ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 9
इ॒मां मे॑ मरुतो॒ गिर॑मि॒मं स्तोम॑मृभुक्षणः । इ॒मं मे॑ वनता॒ हव॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माम् । मे॒ । मरुतः॑ । गिर॑म् । इ॒मम् । स्तोम॑म् । ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒ । इ॒मम् । मे॒ । व॒न॒त॒ । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमां मे मरुतो गिरमिमं स्तोममृभुक्षणः । इमं मे वनता हवम् ॥
स्वर रहित पद पाठइमाम् । मे । मरुतः । गिरम् । इमम् । स्तोमम् । ऋभुक्षणः । इमम् । मे । वनत । हवम् ॥ ८.७.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(मरुतः) हे योधाः ! (ऋभुक्षिणः) महान्तः (इमाम्, मे, गिरम्) इमां मे प्रार्थनावाचम् (इमम्, स्तोमम्) इमं स्तोत्रम् (इमं, मे, हवम्) इमं ममाह्वानं च (वनत) संभजध्वम् ॥९॥
विषयः
प्राणायामगुणवर्णनमाह ।
पदार्थः
हे मरुतः=प्राणाः=इन्द्रियाणि । यूयम् । मे=मम । इमाम्=प्रार्थनासमये विधीयमानाम् । गिरम्=वाणीम्= वनत=संभजत=सेवध्वम् । हे ऋभुक्षणः=महान्तः । इमं स्तोमम् । पुनः । इमं मे हवं वनत ॥९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(ऋभुक्षिणः, मरुतः) हे महत्त्वविशिष्ट योद्धाओ ! (इमाम्, मे, गिरम्) इस मेरी प्रार्थनाविषयक वाणी को (इमम्, स्तोत्रम्) इस स्तोत्र को (इमम्, मे, हवम्) इस मेरे आह्वान को (वनत) स्वीकार करें ॥९॥
भावार्थ
जो निर्भय होकर युद्ध में मरें या मारें वे “मरुत्” कहलाते हैं, “ये म्रियन्ते यैर्वा जना युद्धे म्रियन्ते ते मरुतः”=जो अपराङ्मुख होकर युद्ध करते हैं और जिनको मरने से भय और जीने में कोई राग नहीं, ऐसे योद्धाओं का नाम “मरुत्” है। उक्त मरुतों की माताएँ उनको तीन प्रकार का उत्साह प्रदान करती हैं ॥९॥
विषय
प्राणायाम के गुणों का वर्णन करते हैं ।
पदार्थ
(मरुतः) हे प्राणो ! हे इन्द्रियो ! आप सब (मे) मेरी (इमाम्) इस (गिरम्) वाणी को (वनत) सेवन करें । पूजाकाल में मैं जिन वचनों द्वारा ईश्वर की उपासना प्रार्थना करता हूँ, उनको सुनें अन्यत्र न भागें । इसी प्रकार (ऋभुक्षणः) हे महान् इन्द्रियो ! जिस कारण आप महान् हैं, अतः स्थिर होकर (इमम्+स्तोमम्) इस प्राचीन स्तोत्र को (वनत) सुनें । पुनः (मे) मेरे (इमम्+हवम्) इस आह्वान को (वनत) सुनें ॥९ ॥
भावार्थ
पूजा, सन्ध्या और यज्ञादि शुभकर्मों के समय अपनी समस्त इन्द्रियवृत्तियों को स्तुति प्रार्थना और उपासना में लगावें ॥९ ॥
विषय
उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) वीर पुरुषो ! हे ( ऋभुक्षणः ) बड़े बलशाली पुरुषो ! आप लोग ( मे इमां गिरम् ) मेरी इस वाणी को और ( इमां स्तोमं ) इस स्तुत्य वचन को और ( मे इमं हवम् ) मेरे इस ग्राह्य उपहार वेतनादि को भी (वनत ) सेवन करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
ज्ञान-स्तवन-प्रार्थना
पदार्थ
[१] (मरुतः) = हे प्राणो ! (इमां मे गिरम्) = इस मेरी ज्ञान की वाणी को (वनता) = सेवन करो। हे (ऋभुक्षणः) = विशाल दीप्ति में निवास करनेवाले प्राणो, ज्ञान को विशाल बनानेवाले प्राणो ! (इमं स्तोमं [वनता]) = इस मेरे स्तुति समूह का सेवन करो। प्राणसाधना के द्वारा मैं ज्ञान की वाणियों की ओर झुकाववाला बनूँ तथा प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाला बनूँ। [२] हे प्राणो ! (मे) = मेरी (इमं इहवम्) = इस पुकार को, प्रार्थना का (वनत) = सेवन करो। प्राणसाधना के द्वारा मैं प्रार्थना की वृत्तिवाला बनूँ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना मुझे 'ज्ञान, स्तवन व प्रभु प्रार्थना' की ओर झुकाववाला बनाये।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, warriors of exceptional order, listen to this voice of mine, accept this poetic tribute and cherish this invocative call of mine.
मराठी (1)
भावार्थ
जे निर्भय बनून युद्धात मृत्यू पावतात किंवा मारले जातात ते ‘मरुत्’ म्हणविले जातात. ‘ये म्रियन्ते यैर्वा जना युद्धे म्रियन्ते ते मरुत: = जे अपराङ्मुख बनून युद्ध करतात त्यांना मरणाचे भय नसते व जगण्याचा मोह नसतो. अशा योद्ध्यांचे नाव मरुत आहे. वरील मरुतांना माता तीन प्रकारे उत्साहित करतात. ॥९॥
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