ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 67/ मन्त्र 5
प्राची॑मु देवाश्विना॒ धियं॒ मेऽमृ॑ध्रां सा॒तये॑ कृतं वसू॒युम् । विश्वा॑ अविष्टं॒ वाज॒ आ पुरं॑धी॒स्ता न॑: शक्तं शचीपती॒ शची॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठप्राची॑म् । ऊँ॒ इति॑ । दे॒वा॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । धिय॑म् । मे॒ । अमृ॑ध्राम् । सा॒तये॑ । कृ॒त॒म् । व॒सु॒ऽयुम् । विश्वाः॑ । अ॒वि॒ष्ट॒म् । वाजे॑ । आ । पुर॑म्ऽधीः । ता । नः॒ । श॒क्त॒म् । श॒ची॒प॒ती॒ इति॑ शचीऽपती । शची॑भिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राचीमु देवाश्विना धियं मेऽमृध्रां सातये कृतं वसूयुम् । विश्वा अविष्टं वाज आ पुरंधीस्ता न: शक्तं शचीपती शचीभिः ॥
स्वर रहित पद पाठप्राचीम् । ऊँ इति । देवा । अश्विना । धियम् । मे । अमृध्राम् । सातये । कृतम् । वसुऽयुम् । विश्वाः । अविष्टम् । वाजे । आ । पुरम्ऽधीः । ता । नः । शक्तम् । शचीपती इति शचीऽपती । शचीभिः ॥ ७.६७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 67; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथैश्वर्य्यप्राप्तये शुभा बुद्धिः प्रार्थ्यते।
पदार्थः
(शचीपती) शचीति कर्मनामसु पठितम्। निरु० ३।२॥ हे कर्माध्यक्ष (देवा) दिव्यशक्तियुक्त परमात्मन् ! (शचीभिः) दिव्यकर्मभिः (नः) अस्मान् (शक्तं) शक्तिसम्पन्नान् कुरु, यतो वयं (ता) प्रसिद्धाः (पुरन्धीः) शुभबुद्धीः लभेम किञ्च (वाजे) सङ्ग्रामे (विश्वा) सर्वा ऐश्वर्योत्पादका बुद्धयः अस्माकं भवन्तु (अश्विना) हे प्रकृतिपुरुषशक्तिद्वयसम्पन्न परमात्मन् ! त्वं (अविष्टं) मां रक्ष (ऊम्) विशेषतया (सातये) ऐश्वर्य्यप्राप्त्यर्थं (वसूयुं, कृतं) धनसम्पन्नं कुरु, अन्यच्च (प्राचीम्) प्राचीनाम् (अमृध्रां) अहिंसितां (धियं) बुद्धिं ददातु इति शेषः ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब ऐश्वर्य्यप्राप्ति के लिये शुभ बुद्धि की प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
(शचीपती) हे कर्मों के स्वामी (देवा) परमात्मदेव ! (शचीभिः) अपनी दिव्य शक्ति द्वारा (नः) हमको (शक्तं) सामर्थ्य दें, ताकि हम (ता) उस (पुरन्धीः) शुभ बुद्धि को (आ) भले प्रकार प्राप्त होकर (विश्वाः, वाजे) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य के स्वामी हों, (अश्विना) परमात्मदेव ! (अविष्टं) अपने से सुरक्षित (मे) मुझे (ऊं) विशेषतया (सातये, वसूयुं, कृतं) ऐश्वर्य्य तथा धनादि की प्राप्ति में कृतकार्य्य होने के लिए (प्राचीं, अमृध्रां) सरल और हिंसारहित (धियं) बुद्धि प्रदान करें ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में जगत्पिता परमात्मदेव से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! आप हमारी सब प्रकार से रक्षा करते हुए अपनी दिव्यशक्ति द्वारा हमको सामर्थ्य दें कि हम उस शुभ, सरल तथा निष्कपट बुद्धि को प्राप्त होकर ऐश्वर्य्य तथा सब प्रकार के धनों का सम्पादन करें, या यों कहो कि हे कर्मों के अधिपति परमात्मन् ! आप हमको कर्मानुष्ठान द्वारा ऐसी शक्ति प्रदान करें, जिससे हम साधनसम्पन्न होकर उस बुद्धि को प्राप्त हों, जो धन तथा ऐश्वर्य्य के देनेवाली है अथवा जिसके सम्पादन करने से ऐश्वर्य्य मिलता है ॥ प्रार्थना से तात्पर्य्य यह है कि पुरुष अपनी न्यूनता अनुभव करता हुआ शुभ कर्मों की ओर प्रवृत्त हो और शुभकर्मी को परमात्मा सब प्रकार का ऐश्वर्य्य प्रदान करते हैं, क्योंकि वह कर्माध्यक्ष है, जैसा कि अन्यत्र भी कहा है कि ”कर्माध्यक्ष: सर्वभूताधिवास: साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च” ॥ श्वे० ६।११॥ वह परमात्मा कर्मों का अध्यक्ष=स्वामी, सब भूतों का निवासस्थान, साक्षी और निर्गुण=प्राकृत गुणों से रहित है, इत्यादि गुणसम्पन्न परमात्मा से प्रार्थना की गई है कि वह देव हमें शुभ कर्मों की ओर प्रेरे, ताकि हम उस दिव्य मेधा के प्राप्त करने के योग्य बनें, जिससे सब प्रकार के ऐश्वर्य्य प्राप्त होते हैं ॥५॥
विषय
अश्वी, जितेन्द्रिय शिष्य-शिष्या जनों का गुरु से ज्ञान-याचना का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( देवा अश्विना ) जितेन्द्रिय और विद्या की अभिलाषा करने वाले शिष्य, शिष्याजनो ! आप दोनों ( मे ) मेरी ( प्राची ) उत्तम, ज्ञान से युक्त, पूज्य ( अमृध्राम् ) कभी नाश न होने वाली और (वसूयुं) धनैश्वर्य से युक्त ( धियं ) बुद्धि और कर्म को ( सातये ) प्राप्त करने के लिये ( कृतम् ) यत्न करो । उसी प्रकार हे ( देवा अश्विना ) जितेन्द्रिय ज्ञान देने वाले गुरु गुरुआनी जनो ! आप दोनों (वाज-सातये) मुझ शिष्य को देने के लिये अपनी ( प्राचीम् ) अति उत्कृष्ट, पूज्य, ( वसू-युं ) वसु, शिष्य को प्राप्त होने वाली ( अमृध्रां ) अविनाशी, शिष्य को कष्ट न देने वाली ( धियं ) बुद्धि और वाणी का ( कृतम् ) उपदेश करो। आप दोनों ( वाजे ) संग्राम और ज्ञान प्राप्त करने के अवसर में ( विश्वाः पुरन्धीः ) समस्त प्रजाओं के समान बहुत ज्ञानधारक बुद्धियों, वाणियों की ( आ अविष्टं ) सब प्रकार से रक्षा करो । आप दोनों ( शची-पती ) वाणी और शक्ति के पालक होकर ( नः ) हमें ( शचीभिः ) अपनी वाणियों से ( ता: ) वे नाना बुद्धियें (शक्तं) देकर हमें शक्तियुक्त करो । इति द्वादशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ६, ७, ८, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् । ४ आर्षी त्रिष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
विद्या प्राप्ति
पदार्थ
