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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 41/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रावरुणौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्रा॑ यु॒वं व॑रुणा भू॒तम॒स्या धि॒यः प्रे॒तारा॑ वृष॒भेव॑ धे॒नोः। सा नो॑ दुहीय॒द्यव॑सेव ग॒त्वी स॒हस्र॑धारा॒ पय॑सा म॒ही गौः ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ । यु॒वम् । व॒रु॒णा॒ । भू॒तम् । अ॒स्याः । धि॒यः । प्रे॒तारा॑ । वृ॒ष॒भाऽइ॑व । धे॒नोः । सा । नः॒ । दु॒ही॒य॒त् । यव॑साऽइव । ग॒त्वी । स॒हस्र॑ऽधारा । पय॑सा । म॒ही । गौः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रा युवं वरुणा भूतमस्या धियः प्रेतारा वृषभेव धेनोः। सा नो दुहीयद्यवसेव गत्वी सहस्रधारा पयसा मही गौः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रा। युवम्। वरुणा। भूतम्। अस्याः। धियः। प्रेतारा। वृषभाऽइव। धेनोः। सा। नः। दुहीयत्। यवसाऽइव। गत्वी। सहस्रऽधारा। पयसा। मही। गौः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 41; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्रावरुणा प्रेतारा ! युवमस्या धियो धेनोर्वृषभेव भूतं प्राप्नुतं यथा सा सहस्रधारा मही गौः पयसा यवसेव नोऽस्मान् गत्वी दुहीयत् तथा शुभगुणैः पूरयतम् ॥५॥

    पदार्थः

    (इन्द्रा) विद्यैश्वर्य्ययुक्त (युवम्) युवाम् (वरुणा) प्रशंसितगुण (भूतम्) अतीतम् (अस्याः) (धियः) प्रज्ञायाः (प्रेतारा) प्राप्तारौ (वृषभेव) (धेनोः) (सा) (नः) अस्मान् (दुहीयत्) प्रपूरयेत् (यवसेव) बुसादिनेव (गत्वी) गत्वा प्राप्य (सहस्रधारा) सहस्राण्यसङ्ख्या धाराः प्रवाहा यस्या वाचः सा (पयसा) दुग्धादिना (मही) महती (गौः) गन्त्री ॥५॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे अध्यापकोपदेशका ! भवन्तः सर्वेभ्यः ईदृशीं प्रज्ञां प्रयच्छेयुर्यथा सर्वेऽलङ्कामाः स्युः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर अध्यापकोपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्रा) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त (वरुणा) प्रशंसित गुणवान् (प्रेतारा) प्राप्त होनेवाले ! (युवम्) आप दोनों (अस्याः) इस (धियः) बुद्धि के (धेनोः) गौ के सम्बन्ध में (वृषभेव) बैल के सदृश (भूतम्) व्यतीत हुए विषय को प्राप्त होओ और जैसे (सा) वह (सहस्रधारा) असंख्य प्रवाहवाली वाणी (मही) बड़ी (गौः) चलनेवाली गौ (पयसा) दुग्धादि से (यवसेव) भूसा आदि के सदृश (नः) हम लोगों को (गत्वी) प्राप्त होकर (दुहीयत्) पूर्ण करे, वैसे श्रेष्ठ गुणों से पूर्ण करो ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप सब के लिये ऐसी बुद्धि देओ कि जिससे सब पूर्ण मनोरथवाले होवें ॥५॥

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    विषय

    वेदधेनु का हमारे जीवन में प्रेरण

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्रावरुणा) = इन्द्र व वरुण देवो! (युवम्) = आप दोनों (वृषभा इव) = हमारे पर सुखों का सेचन करनेवालों के समान हो। आप (अस्याः) = इस (धेनोः) = ज्ञानदुग्ध को देनेवाली वेदवाणी रूप गौ की (धियः) = बुद्धियों को ज्ञानों को (प्रेतारा भूतम्) = प्रेरित करनेवाले होओ । इन्द्र व वरुण की कृपा से हमारे लिए यह वेदधेनु प्रेरित हो । [२] (सा) = वह (वेदधेनु न:) = हमारे लिए (यवसा इव) = [ यु मिश्रणामिश्रणयोः] सब बुराइयों के अमिश्रण व अच्छाइयों के मिश्रण के हेतु से ही गत्वी गतिवाली होकर (दुहीयत्) = ज्ञानदुग्ध को प्रपूरित करनेवाली हो। यह (गौ:) = सब पदार्थों का ज्ञान देनेवाली वेदरूप गौ (सहस्रधारा) = सहस्रों प्रकार से हमारा धारण करनेवाली है। (पयसा मही) = अपने ज्ञानदुग्ध के कारण महनीय है। मानव जीवन में इसका स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

