ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 81/ मन्त्र 4
उ॒च्छन्ती॒ या कृ॒णोषि॑ मं॒हना॑ महि प्र॒ख्यै दे॑वि॒ स्व॑र्दृ॒शे । तस्या॑स्ते रत्न॒भाज॑ ईमहे व॒यं स्याम॑ मा॒तुर्न सू॒नव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒च्छन्ती॑ । या । कृ॒णोषि॑ । मं॒हना॑ । म॒हि॒ । प्र॒ऽख्यै । दे॒वि॒ । स्वः॑ । दृ॒शे । तस्याः॑ । ते॒ । र॒त्न॒ऽभाजः॑ । ई॒म॒हे॒ । व॒यम् । स्याम॑ । मा॒तुः । न । सू॒नवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उच्छन्ती या कृणोषि मंहना महि प्रख्यै देवि स्वर्दृशे । तस्यास्ते रत्नभाज ईमहे वयं स्याम मातुर्न सूनव: ॥
स्वर रहित पद पाठउच्छन्ती । या । कृणोषि । मंहना । महि । प्रऽख्यै । देवि । स्वः । दृशे । तस्याः । ते । रत्नऽभाजः । ईमहे । वयम् । स्याम । मातुः । न । सूनवः ॥ ७.८१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 81; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देवि) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (दृशे) विज्ञानिज्ञानगोचरः (या) यो भवान् (स्वः, प्रख्यै) स्वख्यातये (मंहना) स्वमहिम्ना (महि, कृणोषि) जगन्निर्माय (उच्छन्ती) अज्ञानात्मकतमो निरस्य स्वतेजोमयज्ञानं प्रकाशयति (वयम्) वयं (मातुः) जनन्याः (सूनवः) सुताः (न) इव (स्याम) भवेम, तथा च (तस्याः) उक्तगुणसम्पन्नायाः (ते) तव (ईमहे) उपासनायाः कर्तारः (रत्नभाजः) रत्नपात्राणि भवेम ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देवि) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (दृशे) विज्ञानियों के ज्ञानगोचर (या) जो आप (स्वः, प्रख्यै) अपनी ख्याति के लिए (मंहना) स्वमहिमा से (महि, कृणोषि) जगत् को रचकर (उच्छन्ती) अज्ञानरूप अन्धकार का नाश करके अपने तेजोमय ज्ञान का प्रकाश करते हो, (वयं) हम लोग (मातुः) माता के (सूनवः) बच्चों के (न) समान (स्याम) हों और (तस्याः) पुर्वोक्तगुणसम्पन्न (ते) तुम्हारी (ईमहे) उपासना करते हुए (रत्नभाजः) रत्नों के पात्र बनें ॥४॥
भावार्थ
हे परमपिता परमात्मन् ! आपको ज्ञान द्वारा विज्ञानी पुरुष ही उपलब्ध कर सकते हैं, साधारण पुरुष नहीं। हे दिव्यस्वरूप भगवन् ! आप हमारे ज्ञानार्थ ही अपनी अपूर्व सामर्थ्य से जगत् की रचना करते हैं। आप माता के समान हम पर प्यार करते हुए हमारी सब प्रकार से रक्षा करें और हमें ज्ञानसम्पन्न करके अपनी उपासना का अधिकारी बनावें, ताकि हम आपके अनुग्रह से धन-धान्य से भरपूर हों ॥४॥
विषय
विदुषी स्त्री का मातृपद ।
भावार्थ
( या ) जो तू हे ( देवि ) दानशीले ! कमनीयकान्ते ! हे ( महि ) पूजनीये ! जिस प्रकार उषा ( प्रख्यै ) सब पदार्थों को बतलाने और ( दृशे ) देखने के लिये ( स्व: उच्छन्ती ) स्वयं प्रकट होती हुई, सूर्य को प्रकट कर देती है उसी प्रकार तू भी ( उच्छन्ती ) गुणों को प्रकाशित करती हुई ( प्रख्यै ) उत्तम ख्याति लाभ करने और ( दृशे ) दर्शन करने के लिये ( मंहना ) अपने पूज्य व्यवहार से ही ( स्वः ) आदित्यवत् तेजस्वी पुरुष, या पुत्र को भी ( कृणोषि ) उत्पन्न करती है । ( रत्नभाज: ) पुत्रादिरत्न को धारण करने वाली तुझ से ही हम ( ईमहे ) अन्नादि याचना करें और (वयम् ) हम लोग ( मातुः सूनवः न ) माता के पुत्रों के समान ( स्याम ) तेरे कृपापात्र बने रहें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्दः—१ विराड् बृहती। २ भुरिग् बृहती। ३ आर्षी बृहती। ४,६ आर्षी भुरिग् बृहती, निचृद् बृहती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
सुपुत्रवती स्त्री
पदार्थ
पदार्थ- (या) = जो तू हे (देवि) = दानशीले! हे (महि) = पूजनीये! जैसे उषा (प्रख्यै) = सब पदार्थों को बतलाने और (दृशे) = देखने के लिये (स्वः उच्छन्ती) = स्वयं प्रकट होती, सूर्य को प्रकट करती है वैसे ही (उच्छन्ती) = गुणों का प्रकाश करती हुई (प्रख्यै) = उत्तम ख्याति पाने और (दृशे) = दर्शन के लिये (मंहना) = अपने व्यवहार से (स्व:) = आदित्यवत् तेजस्वी पुरुष, या पुत्र को (कृणोषि) = उत्पन्न करती है। (रत्नभाजः) = पुत्रादिरत्न को धारण करनेवाली तुझसे हम (ईमहे) = याचना करें और (वयम्) = हम (मातुः सूनवः न) = माता के पुत्रों के तुल्य (स्याम) = तेरे कृपापात्र बनें।
भावार्थ
भावार्थ- उत्तम स्त्री अपने जीवन में सद्गुणों को धारण करके सुसंस्कारित तेजस्वी पुत्र रत्न को उत्पन्न करे। अन्यों को भी दान आदि से पुत्रों के समान पुष्ट करे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Generous and divine dawn, great and glorious, who with your splendour enlighten the world to have the vision and awareness of divinity, we pray that we too may experience that vision and share those jewels of life, and thus abide in life like favourite children of the divine mother.
मराठी (1)
भावार्थ
हे परमपिता परमात्मा! विज्ञानी पुरुषच तुला ज्ञानाद्वारे प्राप्त करू शकतात. हे दिव्यस्वरूप भगवान! तू आमच्यासाठी आपल्या अपूर्व सामर्थ्याने या जगाची निर्मिती करतोस. मातेप्रमाणे आमच्यावर प्रेम करून आमचे रक्षण कर. आम्हाला ज्ञानसंपन्न करून तुझ्या उपासनेचा अधिकारी बनव. त्यामुळे आम्ही तुझ्या अनुग्रहाने धनधान्ययुक्त बनू. ॥४॥
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