पदार्थ- हे (देवा अश्विना) = विद्याभिलाषी शिष्य-शिष्याजनो! आप दोनों (मे) = मेरी (प्राची) = ज्ञानयुक्त, पूज्य (अमृध्राम्) = अविनाशी और (वसूयुं) = धनैश्वर्य युक्त (धियं) = बुद्धि और कर्म को (सातये) = प्राप्त करने के लिये (कृतम्) = यत्न करो। वैसे ही हे (देवा अश्विना) = जितेन्द्रिय, ज्ञानदाता गुरु-गुरुपत्नी जनो! आप दोनों (वाज-सातये) = मुझ शिष्य को ज्ञान देने के लिये (प्राचीम्) = अति उत्कृष्ट, (वसूयुं) = शिष्य को प्राप्त होनेवाली (अमृध्रां) = अविनाशी, शिष्य को कष्ट न देनेवाली (धियं) = बुद्धि और वाणी का (कृतम्) = उपदेश करो। आप दोनों (वाजे) = संग्राम और ज्ञान प्राप्ति के समय (विश्वाः पुरन्धी:) = बहुत ज्ञानधारक बुद्धियों, वाणियों की (आ अविष्टं) = रक्षा करो। आप दोनों (शचीपती) = वाणी और शक्ति के पालक होकर (नः) = हमें (शचीभिः) = वाणियों से (ता:) = नाना बुद्धियें देकर (शक्तं) = हमें शक्तियुक्त करो।
भावार्थ
भावार्थ-विद्याभिलाषी शिष्य पुरुषार्थ पूर्वक गुरुजनों से विभिन्न विद्याओं को प्राप्त करने का यत्न करें तथा जितेन्द्रिय गुरुजन उत्कृष्ट शिष्यों को समस्त विद्याओं का उपदेश करें। इससे ये गुरु और शिष्य दोनों मिलकर ज्ञान-विद्या की रक्षा व वृद्धि कर सकेंगे।
इंग्लिश (1)
Meaning
O brilliant and generous Ashvins, commanders of the twin powers of nature and humanity, inspire my simple, ancient and progressive intelligence and will, strengthen it and make it inviolable in the pursuit of higher wealth, honour and excellence. In all our battles of life, protect our mind and will and, with all the powers and potential at your command, strengthen us to move forward and rise higher and higher.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात जगत्पिता परमेश्वराला प्रार्थना केलेली आहे, की हे भगवान! तू आमचे सर्व प्रकारे रक्षण करून तुझ्या दिव्य शक्तीद्वारे आम्हाला सामर्थ्य दे. आम्ही शुभ, सरळ, निष्कपट बुद्धी प्राप्त करून ऐश्वर्य व सर्व प्रकारचे धन संपादन करावे किंवा हे कर्माच्या अधिपती परमात्मा! तू आम्हाला कर्मानुष्ठानाद्वारे अशी शक्ती प्रदान कर ज्यामुळे आम्ही साधनसंपन्न बनून बुद्धी प्राप्त करावी. जी धन व ऐश्वर्य देणारी असेल किंवा जी संपादन करण्याने ऐश्वर्य प्राप्त होते.
टिप्पणी
प्रार्थनेचे तात्पर्य हे आहे, की पुरुषाने आपल्या न्यूनतेचा अनुभव करावा व शुभकर्मात प्रवृत्त व्हावे. शुभकर्मी माणसांना परमेश्वर सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करतो. कारण तो कर्माध्यक्ष आहे. जसे अन्यत्रही म्हटलेले आहे की ‘कर्माध्यक्ष: सर्वभूताधिवास: साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च’ ॥श्वे. ६/११॥ तो परमेश्वर कर्मांचा अध्यक्ष = स्वामी, सर्व भूतांचे निवासस्थान, साक्षी व निर्गुण= प्राकृत गुणांनी रहित आहे. इत्यादी गुणसंपन्न परमेश्वराला प्रार्थना केलेली आहे, की त्या देवाने आम्हाला शुभ कर्मात प्रेरित करावे. त्याद्वारे आम्ही त्या दिव्य मेधा बुद्धीला प्राप्त करावे. ज्यामुळे सर्व प्रकारचे सर्व ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥५॥
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