ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 46/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रतिक्षत्र आत्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
उ॒त नो॒ विष्णु॑रु॒त वातो॑ अ॒स्रिधो॑ द्रविणो॒दा उ॒त सोमो॒ मय॑स्करत्। उ॒त ऋ॒भव॑ उ॒त रा॒ये नो॑ अ॒श्विनो॒त त्वष्टो॒त विभ्वानु॑ मंसते ॥४॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । नः॒ । विष्णुः॑ । उ॒त । वातः॑ । अ॒स्रिधः॑ । द्र॒वि॒णः॒ऽदा । उ॒त । सोमः॑ । मयः॑ । क॒र॒त् । उ॒त । ऋ॒भवः॑ । उ॒त । रा॒ये । नः॒ । अ॒श्विना॑ । उ॒त । त्वष्टा॑ । उ॒त । विभ्वा॑ । अनु॑ । मं॒स॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत नो विष्णुरुत वातो अस्रिधो द्रविणोदा उत सोमो मयस्करत्। उत ऋभव उत राये नो अश्विनोत त्वष्टोत विभ्वानु मंसते ॥४॥
स्वर रहित पद पाठउत। नः। विष्णुः। उत। वातः। अस्रिधः। द्रविणःऽदाः। उत। सोमः। मयः। करत्। उत। ऋभवः। उत। राये। नः। अश्विना। उत। त्वष्टा। उत। विऽभ्वा। अनु। मंसते ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 46; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अवश्यं मनुष्यैरीश्वरादिसेवनं कार्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! नो विष्णुरुत वात उतास्रिधो द्रविणोदा उत सोम उतर्भव उत राये नोऽस्मानुताश्विनोत त्वष्टा विभ्वाऽनु मंसते तैर्विद्वान् मयस्करत् ॥४॥
पदार्थः
(उत) अपि (नः) अस्मान् (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (उत) (वातः) वायुः (अस्रिधः) अहिंसकः (द्रविणोदाः) धनप्रदः (उत) (सोमः) ऐश्वर्य्यवान् (मयः) (करत्) कुर्य्यात् (उत) (ऋभवः) मेधाविनः (उत) (राये) (नः) (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (उत) (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (उत) (विभ्वा) विभुना (अनु) (मंसते) मन्यताम् ॥४॥
भावार्थः
ये मनुष्या ईश्वरादीन् पदार्थान् सेवन्ते ते विदितवेदितव्या जायन्ते ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अवश्य मनुष्यों को ईश्वरादिकों का सेवन करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (नः) हम लोगों को (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (उत) और (वातः) वायु (उत) और (अस्रिधः) नहीं हिंसा करने और (द्रविणोदाः) धन का देनेवाला (उत) और (सोमः) ऐश्वर्य्यवान् (उत) और (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (उत) और (राये) धन के लिये (नः) हम लोगों को (उत) और (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जन (उत) और (त्वष्टा) सूक्ष्म करनेवाला (विभ्वा) समर्थ से (अनु, मंसते) अनुमान करें, उनसे विद्वान् (मयः) सुख को (करत्) सिद्ध करे ॥४॥
भावार्थ
जो मनुष्य ईश्वर आदि पदार्थों का सेवन करते हैं, वे जानने योग्य पदार्थों के जाननेवाले होते हैं ॥४॥
विषय
गृहस्थ के कर्तव्यों का उपदेश । विद्वानों के कर्तव्य ।
भावार्थ
भा०- ( उत) और (नः) हमें (विष्णुः ) व्यापक शक्ति वाला राजा और विद्याओं का वेत्ता विद्वान्, ( उत ) और ( वातः ) वायुवत् पराक्रमी, ( अस्रिधः ) अहिंसक ( द्रविणोः- दाः) धनदाता, ( उत ) और (सोमः) उत्तम ओषधिगण, और ऐश्वर्य, व पुत्र शिष्य आदि ( नः ) हमें (मयः करत् ) सुख प्रदान करें । ( उत ) और ( ऋभवः ) सत्य न्याय आचरण से प्रकाशित होने वाले, अति तेजस्वी पुरुष ( उत अश्विना ) और विद्वान् स्त्री पुरुष ( उत ) और ( त्वष्टा ) तेजस्वी, एवं शिल्पकर्ता ( उत ) और ( विभ्वा ) अन्यविशोध सामर्थ्यवान् पुरुष ये सभी (नः) हमें (राये ) ऐश्वर्य लाभ के लिये ( अनु मंसते ) अनुमति दिया करें, वे उत्तम उपाय तथा सम्मतियां सुझाते रहा करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतिक्षत्र आत्रेय ऋषिः ॥ १ – ६ विश्वेदेवाः॥ ८ देवपत्न्यो देवताः ॥ छन्दः—१ भुरिग्जगती । ३, ५, ६ निचृज्जगती । ४, ७ जगती । २, ८ निचृत्पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
