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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 20/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    नू ष्टु॒त इ॑न्द्र॒ नू गृ॑णा॒न इषं॑ जरि॒त्रे न॒द्यो॒३॒॑ न पी॑पेः। अका॑रि ते हरिवो॒ ब्रह्म॒ नव्यं॑ धि॒या स्या॑म र॒थ्यः॑ सदा॒साः ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नु । स्तु॒तः । इ॒न्द्र॒ । नु । गृ॒णा॒नः । इष॑म् । ज॒रि॒त्रे । न॒द्यः॑ । न । पी॒पे॒रिति॑ पीपेः । अका॑रि । ते॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । ब्रह्म॑ । नव्य॑म् । धि॒या । स्या॒म॒ । र॒थ्यः॑ । सदा॒ऽसाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो३ न पीपेः। अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नु। स्तुतः। इन्द्र। नु। गृणानः। इषम्। जरित्रे। नद्यः। न। पीपेरिति पीपेः। अकारि। ते। हरिऽवः। ब्रह्म। नव्यम्। धिया। स्याम। रथ्यः। सदाऽसाः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 20; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरुपदेशविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! स्तुतस्संस्त्वं जरित्रे नव्यम्ब्रह्म नु नद्यो न पीपेः। गृणानः सन्नव्यमिषम्पीपेः। हे हरिवो ! यस्मै तेऽस्माभिर्धिया नव्यं ब्रह्माऽकारि तत्सहायेन सदासा वयं रथ्यो नु स्याम ॥११॥

    पदार्थः

    (नु) सद्यः (स्तुतः) प्रशंसितः (इन्द्र) सुखप्रदातः (नु) (गृणानः) स्तुवन् (इषम्) विज्ञानम् (जरित्रे) सत्यप्रशंसकाय (नद्यः) (न) इव (पीपेः) वर्धय (अकारि) क्रियते (ते) तव (हरिवः) बहुसेनाङ्गयुक्त (ब्रह्म) महद्धनमन्नं वा (नव्यम्) नवीनम् (धिया) कर्म्मणा (स्याम) (रथ्यः) बहुरमणीयरथादियुक्ताः (सदासाः) समानदानसेवकाः ॥११॥

    भावार्थः

    अमात्यसेनाप्रजाजनैः प्रशंसितानि कर्म्माणि कुर्वतो राज्ञः स्तुतिर्यथा कार्य्या तथैव राज्ञाप्येतेषां शुभकर्म्मसु प्रवर्त्तमानानां प्रशंसा कर्त्तव्येति ॥११॥ अर्तेन्द्रराजाऽमात्यविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति विंशतितमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उपदेशविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सुख के देनेवाले ! (स्तुतः) प्रशंसित हुए आप (जरित्रे) सत्य कहनेवाले के लिये (नव्यम्) नवीन (ब्रह्म) बड़े धन वा अन्न की (नु) शीघ्र (नद्यः) नदियों के (न) सदृश (पीपेः) वृद्धि करो और (गृणानः) स्तुति करता हुआ नवीन (इषम्) विज्ञान की वृद्धि करो हे (हरिवः) बहुत सेना के अङ्गों से युक्त ! जिसके लिये (ते) आपके हम लोगों ने (धिया) कर्म से नवीन बड़ा धन वा अन्न (अकारि) किया उसके सहाय से (सदासाः) समान दान देनेवाले सेवक हम लोग (रथ्यः) बहुत सुन्दर रथ आदिकों से युक्त (नु) निश्चय (स्याम) होवें ॥११॥

    भावार्थ

    मन्त्री, सेना और प्रजाजनों को श्रेष्ठ कर्म्म करते हुए राजा की स्तुति जैसी कर्त्तव्य है, वैसी ही राजा को भी इन उत्तम कर्म्मों में प्रवर्त्तमान लोगों की प्रशंसा करनी चाहिये ॥११॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा, अमात्य और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह बीसवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    रथ्यः सदासाः

    पदार्थ

    मन्त्र व्याख्या १९.११ पर द्रष्टव्य है । सूक्त का भाव यही है कि प्रभु हमें हिंसित नहीं होने देते। अगले सूक्त का प्रारम्भ इन्हीं शब्दों से होता है कि प्रभु हमें रक्षा के लिए प्राप्त हों -

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    विषय

    उससे रक्षा, समृद्धि की याचना।

    भावार्थ

    व्याख्या पूर्व सूक्त १९। ११ में देखो ॥ इति चतुर्थो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १, ३, ६ निचृत्त्रिष्टुप् । ४, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ८, १० त्रिष्टुप् । २ पंक्तिः। ७, ९ स्वराट् पंक्तिः। ११ निचृत्पंक्तिः। एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मंत्री, सेना व प्रजाजनांनी श्रेष्ठ कर्म करत राजाची स्तुती करणे कर्तव्य समजले पाहिजे तसेच राजानेही या उत्तम कर्मात असलेल्या लोकांची प्रशंसा केली पाहिजे. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, generous lord of knowledge, wealth, honour and excellence, sung and celebrated thus by the devotees, bear and bring and increase your gift of the wealth of food, energy and knowledge of arts and sciences for the celebrants like the overflowing streams of water across the earth. This new homage of song and adoration is created and offered to your honour so that, O lord of horse and armour, we pray, we may rise as a nation of chariot warriors, generous and obedient to Divinity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of attributes of a king is further treated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (king)! you are bestower of happiness, and admired by people. You multiply the wealth or materials of the admirer of truth, like rivers. Praising virtuous persons; you extend and disseminate the new knowledge. O king! endowed with various wings of the army, may we possess various kinds of charming vehicles with your help along with our generous attendants. We have given you new wealth with our actions.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The civil and military officials and the people should praise a king who does admirable deeds. Likewise, the king should also admire and appreciate them when they are doing noble deeds.

    Foot Notes

    (इषम् ) विज्ञानम् । = Knowledge. (ब्रह्म) महद्धनमन्नं वा । ब्रह्मेति धननाम (NG 2, 10) = Great wealth or food.

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