ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 42/ मन्त्र 7
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
इ॒ममि॑न्द्र॒ गवा॑शिरं॒ यवा॑शिरं च नः पिब। आ॒गत्या॒ वृष॑भिः सु॒तम्॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । इ॒न्द्र॒ । गोऽआ॑शिरम् । यव॑ऽआशिरम् । च॒ । नः॒ । पि॒ब॒ । आ॒ऽगत्य॑ । वृष॑ऽभिः । सु॒तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इममिन्द्र गवाशिरं यवाशिरं च नः पिब। आगत्या वृषभिः सुतम्॥
स्वर रहित पद पाठइमम्। इन्द्र। गोऽआशिरम्। यवऽआशिरम्। च। नः। पिब। आऽगत्य। वृषऽभिः। सुतम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 42; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वमागत्य नो वृषभिः सुतं गवाशिरं यवाशिरं चेमं सोमं पिब ॥७॥
पदार्थः
(इमम्) (इन्द्र) ऐश्वर्य्यप्रद (गवाशिरम्) गावः किरणा अश्रन्ति यं तम् (यवाशिरम्) यवा अस्यन्ते यस्मिँस्तम् (च) (नः) अस्माकम् (पिब) (आगत्य)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वृषभिः) वर्षकैर्मेघैः (सुतम्) उत्पादितम् ॥७॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! ये किरणा वायवश्च पिबन्ति तमेव रसं यूयं पीत्वा बलिष्ठा भवत ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के देनेवाले ! आप (आगत्य) आय के (नः) हम लोगों के (वृषभिः) वृष्टिकर्त्ता मेघों से (सुतम्) उत्पन्न किये गये (गवाशिरम्) किरणें जिसको पीती हैं उस और (यवाशिरम्) यव अन्न का भोजन किया जाय जिसमें उस (च) और (इमम्) इस पदार्थ को (पिब) पान करो ॥७॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जिसको सूर्य की किरणें और पवनें पीती हैं, उसी रस का आप लोग पान करके बलिष्ठ होइये ॥७॥
विषय
'गवाशिर्+यवा॑शिरं' सोम
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (इमम्) = इस (वृषभिः सुतम्) = शक्तिशाली पुरुषों से सम्पादित (नः) = हमारे सोम को पिब हमारे शरीर में ही व्याप्त करने की कृपा करिए। (आगत्य) = हमारे हृदयदेश में आकर आप इस सोम का पान करिये। आपके यहाँ आने पर वासनाओं का रहना सम्भव नहीं रहता और सोम सुरक्षित रहता है । [२] यह सोम वह है जो कि (गवाशिरम्) = हमारे ज्ञानों को परिपक्व करनेवाला है [गो= ज्ञान, श्रीणाति to prepare] (च) = और यवाशिरम् = (यु मिश्रणामिश्रणयोः) भद्र के मिश्रण व अभद्र के अमिश्रण को करनेवाला होता है [श्रीणाति = to cook] |
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु को हृदयदेश में स्थापित करके हम सोमरक्षण करें। यह हमारे ज्ञान को परिपक्व करेगा और हमारे से अभद्र को दूर करता हुआ भद्र का हमारे साथ मिश्रण करनेवाला होगा।
विषय
गवाशिर यवाशिर सुतका रहस्य।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (वृषभिः सुतम्) मेघों से उत्पन्न जल (गवाशिरं) किरणों से ताप द्वारा गृहीत होता है और (यवाशिरं) यव आदि अन्नों से ग्रहण किया जाता है उस जल को प्रथम जिस प्रकार सूर्य पान करता है उसी प्रकार तू भी (वृषभिः सुतम्) बलवान् प्रबन्धक शासकों से उत्पन्न किये (गवाशिरं) गौ, भूमि मेघ से प्रजाओं द्वारा उपयुक्त और (यवाशिरम्) यव अर्थात् शत्रुओं के दूर करने वाले वीर सैन्यों से भुक्तशेष (इमं) इस (नः) हमारे (सुतम्) उत्पन्न ऐश्वर्य या राष्ट्र को (आगत्य) प्राप्त करके (पिब) पालन वा उपभोग कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ४-७ गायत्री। २, ३, ८, ९ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! सूर्याची किरणे व वायू ज्या रसाचे पान करतात त्याच रसाचे पान करून तुम्हीही बलवान व्हा. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of power, honour and energy, come and have a drink of this soma of ours filtered with the shower of clouds, reinforced with rays of the sun and accompanied by a diet of barley milk.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The Agni is described below.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra! you give much wealth. Come here and drink this Soma (juice of various invigorating herbs and plants), which has been taken or touched by the rays of the Sun and in which the barely has been mixed. It has been produced by the clouds.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! you drink that juice which has been exposed to the rays of the sun and the air. Drink that and become strong.
Foot Notes
(गवाशिरम् ) गावः किरणा अश्नन्ति यं तम् । = Which is taken or touched by the rays of the sun. (यवाशिरम् ) यवा अस्यन्ते यस्मिस्तम् | = In which barley is put or mixed. (वृषभि:) वर्षकैर्मेघे:। = By the raining clouds.
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