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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 62/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    द्यावा॑भूमी अदिते॒ त्रासी॑थां नो॒ ये वां॑ ज॒ज्ञुः सु॒जनि॑मान ऋष्वे । मा हेळे॑ भूम॒ वरु॑णस्य वा॒योर्मा मि॒त्रस्य॑ प्रि॒यत॑मस्य नृ॒णाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यावा॑भूमी॒ इति॑ । अ॒दि॒ते॒ । त्रासी॑थाम् । नः॒ । ये । वा॒म् । ज॒ज्ञुः । सु॒ऽजनि॑मानः । ऋ॒ष्वे॒ इति॑ । मा । हेळे॑ । भू॒म॒ । वरु॑णस्य । वा॒योः । मा । मि॒त्रस्य॑ । प्रि॒यऽत॑मस्य । नृ॒णाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यावाभूमी अदिते त्रासीथां नो ये वां जज्ञुः सुजनिमान ऋष्वे । मा हेळे भूम वरुणस्य वायोर्मा मित्रस्य प्रियतमस्य नृणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्यावाभूमी इति । अदिते । त्रासीथाम् । नः । ये । वाम् । जज्ञुः । सुऽजनिमानः । ऋष्वे इति । मा । हेळे । भूम । वरुणस्य । वायोः । मा । मित्रस्य । प्रियऽतमस्य । नृणाम् ॥ ७.६२.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 62; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (द्यावाभूमी) हे प्रकाशस्वरूप सर्वाधार ! (अदिते) अखण्डनीय परमात्मन् ! (नः) अस्मान् (त्रासीथाम्) त्रायस्व (ऋष्वे) हे सर्वोपरि विराजमान जगदीश्वर ! (वाम्) शक्तिद्वयरूपेणास्थितं त्वां (ये सुजनिमानः) पुण्यकर्माणः (जज्ञुः) ज्ञातवन्तः तेषामुपरि (नृणां प्रियतमस्य) लोकानामिष्टतमस्य (नः) अस्माकं (वरुणस्य) अपानवायोः (मित्रस्य, वायोः) प्राणवायोश्च वयं (हेडे) प्रकोपे (मा भूम) मा स्याम ॥४॥

    भावार्थः

    हे सर्वोपरिवर्त्तमान परमात्मन् ! मनुष्यजन्म धृत्वाऽस्माभिः सच्चिदानन्दस्वरूपः त्वमुपलब्धः, अन्यच्चास्माकं त्वमेक एव स्वामी, अतोऽस्माभिरिदं प्रार्थ्यते यत् अस्मभ्यं प्राणापानवायू मा प्रकुप्यताम्, उक्तवायुद्वयस्य संयमात् प्राणापानगतौ बुद्ध्वा अनया दिशा प्राणायामेन भवत्स्वरूपज्ञानमनुभवाम इयमेवास्माकमभ्यर्थनेति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (द्यावाभूमी, अदिते)  हे प्रकाशस्वरूप, सर्वाधीर, अखण्डनीय परमात्मन् ! आप (नः) हमारी (त्रासीथाम्) रक्षा करें, (ऋष्वे) हे सर्वोपरिविराजमान जगदीश्वर ! (ये, सुजनिमानः) जो मनुष्यजन्मवाले हमने (वाम्) आपको (जज्ञुः) जाना है, इसलिए (वरुणस्य, वायोः) प्राणवायु (नृणां, प्रियतमस्य) जो मनुष्यों को प्रिय है, उसका कोप (मा) न हो और (मित्रस्य) अपानवायु का भी (हेडे) प्रकोप (मा, भूम) मत हो ॥४॥

    भावार्थ

    हे सर्वोपरि वर्त्तमान परमात्मन् ! आप सच्चिदानन्दस्वरूप हैं, हमने मनुष्यजन्म पाकर आपको लाभ किया है, इसलिए हम प्रार्थना करते हैं कि हम पर प्राणवायु का कभी प्रकोप न हो और नाही हम पर कभी अपानवायु कुपित हो, इन दोनों के संयम से हम सदैव आपके ज्ञान का लाभ उठायें अर्थात् प्राणों के संयमरूप प्राणायाम द्वारा हम आपके ज्ञान की वृद्धि करते हुए प्राणापान वायु हमारे लिये कभी दुःख का कारण न हों, यह प्रार्थना करते हैं ॥४॥

