ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 30/ मन्त्र 10
ऋषिः - बभ्रु रात्रेयः
देवता - इन्द्र ऋणञ्चयश्च
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - धैवतः
समत्र॒ गावो॒ऽभितो॑ऽनवन्ते॒हेह॑ व॒त्सैर्वियु॑ता॒ यदास॑न्। सं ता इन्द्रो॑ असृजदस्य शा॒कैर्यदीं॒ सोमा॑सः॒ सुषु॑ता॒ अम॑न्दन् ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठसम् । अत्र॑ । गावः॑ । अ॒भितः॑ । अ॒न॒व॒न्त॒ । इ॒हऽइ॑ह । व॒त्सैः । विऽयु॑ताः । यत् । आस॑न् । सम् । ताः । इन्द्रः॑ । अ॒सृ॒ज॒त् । अ॒स्य॒ । शा॒कैः । यत् । ई॒म् । सोमा॑सः । सुऽसु॑ताः । अम॑न्दन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
समत्र गावोऽभितोऽनवन्तेहेह वत्सैर्वियुता यदासन्। सं ता इन्द्रो असृजदस्य शाकैर्यदीं सोमासः सुषुता अमन्दन् ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठसम्। अत्र। गावः। अभितः। अनवन्त। इहऽइह। वत्सैः। विऽयुताः। यत्। आसन्। सम्। ताः। इन्द्रः। असृजत्। अस्य। शाकैः। यत्। ईम्। सोमासः। सुऽसुताः। अमन्दन् ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वदुपदेशविषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यदेहेह गावो वत्सैर्वियुता अभित आसँस्ता भवन्तोऽनवन्त। या अस्य शाकैरत्रेन्द्रो गाः समसृजदीं सुषुताः सोमासो यदमन्दँस्तानिन्द्रः समसृजत् ॥१०॥
पदार्थः
(सम्) (अत्र) (गावः) किरणाः (अभितः) (अनवन्त) स्तुवन्तु (इहेह) अस्मिञ्जगति (वत्सैः) [(वियुताः)] वियुक्ताः (यत्) याः (आसन्) भवन्ति (सम्) (ताः) (इन्द्रः) सूर्य्यः (असृजत्) सृजति (अस्य) मेघस्य (शाकैः) शक्तिभिः (यत्) ये (ईम्) सर्वतः (सोमासः) पदार्था ऐश्वर्यवन्तो जीवाः (सुषुताः) सुष्ठु निष्पन्नाः (अमन्दन्) आनन्दन्ति ॥१०॥
भावार्थः
यथा विवत्सा गावो न शोभन्ते तथैवापत्यवद्वर्त्तमानैर्घनैर्वियुक्तो मेघो न शोभते ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वानों के उपदेश विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यत्) जो (इहेह) इस जगत् में (गावः) किरणें (वत्सैः) बछड़ों से (वियुताः) वियुक्त (अभितः) चारों ओर से (आसन्) होती हैं (ताः) उनकी आप लोग (अनवन्त) स्तुति प्रशंसा करें और जिसको (अस्य) इस मेघ के (शाकैः) सामर्थ्यों से (अत्र) इस संसार में (इन्द्रः) सूर्य्य (सम्) अच्छे प्रकार (असृजत्) उत्पन्न करता है वा (ईम्) सब ओर से (सुषुताः) उत्तम प्रकार उत्पन्न (सोमासः) पदार्थ वा ऐश्वर्य्यवाले जीव (यत्) जो (अमन्दन्) आनन्दित होते हैं, उनको सूर्य्य (सम्) एक साथ उत्पन्न करता है ॥१०॥
भावार्थ
जैसे बछड़ों से वियुक्त गौएँ नहीं शोभित होती हैं, वैसे ही सन्तानों के सदृश वर्त्तमान सघन अवयवों से रहित मेघ नहीं शोभित होता है ॥१०॥
विषय
शत्रु की छानवीन, स्वशक्ति वर्धन ।
भावार्थ
भा०- ( यत् ) जो भूमि या राष्ट्र ( इह इह ) यहां यहां, अनेक स्थानों पर की अपने ( वत्सैः ) भीतर वसने वाले प्रजाजनों से, बछड़ों से गौवों के समान ( वियुताः आसन् ) वियुक्त हों, वे ( गावः ) भूमियां या रियासतें ( अभितः ) सब ओर से आकर ( अत्र ) इस राजा के अधीन ( सम् नवन्त ) एक साथ मिलकर रहें । ( अस्य ) इस राजा के (शाकैः) शक्तिशाली सैन्यों से सहायवान् होकर ( यत् ) जब (सु-सुताः सोमासः) उत्तम आदरपूर्वक अभिषिक्त, पुत्रवत् पालित अध्यक्षजन ( ईम् अमन्दन् ) उसको प्रार्थना करें तब वह (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पराक्रमी राजा ( ताः सम् असृजत्) उन सबको मिलाकर एक बड़ी शक्ति बनाले । इति सप्तविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बभ्रुरात्रेय ऋषिः ॥ इन्द्र ऋणञ्चयश्च देवता ॥ छन्दः–१,५, ८, ९ निचृत्त्रिटुप् । १० विराट् त्रिष्टुप् । ७, ११, १२ त्रिष्टुप् । ६, १३ पंक्तिः । १४ स्वराट् पंक्तिः । १५ भुरिक् पंक्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
