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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 49/ मन्त्र 7
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - ब्राह्म्युष्निक् स्वरः - ऋषभः

    पावी॑रवी क॒न्या॑ चि॒त्रायुः॒ सर॑स्वती वी॒रप॑त्नी॒ धियं॑ धात्। ग्नाभि॒रच्छि॑द्रं शर॒णं स॒जोषा॑ दुरा॒धर्षं॑ गृण॒ते शर्म॑ यंसत् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पावी॑रवी । क॒न्या॑ । चि॒त्रऽआ॑युः । सर॑स्वती । वी॒रऽप॑त्नी । धिय॑म् । धा॒त् । ग्नाभिः॑ । अच्छि॑द्रम् । श॒र॒णम् । स॒ऽजोषाः॑ । दुः॒ऽआ॒धर्ष॑म् । गृ॒ण॒ते । शर्म॑ । यं॒स॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पावीरवी कन्या चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी धियं धात्। ग्नाभिरच्छिद्रं शरणं सजोषा दुराधर्षं गृणते शर्म यंसत् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पावीरवी। कन्या। चित्रऽआयुः। सरस्वती। वीरऽपत्नी। धियम्। धात्। ग्नाभिः। अच्छिद्रम्। शरणम्। सऽजोषाः। दुःऽआधर्षम्। गृणते। शर्म। यंसत् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 49; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः कीदृशी स्त्री सुखं दद्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! या पावीरवी चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी कन्या ग्नाभिर्धियं धाद्या गृणते मेऽच्छिद्रं या सजोषाः सती गृणते मे शरणं दुराधर्षं शर्म यंसत्सैव मया सदैव सत्कर्त्तव्या ॥७॥

    पदार्थः

    (पावीरवी) शोधयित्री (कन्या) कमनीया (चित्रायुः) चित्रामायुर्यस्याः सा (सरस्वती) विज्ञानाढ्या (वीरपत्नी) वीरः पतिर्यस्याः सा (धियम्) शास्त्रोत्थां प्रज्ञामुत्तमं कर्म वा (धात्) दधाति (ग्नाभिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (अच्छिद्रम्) छेदरहितम् (शरणम्) आश्रयम् (सजोषाः) समानप्रीतिसेविका (दुराधर्षम्) दुःखेन धर्षितुं योग्यम् (गृणते) स्तावकाय (शर्म) गृहं सुखं वा (यंसत्) ददाति ॥७॥

    भावार्थः

    या विदुषी शुभगुणकर्मस्वभावा कन्या स्यात्तामेव वीरपुरुष उद्वहेत्। यस्याः सङ्गप्रीती कदाचिन्न नश्येतां या सर्वदा सुखं दद्यात्सा पत्नी पत्या यथावत् सत्कर्त्तव्या ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर कैसी स्त्री सुख देवे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (पावीरवी) शुद्ध करनेवाली (चित्रायुः) चित्र विचित्र जिसकी आयु वह (सरस्वती) विज्ञानयुक्त (वीरपत्नी) वीर पतिवाली (कन्या) मनोहर (ग्नाभिः) सुन्दर शिक्षित वाणियों से (धियम्) शास्त्रोत्थ प्रज्ञा उत्तम बुद्धि वा कर्म को (धात्) धारण करती है वा जो (गृणते) स्तुति करनेवाले मेरे लिये (अच्छिद्रम्) छेदरहित व्यवहार को तथा जो (सजोषाः) समान प्रीति की सेवनेवाली होती हुई स्तुति करनेवाले मेरे लिये (शरणम्) आश्रय को वा जो (दुराधर्षम्) दुःख से धृष्टता के योग्य (शर्म) घर वा सुख को (यंसत्) देती है, वही मुझसे सदैव सत्कार करने योग्य है ॥७॥

    भावार्थ

    जो विदुषी शुभगुण, कर्म, स्वभाववाली कन्या हो, उसी को वीर पुरुष विवाहे, जिसका सङ्ग वा प्रीति कभी नष्ट न हो तथा जो सर्वदा सुख दे, वह पत्नी पति से सर्वदा सत्कार करने योग्य है ॥७॥

