ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
वेषि॒ ह्य॑ध्वरीय॒तामु॑पव॒क्ता जना॑नाम्। ह॒व्या च॒ मानु॑षाणाम् ॥५॥
स्वर सहित पद पाठवेषि॑ । हि । अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम् । उ॒प॒ऽव॒क्ता । जना॑नाम् । ह॒व्या । च॒ । मानु॑षाणाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
वेषि ह्यध्वरीयतामुपवक्ता जनानाम्। हव्या च मानुषाणाम् ॥५॥
स्वर रहित पद पाठवेषि। हि। अध्वरिऽयताम्। उपऽवक्ता। जनानाम्। हव्या। च। मानुषाणाम्॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् ! यतस्त्वमध्वरीयतां मानुषाणां जनानामुपवक्ता सन् हि हव्या च वेषि तस्मादुपदेशं कर्तुमर्हसि ॥५॥
पदार्थः
(वेषि) व्याप्नोषि (हि) (अध्वरीयताम्) य आत्मनोऽध्वरमहिंसायज्ञं कर्त्तुमिच्छन्ति तेषाम् (उपवक्ता) उपदेशकानामुपदेशकः (जनानाम्) प्रसिद्धानाम् (हव्या) दातुमर्हाणि (च) (मानुषाणाम्) मानुषेषु भवानाम् ॥५॥
भावार्थः
य उपदेष्टारो धर्मोपदेशकाञ्जनयन्ति सुशिक्षितान् कृत्वोपदेशाय प्रेष्य मनुष्यान् बोधयन्ति ते हि जगत्कल्याणकारका भवन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् ! जिससे आप (अध्वरीयताम्) अपने को अहिंसारूप यज्ञ करनेवाले (मानुषाणाम्) मनुष्यों में उत्पन्न (जनानाम्) प्रसिद्ध पुरुषों को (उपवक्ता) उपदेश देनेवालों के भी उपदेशक हुए (हि) ही (हव्या) देने योग्य वस्तुओं को (च) भी (वेषि) प्राप्त होते हो, इससे उपदेश करने के योग्य हो ॥५॥
भावार्थ
जो उपदेश देनेवाले लोग धर्म्म के उपदेश देनेवालों को उत्पन्न करते और उत्तम प्रकार शिक्षित और उपदेश देने के लिये प्रवृत्त करके मनुष्यों को बोध कराते हैं, वे ही संसार के कल्याण करनेवाले होते हैं ॥५॥
विषय
प्रभु के प्रिय कौन ?
पदार्थ
[१] हे प्रभो! आप (अध्वरीयताम्) = यज्ञों की कामनावाले पुरुषों की (वेषि) = कामना करते हैं । ये पुरुष ही आपको प्रिय होते हैं। आप (जनानाम्) = [जनी प्रादुर्भावे] अपनी शक्तियों के विकास में लगे हुए पुरुषों के (उपवक्ता) = हृदयस्थ होकर समीप से ज्ञानोपदेश करनेवाले हैं, मार्ग दिखानेवाले हैं। [२] (च) = और आप ही (मानुषाणाम्) = विचारशील पुरुषों के हव्या हव्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाले हैं। हे प्रभो ! आप से प्राप्त हव्य पदार्थों का ही सेवन करते हुए ये अपने मानव जीवन को सफल कर पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही हमारे हृदयस्थ होकर ज्ञानोपदेश देते हैं।
विषय
राजा, विद्वान् अग्रणी नायक, और ज्ञानमय प्रभु की उपासना और स्तुति ।
भावार्थ
हे विद्वन् ! राजन् ! नायक ! तू (उपवक्ता) सबको उपदेश करने वाला है । तू (अध्वरीयताम्) हिंसा रहित यज्ञ और अविनश्वर राज्यपालनादि की कामना करने वाले (जानानाम्) मनुष्यों के और (मानुषाणाम्) मननशील विद्वानों के योग्य (हव्या) उत्तम अन्नों और ज्ञानों की (वेषि) कामना कर और उनको आदर पूर्वक ग्रहण कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव। ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १, ३, ४, गायत्री २, ६ विराड्- गायत्री । ५ त्रिपादगायत्री । ७,८ निचृद्गायत्री ॥ षड्जः स्वरः ॥ अष्टरर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे उपदेशक, धार्मिक उपदेशकांना निर्माण करतात. उत्तम प्रकारे शिक्षित होण्यासाठी व उपदेश देण्यासाठी प्रवृत्त करतात व माणसांना बोध करवितात ते जगाचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
You are the guide of the performers of yajna and teacher of the people in general, and you receive the respect and yajnic gifts and fragrances offered by humanity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of enlightened persons is underlined.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person! you are the right man to deliver the things worth-giving's, for those reputed persons who desire to have non-violent sacrifices and pervade (know).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The preachers are benefactors of the world. They train other preachers of Dharma and after training further, send them to enlighten people.
Foot Notes
(वैषि) व्याप्नोषि । = Pervade, here in the sense of knowing well. (हव्या) दातुमर्हार्णि। = Worth giving, knowledge and other good things. (जनानाम्) प्रसिद्धानाम् । = Of the reputed. (अध्वरीयताम् ) य आत्मनोऽध्वरमहिंसायज्ञं कर्त्तुं मिच्छन्ति तेषाम् । = Of the persons who desire to have non-violent sacrificial rites.
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