बछड़े का गौ से मेल
पदार्थ
१. (अत्र) = गतमन्त्र के अनुसार जब हम वासना पर विजय पा लेते हैं तो (गाव:) = ये ज्ञानदुग्ध को देनेवाली वेदवाणीरूप गौएँ (इह) = इस जीवन में (अभितः) = चारों ओर से (सम् अनवन्त) = सम्यक् गतिवाली होती हैं, वे गौएँ (यद्) = जो (इह) = यहाँ (वत्सै:) = [वदति इति वत्सः] वेदमन्त्रों का उच्चारण करनेवाले पुरुष रूप वत्सों से (वियुताः) = वियुक्त [पृथक्] (आसन्) = थीं। पुरुष का वेदवाणी से मेल तो इस प्रकार है जैसा कि बछड़े का अपनी मातृभूत गौ से मेल हो । २. (ताः) = उन वेदवाणी रूप गौवों को (इन्द्रः) = प्रभु (समसृजत्) = इन वत्सों के साथ संसृष्ट कर देता है। (अस्य) = इस बछड़े की (शाकैः) = शक्तियों के हेतुओं से वे प्रभु ऐसा करते हैं जिस बछड़े को मातृदुग्ध पीने को नहीं प्राप्त होता, वह जैसे निर्बल हो जाता है, इसी प्रकार वेदमाता से पृथक् हुआ हुआ पुरुष निर्बल हो जाता है। यह सब होता तब है (यद्) = जब (ईम्) = निश्चय से (सुषुताः) = सम्यक् उत्पन्न हुए हुए (सोमास:) = सोमकण इस सोम रक्षक पुरुष को (अमन्दन्) = आनन्दित करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा प्रभु वत्सतुल्य हम लोगों का गौ के तुल्य वेदवाणी से मेल कर देते हैं। इससे उस वेदवाणी के ज्ञानदुग्ध का पान करके हमारी शक्तियों का पोषण ठीक से होता है।
मराठी (1)
भावार्थ
जशा वासरापासून दूर असलेल्या गाई शोभून दिसत नाहीत तसेच संतानरहिताप्रमाणे कोरडे मेघ शोभून दिसत नाहीत. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
If the cows exult in unison with calves everywhere, if the sunrays play together on the herbs, if the lands smile with greenery and the earth rejoices with her children, and then, suppose the cows were separated from the calves, the rays of the sun were intercepted from the herbs, the lands were locked off from greenery, the earth were bereft of her children, then must Indra, brilliant ruler of the earth and the skies, should join the mothers and children with his might so that the soma drinks distilled may gladden him and his ruling order.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The sermon of the learned persons is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! praise those rays of the sun which are around this world like the cows separated from their calves. It is with the powers of the clouds, that the sun produces many substance and with it, prosper us to make all souls rejoice.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The cows without their calves do not look so fine, the clouds without their component parts which are like their children (the clouds are endeared to all, but they work only under a certain temperature and pressures created by sun and wind. Ed.)
Foot Notes
(गावः) किरणः। गाव इति रश्मिनाम (NG 1,5)। = The rays of the sun. (शार्क:) शक्तिभिः । = With powers. (सोमास:) पदार्था ऐश्वर्येवन्तो षु- प्रसर्वश्वर्ययोः (जीवाः) । = Substances, prosperous souls.
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