ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 51/ मन्त्र 6
ऋषिः - श्रुष्टिगुः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
यस्मै॒ त्वं व॑सो दा॒नाय॒ शिक्ष॑सि॒ स रा॒यस्पोष॑मश्नुते । तं त्वा॑ व॒यं म॑घवन्निन्द्र गिर्वणः सु॒ताव॑न्तो हवामहे ॥
स्वर सहित पद पाठयस्मै॑ । त्वम् । व॒सो॒ इति॑ । दा॒नाय॑ । शिक्ष॑सि । सः । रा॒यः । पोष॑म् । अ॒श्नु॒ते॒ । तम् । त्वा॒ । व॒यम् । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒णः॒ । सु॒तऽव॑न्तः । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्मै त्वं वसो दानाय शिक्षसि स रायस्पोषमश्नुते । तं त्वा वयं मघवन्निन्द्र गिर्वणः सुतावन्तो हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठयस्मै । त्वम् । वसो इति । दानाय । शिक्षसि । सः । रायः । पोषम् । अश्नुते । तम् । त्वा । वयम् । मघऽवन् । इन्द्र । गिर्वणः । सुतऽवन्तः । हवामहे ॥ ८.५१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 51; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Whoever you enlighten, enable and empower to give in charity, O lord of wealth and shelter home of the universe, he obtains wealth, sustenance and progress further and further. O lord of magnificence and majesty, Indra, most adorable and celebrated, blest as we are with wealth, excellence and the spirit of homage, we invoke, invite and adore you and pray bless us with love, charity and grace.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराने सर्व काही निर्माण करून जगालाच प्रदान केलेले आहे. तरीही तो मघवा-उत्तम ऐश्वर्यवान आहे. याच प्रयोजनाने आम्ही त्या प्रभूचे गुणगान करतो की, त्याच्या उदाहरणाने कर्तव्य कर्माचे शिक्षण घेऊन आम्हीही धनाचे स्वामी बनावे ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (वसो) ऐश्वर्य द्वारा सब को बसाने वाले भगवन्! (यस्मै) जिसे (त्वम्) आप (दानाय) दान देने की (शिक्षसि) शिक्षा [अपने उदाहरण से] देते हैं (सः) वह व्यक्ति (रायस्पोषम्) ऐश्वर्य की पुष्टता (अश्नुते) पा लेता है; वह विपुल ऐश्वर्यशाली हो जाता है। हे (मघवन्) सन्माननीय ऐश्वर्य स्वामी (इन्द्र) इन्द्र! आज की वन्दना (गिर्वणः) वाणी द्वारा की जाती है। हम (सुतावन्तः) ऐश्वर्ययुक्त हों--इस प्रयोजन से आप का (हवामहे) आह्वान करते हैं॥६॥
भावार्थ
भगवान् ने सब कुछ रचकर विश्व को ही सब प्रदान कर दिया; और फिर भी वह नितान्त ऐश्वर्यशाली है। इसी प्रयोजन से हम उसका गुणगान करते हैं कि उसके उदाहरण से कर्त्तव्य व कर्म की शिक्षा ले हम धन-सम्पन्न बनें॥६॥
विषय
दाता प्रभु से याचना।
भावार्थ
हे ( वसो ) सबको बसाने हारे, सबमें बसने हारे, सबको आच्छादन पालन करने हारे प्रभो ! ( यस्मै दानाय शिक्षसि ) जिस दानशील पुरुष को तू दान करता है (सः) वह (रायः पोषम् अश्नुते ) ऐश्वर्य की वृद्धि को प्राप्त करता है। हे ( गिर्वणः ) वेदवाणियों से सेवने योग्य, वा वाणियों के दातः ! हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे ( मघवन् ) पूजित पदयुक्त ! ( वयं ) हम ( सुतावन्तः ) उत्पन्न अनित्य पदार्थों वाले ( ते त्वा हवामहे) उस तेरी प्रार्थना करते हैं। हमें भी नाना ऐश्वर्य प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्रुष्टिगुः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता। छन्दः— १, ३, ९ निचृद् बृहती। ५ विराड् बृहती। ७ बृहती। २ विराट् पंक्ति:। ४, ६, ८, १० निचृत् पंक्तिः॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
दान से धनवृद्धि
पदार्थ
[१] हे (वसोः) = सब को बसानेवाले - सबके लिए वसुओं को देनेवाले प्रभो ! (यस्मै) = जिसके लिए (त्वं) = आप (दानाय) = धनों के दान के लिए (शिक्षसि) = शिक्षण करते हैं, (सः) = वह धनों का दान करता हुआ पुरुष (रायस्पोषम्) = धन के पोषण को (अश्नुते) = प्राप्त करता है। दान देने से उसका धन बढ़ता ही है। [२] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (तं त्वा) = उन आपको (वयं) = हम हे (मघवन्) = [मघ=मख] सब यज्ञोंवाले (गिर्वणः) = ज्ञान की वाणियों द्वारा सम्भजनीय प्रभो ! (सुतावन्तः) = सोम का सम्पादन करनेवाले होकर हवामहे पुकारते हैं। सोम का शरीर में रक्षण करते हुए हम आपके आराधक बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- दान देने से धन की वृद्धि ही होती है। हे प्रभो ! धनों के दाता आपकी हम आराधना करें - आपकी प्राप्ति के लिए सोम का रक्षण करें।
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