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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 21/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सखा॑यस्त इन्द्र वि॒श्वह॑ स्याम नमोवृ॒धासो॑ महि॒ना त॑रुत्र। व॒न्वन्तु॑ स्मा॒ तेऽव॑सा समी॒के॒३॒॑भी॑तिम॒र्यो व॒नुषां॒ शवां॑सि ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सखा॑यः । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । वि॒श्वह॑ । स्या॒म॒ । न॒मः॒ऽवृ॒धासः॑ । म॒हि॒ना । त॒रु॒त्र॒ । व॒न्वन्तु॑ । स्म॒ । ते॒ । अव॑सा । स॒मी॒के । अ॒भिऽइ॑तिम् । अ॒र्यः । व॒नुषा॑म् । शवां॑सि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सखायस्त इन्द्र विश्वह स्याम नमोवृधासो महिना तरुत्र। वन्वन्तु स्मा तेऽवसा समीके३भीतिमर्यो वनुषां शवांसि ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सखायः। ते। इन्द्र। विश्वह। स्याम। नमःऽवृधासः। महिना। तरुत्र। वन्वन्तु। स्म। ते। अवसा। समीके। अभिऽइतिम्। अर्यः। वनुषाम्। शवांसि ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 21; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः कस्य मित्रता कार्येत्याह ॥

    अन्वयः

    हे तरुतेन्द्र ! नमोवृधासो वयं महिना विश्वह ते सखायः स्याम ये ते समीकेऽवसाऽभीतिं वनुषां शवांसि च वन्वन्तु स्मार्यस्त्वमेतदेषां दध्याः ॥९॥

    पदार्थः

    (सखायः) सुहृदः सन्तः (ते) तव (इन्द्र) राजन् (विश्वह) सर्वाणि दिनानि (स्याम) (नमोवृधासः) अन्नस्य वर्धका अन्नेन वृद्धा वा (महिना) महिम्ना (तरुत्र) दुःखात्तारक (वन्वन्तु) याचन्ताम् (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) तव (अवसा) रक्षणादिना (समीके) समीपे (अभीतिम्) अभयम् (अर्यः) स्वामी वैश्यः (वनुषाम्) याचकानाम् (शवांसि) बलानि ॥९॥

    भावार्थः

    ये धार्मिकस्य राज्ञो नित्यं सख्यमिच्छन्ति ते महिम्ना सत्क्रियन्ते ये प्रजाऽभ्योऽभयं ददति ते प्रत्यहं बलिष्ठा जायन्ते ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर किसकी मित्रता करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (तरुत्र) दुःख से तारनेवाले (इन्द्र) राजा ! (नमोवृधासः) अन्न के बढ़ाने वा अन्न से बढ़े हुए हम लोग (महिना) बड़प्पन से (विश्वह) सब दिनों (ते) आपके (सखायः) मित्र (स्याम) हों जो (ते) आपके (समीके) समीप में (अवसा) रक्षा आदि से (अभीतिम्) अभय और (वनुषाम्) मंगता जनों के (शवांसि) बलों को (वन्वन्तु, स्म) ही मांगे (अर्यः) वैश्यजन आप इनके इस पदार्थ को धारण करो ॥९॥

    भावार्थ

    जो धार्मिक राजा से नित्य मित्रता करने की इच्छा करते हैं, वे बड़प्पन से सत्कार पाते हैं, जो प्रजा को अभय देते हैं, वे प्रतिदिन बलिष्ठ होते हैं ॥९॥

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    विषय

    रक्षक उत्तम सखा ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे ( तस्त्र ) शत्रुओं को मारने और शरणागत प्रजाओं को दुःखों और संकटों से पार उतारने वाले राजन् ! स्वामिन् ! प्रभो ! ( ते ) तेरे हम लोग ( विश्वह ) सदा ( सखायः ) मित्र, स्नेही और ( महिना ) तेरे महान् सामर्थ्य से ( नमोः वृधासः ) नमस्कार, विनय, अन्न और शस्त्र बल से बढ़ने और बढ़ाने हारे ( स्याम ) हों । ( समीके ) रण में ( ते ) तेरे (अवसा ) रक्षण सामर्थ्य से ही प्रजास्थ पुरुष ( अभीतिम् वन्वन्तु ) अभय प्राप्त करें और ( अभी-इतिम् वन्वन्तु ) अभिगमन, अर्थात् अभिमुख प्रयाण करें और (वनुषां शवांसि ) हिंसक शत्रुओं के बलों के प्रति ( अभि-इतिम् वन्वन्तु ) प्रयाण करें और उनके आक्रमण को नाश करें । तू उनका ( अर्यः) स्वामी होकर रक्षा कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १, ६, ८,९ विराट् त्रिष्टुप् । २, १० निचृत्त्रिष्टुप् । ३, ७ भुरिक् पंक्तिः । ४, ५ स्वराट् पंक्तिः ।। दशर्चं सूक्तम ।।

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    विषय

    हम इन्द्र के सखा हो जाएँ

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन्! हे (तरुत्र) = शत्रु नाशक ! (ते) = तेरे हम लोग (विश्वह) = सदा (सखायः) = मित्र और (महिना) = तेरे सामर्थ्य से (नमः-वृधासः) = अन्न और शस्त्र से बढ़नेहारे (स्याम) = हों । समीके रण में (ते) = तेरे (शवसा) = रक्षण-सामर्थ्य से ही प्रजास्थ पुरुष (अभीतिम् वन्वन्तु) = अभय पायें और (वनुषां शवांसि) = हिंसक शत्रु बलों के प्रति (अभि-हितम् वन्वन्तु) = प्रयाण करें। तू उनका (अर्यः) = स्वामी होकर रक्षा कर अनार्यों के

    भावार्थ

    भावार्थ- हम स्तुति द्वारा इन्द्र के सखा हो जावें और परमैश्वर्यशाली परमात्मा बल को नष्ट कर आर्यों की रक्षा करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे धार्मिक राजाबरोबर नित्य मैत्री करण्याची इच्छा बाळगतात त्यांचे महत्त्व वाढून त्यांचा सत्कार केला जातो. जे प्रजेला अभय देतात ते प्रत्येक दिवशी बलवान होतात. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O saviour triumphant, while we worship and glorify you daily with greater and greater love, faith and strength of loyalty, pray let us be your friends for ever. O lord and master of the people, let us all be close to you and, under your protection, let us all win and enjoy freedom from fear and strength worthy of the seekers of Divinity.

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