कल्याण प्राप्ति व धनार्जन
पदार्थ
[१] (उत) = और (विष्णु) = यह सर्वव्यापक प्रभु (नः) = हमारे लिये (मयः करत्) = कल्याण को करें । (उत) = और (वातः) = निरन्तर क्रियाशील वायु (अस्त्रिधः) = अहिंसक होती हुई हमारा कल्याण करे । (द्रविणोदाः) = धन का दाता वह प्रभु कल्याण करें। (उत) = और (सोमः) = शान्त प्रभु हमारा कल्याण करे । वस्तुतः कल्याण के लिये 'हृदय की उदारता [विष्णु] क्रियाशीलता [वात] दानवृत्ति [द्रविणोदा] तथा शान्त स्वभाव [सोमः] ' की आवश्यकता है। [२] (उत) = और (ऋभवः) = ऋत के द्वारा दीप्त होनेवाले देव (राये) = ऐश्वर्य के लिये (नः) = हमें (अनुमंसते) = [अनुमन्यन्ताम्] अनुकूल मति दें। ऋभु बनकर हम धनार्जन करें। (उत) = और (अश्विना) = प्राणापान हमें धन के लिये अनुकूल बुद्धि प्राप्त करायें। प्राणसाधना हमें धनार्जन के योग्य करे। (उत) = और (त्वष्टा) = निर्माण की देवता हमें धन के लिये अनुमति दे । निर्माण करते हुए हम धन कमायें। (उत) = और (विम्वा) = विशिष्ट सामर्थ्यवाला देव हमें धनार्जन के लिये क्षम करे।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'व्यापक, क्रियाशील, त्यागवृत्ति व शान्त' बनकर कल्याम को प्राप्त करें। 'ऋत से दीप्त व्यवस्थित जीवनवाले, प्राणसाधक, निर्माता या विशिष्ट सामर्थ्यवाले बनकर धनार्जन करें।'
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे ईश्वराचा स्वीकार करतात ती जाणण्यायोग्य पदार्थांचे जाणकार असतात. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And may the omnipresent lord Vishnu, sustainer of life, Vata, waves of wind and electric energy, the creator and giver of wealth, and Soma, spirit of peace and joy do us good without delay or violence. And may the experts and specialists, and the Ashvins, complementarities of natural evolution, and the maker of forms and sophisticated designs, all with their skill and power and knowledge enlighten and train us in arts and crafts for the achievement of life’s wealth and honour.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Supremacy of God and importance of other objects are described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May we get the knowledge of and serve Omnipresent God, air, non-violent giver of wealth, a prosperous person and wise men. May the teachers and preachers and artisans come to us for the sake of true prosperity, and support us by the race of the all-pervading God.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those men who properly serve God and other beings become knowers of all things worth knowing.
Foot Notes
(अस्रिधः ) अहिंसकः । स्रिधु हिंसायाम् = Non-violent. (ऋभव:) मेधाविनः । ऋभवः इति मेधाविनाम (N G 3, 15) = Wisemen (अश्विना ) अध्यापकोदेशकौ । = Teachers and preachers.
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