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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    गृ॒भी॒तं ते॒ मन॑ इन्द्र द्वि॒बर्हाः॑ सु॒तः सोमः॒ परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि। विसृ॑ष्टधेना भरते सुवृ॒क्तिरि॒यमिन्द्रं॒ जोहु॑वती मनी॒षा ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गृ॒भी॒तम् । ते॒ । मनः॑ । इ॒न्द्र॒ । द्वि॒ऽबर्हाः॑ । सु॒तः । सोमः॑ । परि॑ऽसिक्ता । मधू॑नि । विसृ॑ष्टऽधेना । भ॒र॒ते॒ । सु॒ऽवृ॒क्तिः । इ॒यम् । इन्द्र॑म् । जोहु॑वती । म॒नी॒षा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गृभीतं ते मन इन्द्र द्विबर्हाः सुतः सोमः परिषिक्ता मधूनि। विसृष्टधेना भरते सुवृक्तिरियमिन्द्रं जोहुवती मनीषा ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गृभीतम्। ते। मनः। इन्द्र। द्विऽबर्हाः। सुतः। सोमः। परिऽसिक्ता। मधूनि। विसृष्टऽधेना। भरते। सुऽवृक्तिः। इयम्। इन्द्रम्। जोहुवती। मनीषा ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स्त्रीपुरुषौ किं कृत्वा विवाहं कुर्यातामित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! या विसृष्टधेना सुवृक्तिरियं मनीषेन्द्रं जोहुवती भरते यया ते मनो गृभीतं यो द्विबर्हाः सुतः सोमोऽस्ति यत्र परिषिक्तानि मधूनि सन्ति तं सेवस्व ॥२॥

    पदार्थः

    (गृभीतम्) गृहीतम् (ते) तव (मनः) अन्तःकरणम् (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (द्विबर्हाः) द्वाभ्यां विद्यापुरुषार्थाभ्यां यो वर्धते सः (सुतः) निष्पादितः (सोमः) ओषधिरसः (परिषिक्ता) सर्वतः सिक्तानि (मधूनि) क्षौद्रादीनि (विसृष्टधेना) विविधविद्यायुक्ता धेना वाग्यस्याः सा (भरते) धरति (सुवृक्तिः) शोभना वृक्तिः वर्त्तनं यस्याः सा (इयम्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यप्रदं पुरुषम् (जोहुवती) या भृशमाह्वयति (मनीषा) प्रिया ॥२॥

    भावार्थः

    या स्त्री सुविचारेण स्वप्रियं पतिं प्राप्य गर्भं बिभर्ति सा पत्युश्चित्ताकर्षिका वशकारिणी भूत्वा वीरसुतं जनयित्वा सर्वदाऽऽनन्दति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे स्त्री-पुरुष क्या करके विवाह करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) परमैश्वर्य के देनेवाले जो (विसृष्टधेना) नाना प्रकार की विद्यायुक्त वाणी और (सुवृक्तिः) सुन्दर चाल ढाल जिसकी ऐसी (इयम्) यह (मनीषा) प्रिया स्त्री (इन्द्रम्) परमैश्वर्य देनेवाले पुरुष को (जोहुवती) निरन्तर बुलाती है उसको (भरते) धारण करती है जिसने (ते) तेरा (मनः) मन (गृभीतम्) ग्रहण किया तथा जो (द्विबर्हाः) दो से अर्थात् विद्या और पुरुषार्थ से बढ़ता वह (सुतः) उत्पन्न किया हुआ (सोमः) ओषधियों का रस है और जहाँ (परिषिक्ता) सब ओर से सींचे हुए (मधूनि) दाख वा सहत आदि पदार्थ हैं, उन्हें सेवो ॥२॥

    भावार्थ

    जो स्त्री सुविचार से अपने प्रिय पति को प्राप्त होके गर्भ को धारण करती है, वह पति के चित्त को खींचने और वश में करनेवाली होकर वीर सुत को उत्पन्न कर सर्वदा आनन्दित होती है ॥२॥

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    विषय

    उत्तम गृहपतिवत् राष्ट्रपति का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( इयम् ) यह (सु-वृक्तिः ) उत्तम सद् व्यवहार और उत्तम सेवा करने वाली ( मनीषा ) मन से प्रिय, मनोहारिणी, (विसृष्ट-धेना ) विविध उत्तम वाणी बोलने वाली स्त्री ( इन्द्रं ) ऐश्वर्य युक्त पुरुष को ( जोहुवती ) प्राप्त करती हुई ( परि-सिक्ता ) गर्भाशय में निषिक्त ( मधूनि ) वीर्यों को ( भरते ) धारण करती है । हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्य देने हारे ! ( ते मनः गृभीतं ) तेरा मन उस स्त्री द्वारा ग्रहण किया जाय । तेरा (सुतः) उत्पन्न हुआ (सोमः) पुत्र (द्वि-बर्हाः) माता पिता दोनों द्वारा वृद्धि को प्राप्त और दोनों को बढ़ाने हारा हो । इसी प्रकार हे ( इन्द्र ) राजन् ! राष्ट्र में (मधूनि परिषिक्ता) नाना जल सिंचें । (द्विबर्हाः) मेघ और पृथिवी दोनों से बढ़ने वाला (सोमः सुतः) ओषधिगण उत्पन्न हो । राजवर्ग प्रजावर्ग दोनों को बढ़ाने वाला राजा अभिषेक को प्राप्त हो । ( ते मनः गृभीतम् ) तेरा मन राष्ट्र में लगे । ( सु-वृक्तिः ) उत्तम रीति से विभक्त ( इयम् ) यह भूमि ( विसृष्ट-धेना ) नाना शासनाज्ञा से युक्त होकर ( मनीषा ) मनभावनी होकर ( इन्द्रं जोहुवती ) राजा को पुकारती, अपनाती और करादि देती हुई, (भरते) समस्त प्रजाजन को अपने में धारण करती, पालती है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः –१, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप् । ६ विराट् पंक्तिः ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    मनुष्य यज्ञशील बनें

    पदार्थ

    पदार्थ - (इयम्) = यह (सु-वृक्तिः) = सद्व्यवहारवाली (मनीषा) = मनोहारिणी (विसृष्टधेना) = उत्तम भूमि (इन्द्रं) = ऐश्वर्य युक्त वर्षा जल को जोहुवती प्राप्त करती हुई (परि-सिक्ता) = गर्भाशय में निषिक्त (मधूनि) = मधुर जल को (भरते) = धारण करे। हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यदात! (ते मनः गृभीतं) = तेरा मन उस भूमि द्वारा ग्रहण किया जाय। उससे (सुतः) = उत्पन्न (सोमः) = सोम ओषधियाँ (द्वि-बर्हाः) = राष्ट्र को राष्ट्रीय प्रजा दोनों का वृद्धि को प्राप्त और दोनों को सम्पन्न करें।

    भावार्थ

    भावार्थ राष्ट्र के निवासी भूमि को मेहनत से उपजाऊ बनाकर नाना औषधियाँ एवं वनस्पतियों को उगाकर राष्ट्र को समृद्ध करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी स्त्री विचारपूर्वक प्रिय पती प्राप्त करते व गर्भ धारण करते ती पतीचे चित्त आकर्षित करून वीर पुत्राला जन्म देऊन सदैव आनंदित असते. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, brilliant lord, accepted is your mind wholly, both wish and will, ideas and intentions, philosophy and policy, ethics and action. The soma of joy and celebration is distilled and ready. The honey sweets are exuberant and overflowing. The general will, single voice and enthusiastic resolution of this generous land initiates, invites and anoints you in your seat.

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