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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 15
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त दा॒सस्य॑ व॒र्चिनः॑ स॒हस्रा॑णि श॒ताव॑धीः। अधि॒ पञ्च॑ प्र॒धीँरि॑व ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । दा॒सस्य॑ । व॒र्चिनः॑ । स॒हस्रा॑णि । श॒ता । अ॒व॒धीः॒ । अधि॑ । पञ्च॑ । प्र॒धीन्ऽइ॑व ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत दासस्य वर्चिनः सहस्राणि शतावधीः। अधि पञ्च प्रधीँरिव ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। दासस्य। वर्चिनः। सहस्राणि। शता। अवधीः। अधि। पञ्च। प्रधीन्ऽइव ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 15
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे राजंस्त्वं प्रधीनिव वर्त्तमानान् पञ्च शता सहस्राणि दुष्टानध्यवधीरुतापि वर्चिनो दासस्य जनान् पालय ॥१५॥

    पदार्थः

    (उत) अपि (दासस्य) सेवकस्य (वर्चिनः) बह्वधीतस्य (सहस्राणि) असंख्यानि (शता) शतानि (अवधीः) हन्याः (अधि) (पञ्च) (प्रधीनिव) चक्रस्थानि तीक्ष्णानि कीलकानीव वर्त्तमानान् जगत्कण्टकान् दुष्टान् ॥१५॥

    भावार्थः

    स राजभी राजपुरुषैर्यदि दुष्टान्निवार्य्य श्रेष्ठान् सत्कुर्य्यात्तर्हि सर्वं जगत् तस्य सेवकं भवेत् ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! आप (प्रधीनिव) चक्र में स्थित पैनी कीलों के सदृश वर्त्तमान संसार में कण्टक दुष्टों को (पञ्च) पाँच (शता) सौ वा (सहस्राणि) सहस्रों दुष्टों का (अधि, अवधीः) नाश करो (उत) और (वर्चिनः) बहुत पढ़े हुए (दासस्य) सेवक के जनों को पालिये ॥१५॥

    भावार्थ

    वह राजा जो राजमान राजपुरुषों से यदि दुष्टों का निवारण करके श्रेष्ठों का सत्कार करे तो सम्पूर्ण जगत् उसका सेवक होवे ॥१५॥

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    विषय

    'वर्ची' के शतश: दुर्गों का संहार

    पदार्थ

    [१] 'वर्चस्' शब्द शक्ति के लिये प्रयुक्त होता है। इस शक्ति का प्रयोग उत्तम मार्ग से करनेवाला 'वर्चस्वी' कहलाता है। इस शक्ति का दुरुपयोग करनेवाला 'वर्ची' हो जाता है। (उत) = और (दासस्य) = औरों का उपक्षय करनेवाली (वर्चिन:) = दुष्ट शक्तिवाली आसुर-भावना के पञ्चशता पाँच सौ अथवा (सहस्त्राणि) = हजारों रूपों को हे प्रभो! आप (अधि अवधी:) = आधिक्येन नष्ट करते हैं । [२] इस प्रकार इन्हें नष्ट करते हैं, (इव) = जैसे कि (प्रधीन्) = चक्र के चारों ओर स्थित शंकुओं को नष्ट करते हैं। आसुरभावनाएँ हमें ऐसे ही घेरे रखती हैं, जैसे कि चक्र को शंकु घेरे हुए होते हैं। ये आसुर भावनाएँ अत्यन्त प्रबल होती हैं। ये हमारे विनाश का कारण बनती हैं। प्रभुकृपा से ही इनका विनाश होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम वर्चस्वी बनें, नकि वर्ची । हमारी शक्ति परपीड़न में विनियुक्त होती हुई आसुर न बन जाए।

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    विषय

    राष्ट्र के पांच जनों की रक्षा

    भावार्थ

    (उत) और (वर्चिनः) अन्न, धन, सम्पदावान् (दासस्य) प्रजा के नाशकारी शत्रु के (सहस्राणि) हज़ारों और (शता) सैकड़ों सैन्यों को भी (अवधीः) विनाश कर और (दासस्य) दानशील, सेवकतुल्य और (वर्चिनः) धनधान्य से समृद्ध प्रजाजन वा राष्ट्र की (सहस्राणि शता पञ्च) हज़ारों और सैकड़ों पांचों प्रकार के जनों को (प्रधीः इव) नाभि के चारों अलग परिधियों के समान रक्षकों के तुल्य (अधि अवधीः) अध्यक्ष होकर प्राप्त हो, उनका पालन कर । अध्यात्म में—‘पञ्चप्रधी’ पांच इन्द्रियें हैं । राष्ट्र में पञ्चजन । इत्येकविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने राजपुरुषाद्वारे जर दुष्टांचे निवारण करून श्रेष्ठांचा सत्कार केला तर संपूर्ण जग त्याचे सेवक बनेल. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    But destroy the hundreds and thousands of the violent demons who are fixed in society like five fellies fixed round the spokes of a wheel.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The Statecraft is described more elaborately.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O ruler! as sharp nails affixed in an axle smash the hurdles, the same way, you should destroy hundreds and thousands wickeds thoroughly; and those who are well intelligent and learned and are under your service, you should protect them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The ruler who looks after and protects the State officers from the clutch of the wickeds and gives due respect to the noble persons or people take him to be their master.

    Foot Notes

    (वर्चिनः) बह्वधीतस्य। = Of well learned. (अवधी:) हन्याः । = Kill. (प्रधीनिव) चक्रस्थानि तीक्ष्णानि कीलकानीव वर्त्तमानान् जगत्कराटकान् दुष्टान् । = The wickeds who are like the sharp nails affixed in an axle.

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