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    विषय

    आकाश-भूमिवत् माता पिता का कर्त्तव्य । प्रजा का हित ।

    भावार्थ

    हे ( द्यावाभूमी) आकाश और पृथिवी के समान ज्ञानप्रकाश और आश्रय देने वाले (अदिते ) अदीन, माता पिता जनो ! आप दोनों ( नः त्रासीथाम् ) हमारी रक्षा करो। हे (ऋष्वे ) गुणों में महान् आप दोनों ( ये ) जो ( सु-जनिमानः ) उत्तम जन्म प्राप्त होकर ( वां ) तुम दोनों को ( जज्ञुः ) उत्तम पूज्य करके जानते हैं वे आप दोनों हमारी रक्षा करें । हम लोग ( वरुणस्य हेडे मा भूम ) श्रेष्ठ पुरुष के क्रोध या अनादर के पात्र न हों। ( नृणाम् ) सर्वसाधारण मनुष्यों के और ( प्रियतमस्य मित्रस्य ) प्रियतम मित्र के और ( वायोः ) वायु के समान उपकारक बलवान् पुरुष के भी क्रोध या अनादर में ( मा भूम ) न रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १–३ सूर्यः। ४-६ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः–१, २, ६ विरात्रिष्टुप् । ३, ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उत्तम संस्कारित सन्तान [माता-पिता का कर्त्तव्य]

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (द्यावाभूमी) = आकाश और पृथिवी के समान ज्ञान प्रकाश और आश्रयदाता (अदिते) = माता-पिता जनो! आप दोनों (नः त्रासीथाम्) = हमारी रक्षा करो। हे (ऋष्वे) = गुणों में महान् आप दोनों (ये) = जो (सु-जनिमान:) = उत्तम जन्म प्राप्त होकर (वां) = तुम दोनों को (जज्ञः) = पूज्य जानते हैं वे आप दोनों हमारी रक्षा करें। हम लोग (वरुणस्य हेडे मा भूम) = श्रेष्ठ पुरुष के क्रोध या अनादर के पात्र न हों। (नृणाम्) = साधारण मनुष्यों, (प्रियतमस्य मित्रस्य) = प्रियतम मित्र और (वायोः) = वायु के समान उपकारक पुरुष के भी (हेडे मा भूम) = क्रोध या अनादर में न रहें।

    भावार्थ

    भावार्थ- उत्तम माता-पिता अपनी सन्तानों को उत्तम संस्कारों से युक्त करें। सन्तान ज्ञानी, गुणवान् तथा संस्कारित होगी तो उत्तम व्यवहार से श्रेष्ठ विद्वान जनों की संगति में जाने पर उनके स्नेह की भाजन बनेगी। विद्वान् तो दूर साधारण मनुष्य भी ऐसी सन्तान पर क्रोध न करके उनकी प्रशंसा ही करेंगे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O sun in high heaven and noble earth, both dynamic, inviolable and sublime life giving powers, protect us with your creative and rejuvenating powers.$Fortunately bom and educated as humans, we know your energy and efficacy. Give us the energy and resistance so that we may never suffer the disorder of prana and aparna vitalities of wind and respiration, dearest to humans in the health system.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सर्वोत्तम परमेश्वरा! तू सच्चिदानंदस्वरूप आहेस. आम्ही मनुष्य जन्म प्राप्त करून तुझा लाभ घेतला आहे. त्यासाठी प्रार्थना करतो, की आमच्यावर प्राणवायूचा कधीही प्रकोप होऊ नये. आमच्यावर कधी अपानवायू कुपित होऊ नये. या दोन्हींच्या संयमाने आम्ही सदैव तुझे ज्ञान प्राप्त करावे. अर्थात, प्राणांच्या संयमरूप प्राणायामाद्वारे आम्ही ज्ञानाची वृद्धी करावी. प्राणापान वायू आमच्या दु:खाचे कारण बनू नये हीच प्रार्थना करतो ॥४॥

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