (अर्वाक्) हमें प्राप्त होकर (इदं बर्हिः) इस लोक में (आसदन्तु) आदर पूर्वक विराजें। विशेष विवरण देखो यजुर्वेद के आप्री सूक्त ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ आप्रियो देवता॥ छन्दः– १, ४, ७ स्वराट् पङ्क्तिः। २, ३, ५ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ६ विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या माणसांची विद्वानांच्या धारणेनुसार धारणा, प्रशंसेच्या अनुकूल स्तुती, वाणीच्या अनुकूल आचरण करणारी वाणी आहे, त्यांना अंतरिक्षातील शुभ वाणी प्राप्त होऊन आनंद मिळतो. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Come Bharati, speech bearing knowledge and education, loving and kind, with all forms of living languages and lessons for learning; come Ila, Eternal Speech Divine, the inner Light Divine, with potential knowledge of all attributes of divine and human existence; come Sarasvati, universal stream of the existential flow of eternal awareness with all the knowledge of existence. Come all three divine modes of Word and Knowledge and grace the sacred vedi of our yajna. Come here and now, threefold mother of human knowledge and speech.
Word Meaning
(आ) Come । (भारती) India । (भारतीभिः) of Light । (सऽजोषाः) mother । (इळाः) Earth । (देवैः) Godess । (मनुष्येभिः) of Humans । (अग्निः) Energy । (सरस्वती) Saraswati । (सारस्वतेभिः) of Knowledge । (अर्वाक्) from the lower worlds । (तिस्रः) the three । (देवीः) Godesses । (बर्हिः) to the higher world । (आ) firmly । (इदम्) here । (सदन्तु) make seated ॥
Mantra Meaning
O Bharati (India)! The Mother of light. O Ila (Earth)! The Godess of energy for humans. O Saraswati! The mother of knowledge. O The three Godesses! Come and make us seated, firmly, to the higher worlds, away from the lower worlds. RigVed-3.4.8
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More about the learned persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May all men use proper language like a cultured and refined speech which is composed of appropriate words. The earth and fire with divine nature, thoughtful man and an educated lady with high ideas and knowledge-let these three shining divinities take their seats earmarked for them at prominent places.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons enjoy Bliss, who secure the speech from the firmament of heart touching the heart or impressive ). Their ideas are similar to the ideas of the enlightened persons, and their laudation is similar or matching with the real praise, and their speech is consistent throughout.
Foot Notes
(भारती ) विद्या शिक्षाघृतावाक् । भारतीति वाङ्नाम (NG 1, 11 ) = The speech upheld or refined by wisdom and education. (इला ) पृथिवी। = Earth. ( सरस्वती ) प्रशस्तज्ञानयुक्ता| सरस्वतीति पदनाम (NG 55 ) = Full of admirable knowledge and highly learned lady. The other meanings of भारती, इला and सरस्वती given, in Rishi Dayananda Sarasvati's Commentary and Nighantu etc. are. ( ऋ. 2, 3, 8 भाष्ये ) भारती - शुभान् गुणान् धरन्ती-धारिका माता ( य० 20-63 ) धारणावती प्रज्ञा | = Diserminative intellect. इला इति वाङ्नाम (NG. 1, 11) अन्ननाम (NG 2, 7) गो नाम (NG. 2, 11) पदनाम (NG 5, 5) इडा-श्रद्धा (Stph. 11, 2, 7, 20) सरस्वती प्रशस्तं सरोविज्ञानं विद्यते यस्याः सा (य. 8-43) बहु विद्यायुक्ता माता (य 20, (62) विद्यायुक्ता स्त्री (ऋ. 6, 61, 3 ) By three देवीः ( divinities ) may be therefore taken learned mother, teacher and preacher or divine speech, admirable intellect and knowledge. There should be harmony among these three themselves and with those or others.
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