    भावार्थ

    भावार्थ– इन्द्र और वरुण हमारे लिए वेदवाणी रूप गौ को प्रेरित करते हैं। यह हमारे लिए ज्ञानदुग्ध को प्राप्त कराके हमारा नाना प्रकार से धारण करती है ।

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    विषय

    गाड़ी के तुल्य वाणी और उसके अभ्यागत गुरु शिष्य, इन्द्र वरुण ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्रावरुणा) ऐश्वर्यवन् और वरण करने योग्य जनो ! (धेनोः वृषभा इव प्रेतारा) जिस प्रकार वीर्य सेचन में समर्थ वृषभ गौ को प्राप्त करते हैं और (सा गौः यवसा इव गत्वी सहस्त्रधारा पयसा दुहीयत्) वह गौ अन्न भुस आदि से युक्त होकर सहस्रों धार वाली होकर दूध से घर को भरपूर करती, बहुत दूध दुहाती है और जिस प्रकार (धेनोः प्रेतारा वृषभा इव) अपने में धारण करने वा दो बलवान् बैलगाड़ी के आगे आकर जुड़ते हैं और (मही गौः) बड़ी गाड़ी (सहस्रधारा) सहस्रों अन्नादि पदार्थों को धारण करने वाली होकर (पयसा नः दुहीयत्) अन्न से घर भर देती है । उसी प्रकार (धेनोः) समस्त ज्ञानों को धारण करने, सब आनन्द रसों का पान कराने वाली (धियः) धारणावती बुद्धि और वाणी को (प्रेतारौ) प्राप्त करने वाले और उसके प्रकृष्ट, सर्वोत्तम रहस्य तक पहुंचाने वाले (युवं भूतम्) आप दोनो होवो । (सा) वह (मही) अति पूज्य (गौः) अर्थों का ज्ञान कराने वाली वाणी और भूमि (यवसौ इव) प्रत्येक तत्व को पृथक्कू २ विवेक से (गत्वी) प्राप्त होकर (सहस्रधारा) सहस्रों वाणियों से युक्त होकर (पयसा) पोषक ज्ञान रस से (नः दुहीयत्) हमें पूर्ण करे । इति पञ्चदशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषि। इन्द्रावरुणौ देवते॥ छन्द:– १, ५, ६, ११ त्रिष्टुप्। २, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ६ विराट् त्रिष्टुप् । ७ पंक्तिः। ८, १० स्वराट् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे अध्यापक व उपदेशक लोकांनो! तुम्ही सर्वांसाठी अशी बुद्धी द्या, ज्यामुळे सर्वजण पूर्ण मनोरथ बाळगणारे व्हावेत. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, leader and giver of knowledge and power, and Varuna, embodiment of cherished virtue and intelligence, as Indra, lord of clouds sends down rain showers on earth and fertilises her, so, be the promoters of the intelligence and enlightenment of the children of the earth so that, as the earth, rich in vegetation, overflows with food in a thousand ways, so the knowledge, language and enlightenment of the community may grow a thousandfold and overflow with creative work on the great moving earth.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the teachers and preachers are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O the noble teachers and preachers! endowed with the great wealth of knowledge, you become the conveyors of this good intellect and speech (knowing their past tendencies), like a bull that excites (for impregnation. Ed.) the milch cow. May that cow (of intellect and speech) bearing thousands of channels yield to us great reward (fulfil our noble desires) like a milch cow that has gone forth to pastures in the company of bull and whose udders are filled with milk.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is an Upamalankara or simile used in the mantra. O teachers and preachers! you should give such a good intellect to all so that they may be able to fulfil their noble desires.

    Foot Notes

    (प्रेतारा ) प्राप्तारौ | = Attainers. (सहस्त्र- धारा) सहस्त्राण्यसङ्ख्याः धाराः प्रवाहा यस्या वाचः सा । सहस्रम् इति बहुनाम (NG 3, 1 ) धेनुरिति वाङ्गनां (NG 1, 11) = Speech that has innumerable flows or channels.

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