ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 20
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
आ यन्नः॒ पत्नी॒र्गम॒न्त्यच्छा॒ त्वष्टा॑ सुपा॒णिर्दधा॑तु वी॒रान् ॥२०॥
स्वर सहित पद पाठआ । यत् । नः॒ । पत्नीः॑ । गम॑न्ति । अच्छ॑ । त्वष्टा॑ । सु॒ऽपा॒णिः । दधा॑तु । वी॒रान् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ यन्नः पत्नीर्गमन्त्यच्छा त्वष्टा सुपाणिर्दधातु वीरान् ॥२०॥
स्वर रहित पद पाठआ। यत्। नः। पत्नीः। गमन्ति। अच्छ। त्वष्टा। सुऽपाणिः। दधातु। वीरान् ॥२०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 20
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 10
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 10
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजामात्यभृत्याः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यथा यद्याः पत्नीर्नोऽच्छाऽऽगमन्ति रक्षन्ति यथा च वयं ता रक्षेम तथा त्वष्टा सुपाणिर्भवान् वीरान् दधातु ॥२०॥
पदार्थः
(आ) (यत्) याः (नः) अस्मानस्माकं वा (पत्नीः) भार्याः (गमन्ति) प्राप्नुवन्ति (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (त्वष्टा) दुःखच्छेदकः (सुपाणिः) शोभनहस्तो राजा (दधातु) (वीरान्) शौर्यादिगुणोपेतान्नमात्यादिभृत्यान् ॥२०॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पतिव्रताः स्त्रियः स्त्रीव्रताः पतयश्च परस्परेषां प्रीत्या रक्षां विदधति तथा राजा धार्मिकानमात्यभृत्याश्च धार्मिकं राजानं सततं रक्षन्तु ॥२०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा और अन्य भृत्य परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जैसे (यत्) जो (पत्नीः) भार्या (नः) हम लोगों को (अच्छा) अच्छे प्रकार (आ, गमन्ति) प्राप्त होती और रक्षा करती हैं और जैसे हम लोग उनकी रक्षा करें, वैसे (त्वष्टा) दुःख विच्छेद करनेवाला (सुपाणिः) सुन्दर हाथों से युक्त राजा आप (वीरान्) शूरता आदि गुणों से युक्त मन्त्री और भृत्यों को (दधातु) धारण करो ॥२०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे पतिव्रता स्त्री स्त्रीव्रत पति जन परस्पर की प्रीति से रक्षा करते हैं, वैसे राजा धार्मिकों की, अमात्य और भृत्यजन धार्मिक राजा की निरन्तर रक्षा करें ॥२०॥
विषय
तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( यत् ) जब ( पत्नी: ) स्त्रियें ( नः ) हमें ( अच्छ आ गमन्ति ) भली प्रकार प्राप्त हों तब ( त्वष्टा ) तेजस्वी राजा ( सु-पाणिः ) उत्तम व्यवहारज्ञ होकर ( वीरान् ) वीर पुरुषों तथा हमारे पुत्रों की भी (दधातु) रक्षा करे । उनको राष्ट्र रक्षा पर नियुक्त करे । इति षड्विंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
वीर सन्तान
पदार्थ
पदार्थ- (यत्) = जब (पत्नीः) = स्त्रियें (नः) = हमें (अच्छ आ गमन्ति) = भली प्रकार प्राप्त हों तब (त्वष्टा) = तेजस्वी राजा (सु-पाणिः) = उत्तम व्यवहारज्ञ होकर (वीरान्) = वीर पुरुषों तथा हमारे पुत्रों की भी (दधातु) = रक्षा करे । उनको राष्ट्र-रक्षा पर नियुक्त करे।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र की स्त्रीयाँ वीर प्रसूता होवें और राजा उन वीर सन्तानों को राष्ट्र की रक्षा हेतु नियुक्त करे। माताएँ ऐसी राष्ट्र-भक्त वीर सन्तानों से धन्य होती हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पतिव्रता स्त्री व स्त्रीव्रती पती परस्परांवर प्रेम करून एकमेकांचे रक्षण करतात तसे राजाने धार्मिकांची, अमात्य व सेवकांनी धार्मिक राजाची निरंतर सेवा करावी. ॥ २० ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
And when wives come and meet us, may Tvashta, lord destroyer of suffering and dexterous maker of graceful forms, bless us with brave and handsome children.
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