ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 40/ मन्त्र 4
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्द्र॒ सोमाः॑ सु॒ता इ॒मे तव॒ प्र य॑न्ति सत्पते। क्षयं॑ च॒न्द्रास॒ इन्द॑वः॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । सोमाः॑ । सु॒ताः । इ॒मे । तव॑ । प्र । य॒न्ति॒ । स॒त्ऽप॒ते॒ । क्षय॑म् । च॒न्द्रासः॑ । इन्द॑वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र सोमाः सुता इमे तव प्र यन्ति सत्पते। क्षयं चन्द्रास इन्दवः॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र। सोमाः। सुताः। इमे। तव। प्र। यन्ति। सत्ऽपते। क्षयम्। चन्द्रासः। इन्दवः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 40; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे सत्पते इन्द्र राजन् ! य इमे चन्द्रास इन्दवः सुताः सोमास्तव क्षयं प्रयन्ति ताँस्त्वं सेवस्व ॥४॥
पदार्थः
(इन्द्र) सकलौषधिविद्यावित् (सोमाः) ओषध्यादयः पदार्थाः (सुताः) सुविचारेणाऽभिसंस्कृताः (इमे) (तव) (प्र) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति सत्पते (सतां) रक्षक (क्षयम्) निवासस्थानम् (चन्द्रासः) आह्लादकराः (इन्दवः) सार्द्राः ॥४॥
भावार्थः
हे राजन् ! यावान् राज्यादंशो भवता ग्रहीतव्यस्तावन्तं गृहीत्वा भुङ्क्ष्व नाऽधिकं न न्यूनमेवं कृतेन न कदाचिद्भवतः क्षतिर्भविष्यति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (सत्पते) सत्पुरुषों के रक्षा करने और (इन्द्र) सम्पूर्ण ओषधियों की विद्या के जाननेवाले राजन् ! जो (इमे) ये (चन्द्रासः) आनन्दकारक (इन्दवः) गीले (सुताः) उत्तमप्रकार से पाक आदि संस्कार से युक्त (सोमाः) ओषधी आदि पदार्थ (तव) आपके (क्षयम्) रहने के स्थान को (प्र, यन्ति) प्राप्त होते हैं, उनका आप सेवन करो ॥४॥
भावार्थ
हे राजन् ! जितना आपको राज्य का भाग लेना चाहिये, उतना ही ग्रहण कर भोग करिये, न अधिक न न्यून, ऐसा करने से कभी नहीं आपकी हानि होगी ॥४॥
विषय
चन्द्रास:-इन्दवः [उल्लास व शक्ति]
पदार्थ
[१] हे (सत्पते) = सज्जनों के रक्षक प्रभो! (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (इमे) = ये (सुता:) = उत्पन्न हुए-हुए (चन्द्रासः) = आह्लाद के जनक [चदि आह्लादे] (इन्दवः) = [इन्द् to be Powerful] शक्ति को देनेवाले [सोमा:] = सोमकण (तव क्षयम्) = आपके गृह की ओर (प्रयन्ति) = आते हैं, अर्थात् ये हमें आपको प्राप्त करानेवाले होते हैं। [२] सोमकणों के रक्षण के लिए आवश्यक है कि हम जितेन्द्रिय बनें [इन्द्र] तथा सदा सत्कार्यों में व्याप्त रहें [सत्पति] । इनके रक्षण से हम जीवन में उल्लास का अनुभव करेंगे [चन्द्रासः] तथा ये सोमकण हमें शक्तिशाली बनाएँगे [इन्दव:] इनके रक्षण का सर्वमहान् लाभ यह है कि ये हमें प्रभु को प्राप्त कराएँगे ।
भावार्थ
भावार्थ- रक्षित सोम हमें उल्लास व शक्ति प्राप्त कराते हैं, अन्ततः हम इनके रक्षण से ही प्रभु को प्राप्त करते हैं ।
विषय
गुरु गृह में शिष्योंवत् अभिषिक्त अध्यक्षों का राजा के अधीन कार्य करना।
भावार्थ
हे (सत्-पते) सज्जनों के प्रतिपालक ! हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (इमे) ये (चन्द्रासः) आह्लादजनक, प्रजा के मनोरञ्जन करने हारे, (इन्दवः) ऐश्वर्यवान् हृदयों में प्रजा के प्रति आर्द्र, स्नेहभाव रखने वाले (सोमाः) सौम्यगुण युक्त, प्रजा के प्रेरक, (सुताः) नाना पदों पर अभिषिक्त हैं वे (तव क्षयं प्रयन्ति) तेरे ही स्थान पर उत्तम रीति से कार्य करते हैं। (२) हे मनुष्य ! ये उत्पन्न ओषधि आदि सुखजनक हरे सरस पदार्थ तेरे घर और जठर, शरीर में आवें। (३) हे आचार्य ! ये शिष्यगण पुत्रवत् सुखजनक चन्द्रवत् प्रतिदिन बढ़ने वाले तेरे गुरुगृह में प्राप्त हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१–४, ६–९ गायत्री। ५ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा! जितका तुझा राज्याचा भाग घ्यावयाचा आहे तितकाच ग्रहण करून भोग. अधिक किंवा न्यून नको. असे करण्याने तुझी कधीही हानी होणार नाही. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of knowledge, protector of truth and lovers of rectitude, all these soma essences of nature, distilled, seasoned and reinforced, soothing sweet and inspiring, trickling in drops and flowing in streams, come to your abode.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes and duties of the ruler and people are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra (Knower of all the medical science). and O protector of good people! these various drugs and other things which have been prepared thoughtfully, which bestow joy and are full of sap come to your abode. Take them in the manner prescribed by the experts.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O King! take from your people only that much portion (as revenues etc.,) which is due and fair, and neither more nor less. By so doing, you will suffer no harm.
Foot Notes
(इन्द्र) सकलौशर्धविद्यावित् = Knower of all the Medical science. One of the derivations of Indra, as given in the Nirukta 10,1,8. is इन्द्रौ रमते इति वा । By Indra is taken Soma, सोमो वा इन्द्र: (Stph 2, 2, 3, 23 ) (क्षयम् ) निवासस्थानम् । Place of residence. (चन्द्रासः) अह्रादकरा: = Bestowing joy. सोमो राजा इन्द्रः = (Jaiminiyopanishad Brahman 10, Aitraya 1, 92). So taking Indra in this sense it means one who takes delight in Soma and other invigorating herbs, plants and drugs.
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