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    विषय

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    भावार्थ

    ( पावीरवी ) आचारादि को पवित्र करने वाली, ( कन्या ) कान्तिमती, कन्या ( चित्रायुः ) आश्चर्यजनक आगमन, वा जीवन वाली, ( सरस्वती ) उत्तम ज्ञान से युक्त, ( वीरपत्नी ) वीर पुरुष की स्त्री, ( ग्नाभिः ) वेद वाणियों से ( धियं धात् ) यज्ञ आदि कर्म करे । वह ( सजोषाः ) समान प्रीतियुक्त होकर (गृणते) मुझे स्तुति करने वाले. को (दुराधर्षं) दृढ़ (शरणं ) गृह और ( शर्म) सुख ( यंसत् ) प्रदान करे ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वे देवा देवता ॥ छन्दः - १, ३, ४, १०, ११ त्रिष्टुप् । ५,६,९,१३ निचृत्त्रिष्टुप् । ८, १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १४ स्वराट् पंक्तिः । ७ ब्राह्मयुष्णिक् । १५ अतिजगती । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    वीर पत्नी सरस्वती

    पदार्थ

    [१] (वीरपत्नी) = वीरों का पालन करनेवाली सरस्वती ज्ञान देवता (पावीरवी) = हमारे जीवनों का शोधन करनेवाली है। (कन्या) = हमारे जीवनों को दीप्त करती है [कन दीप्तौ] । (चित्रायुः) = [चित्] ज्ञानयुक्त जीवन को प्राप्त कराती है। यह (धियं धात्) = हमारे में बुद्धि का स्थापन करे। [२] यह सरस्वती (ग्नाभिः) = वेदवाणी के छन्दों से (सजोषाः) = प्रीतिवाली होती हुई (गृणते) = स्तोता के लिये (अच्छिद्रं शरणम्) = निर्दोष शरीररूप गृह को तथा (दुराधर्षं शर्म) = शत्रुओं से अधर्षणीय सुख को (यंसत्) = देती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सरस्वती की आराधना हमारे जीवन को पवित्र दीप्त व ज्ञानयुक्त करती । यह हमारे जीवनों में बुद्धि का स्थापन करती है। शरीररूप गृह को निर्दोष बनाती है तथा शत्रुओं से अधर्षणीय सुख को प्राप्त कराती है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी शुभ, गुण, कर्म स्वभावाची कन्या असेल तिच्याशीच वीर पुरुषाने विवाह करावा. जिची संगत किंवा प्रेम कधी नष्ट होत नाही तसेच नेहमी सुख देते त्या पत्नीचा पतीने सदैव सत्कार करावा. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Gracious Sarasvati, mother harbinger of knowledge and sacred speech, wondrous of form and life energy, spirit of purity and sanctity inspired and protected by omniscient and omnipotent Lord, may, we pray, bring us knowledge and wisdom in words of divine revelation and, loving and kind as the mother is, may she bless the celebrant with faultless haven and home of peace and well being free from fear and violence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What kind of women can give happiness-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should also always honor that desirable wife, who is purifier of others, has wonderful life, is rich in knowledge, the wife of a brave man, who upholds scriptures, good intellect or good actions with well-trained speeches, who always admires good virtues, gives flawless shelter, home or happiness which is inviolable and free from defect (hole).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A brave person should marry a highly learned girl, who is endowed with good virtues, actions and charm. That woman should always be honored, whose association and love never decay and who always bestows happiness.

    Foot Notes

    (पावीरवी) शोधयित्नी । पूङ्-पवने | = Purifier. (सरस्वती) विज्ञानाढया । सृ-गतौ । गतेस्त्रिष्वर्थेष्वत्र ज्ञानार्थं ग्रहणम् = Rich in knowledge. (शर्मं) गृहं सुखं वा । शर्मेति गृहनाम (NG 3, 4 ) शर्मेति सुखनाम (NG 3, 6)। = Home or happiness. (ग्नाभि:) सुशिक्षितभिर्वाग्भिः । ग्ना इति वाङ्नाम (NG 1, 11)। = With well trained or cultured speeches.

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