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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 38/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अत्रिः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उ॒तो नो॑ अ॒स्य कस्य॑ चि॒द्दक्ष॑स्य॒ तव॑ वृत्रहन्। अ॒स्मभ्यं॑ नृ॒म्णमा भ॑रा॒स्मभ्यं॑ नृमणस्यसे ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तो इति॑ । नः॒ । अ॒स्य । कस्य॑ । चि॒त् । दक्ष॑स्य । तव॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । अ॒स्मभ्य॑म् । नृ॒म्णम् । आ । भा॒र॒ । अ॒स्मभ्य॑म् । नृ॒ऽम॒न॒स्य॒से॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतो नो अस्य कस्य चिद्दक्षस्य तव वृत्रहन्। अस्मभ्यं नृम्णमा भरास्मभ्यं नृमणस्यसे ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतो इति। नः। अस्य। कस्य। चित्। दक्षस्य। तव। वृत्रऽहन्। अस्मभ्यम्। नृम्णम्। आ। भर। अस्मभ्यम्। नृऽमनस्यसे ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 38; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे वृत्रहन् ! तव नोऽस्माकमुतो अस्य कस्यचिद्दक्षस्य नृमणस्यसे स त्वमस्मभ्यं नृम्णमा भरास्मभ्यमभयं देहि ॥४॥

    पदार्थः

    (उतो) अपि (नः) अस्माकम् (अस्य) (कस्य) (चित्) अपि (दक्षस्य) (तव) (वृत्रहन्) यथा सूर्य्यो वृत्रं हन्ति तद्वद्वर्त्तमान (अस्मभ्यम्) (नृम्णम्) नरो रमन्ते यस्मिँस्तद्धनम् (आ) भर (अस्मभ्यम्) (नृमणस्यसे) आत्मनो नृम्णमिच्छसि ॥४॥

    भावार्थः

    स एव नरोत्तमः स्याद्यो राष्ट्रस्य रक्षणे तत्परो भूत्वा वर्तेत ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वृत्रहन्) जैसे सूर्य्य मेघ का नाश करता है, उसके सदृश वर्तमान (तव) आपका और (नः) हम लोगों के (उतो) भी (अस्य) इसके (कस्य) किसके (चित्) भी (दक्षस्य) बलसम्बन्धी (नृमणस्यसे) अपने धन की इच्छा करते हो वह आप (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (नृम्णम्) मनुष्य रमते हैं जिसमें उस धन का (आ, भर) धारण कीजिये और (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये अभय दीजिये ॥४॥

    भावार्थ

    वही श्रेष्ठ मनुष्यों में मुख्य हो, जो राज्य के रक्षण में तत्पर होकर वर्त्ताव करे ॥४॥

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    विषय

    उत्तम राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( उतो ) और हे ( वृत्र-हन् ) वर्धमान, नगरोपरोधी शत्रु को दण्ड देने में समर्थ राजन् ! ( तव ) तेरे ( अस्य ) इस ( कस्य चित् क्रिसी (दक्षस्य ) शत्रुदाहक सामर्थ्य का ही यह (नः) हमारा उत्तम राष्ट्र परिणाम है । तू ( अस्मभ्यम् ) हमारे लाभ के लिये ही ( नृमणस्यसे ) धन की अभिलाषा करता है । तू ( अस्मभ्यम् ) हमारे लिये ही नृम्णम् आ भर) ऐश्वर्य को प्राप्त किया कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १ अनुष्टुप् । २, ३, ४ निचृदनुष्टुप् । ५ विराडनुष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दक्ष-नृम्ण

    पदार्थ

    [१] हे (वृत्रहन्) = वासना को विनष्ट करनेवाले प्रभो ! (उतो) = और (नः) = हमारे लिये (अस्य) = इस (कस्यचित्) = अनिर्देश्य, शब्दों से पूरा-पूरा वर्णन न करने योग्य (तव) = आपके (दक्षस्य) = बल का (आभर) = भरण कीजिये। आपकी उपासना के द्वारा वासनाओं से ऊपर उठकर हम उन्नति के साधनभूत बल को प्राप्त करें। [२] (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये आप (नृम्णम्) = बल व धन को (आभर) = भरिये। आप (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये सदा ही (नृमणस्यसे) = धन व बल को देने की कामना करते हैं। आपके इस नृम्ण को पाने के लिये हम पात्र बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमारी वासनाओं को विनष्ट करके हमें बल व धन को प्राप्त करायें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो राज्याचे रक्षण करण्यात तत्पर, तोच नरोत्तम असतो. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, O lord destroyer of darkness, want and suffering, bring that human wealth of values, honour and excellence which is worthy of anyone here, there and everywhere in terms of efficiency of your divine order. Give us the power and freedom from fear, since you love us and wish us to rise and prosper.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of king's duties is dealt

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king ! like the sun you are destroyer of the clouds. Bring to us the wealth of a powerful men whatsoever, give us fearless, as you are disposed or committed to enrich us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    He is the best among men, who is always engaged in protecting the State.

    Foot Notes

    (नृम्णम् ) नरो रमन्ते यस्मिस्तद्धनम् । नृम्णम् इति धननाम (NG 2, 10) नृभ्यम् इति वलनाम (NG 2, 9) बलम् अभयसाधनम् । = Wealth that delight men. (वृत्रहन् ) यथा सूर्य्यो वृत्तं हन्ति । वृत्त इति मेघनाम (NG 1,10) । = Shining like the sun, the destroyer of the clouds.

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