ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 80/ मन्त्र 5
हन्तो॒ नु किमा॑ससे प्रथ॒मं नो॒ रथं॑ कृधि । उ॒प॒मं वा॑ज॒यु श्रव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठहन्तो॒ इति॑ । नु । किम् । आ॒स॒से॒ । प्र॒थ॒मम् । नः॒ । रथ॑म् । कृ॒धि॒ । उ॒प॒ऽमम् । वा॒ज॒ऽयु । श्रवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
हन्तो नु किमाससे प्रथमं नो रथं कृधि । उपमं वाजयु श्रव: ॥
स्वर रहित पद पाठहन्तो इति । नु । किम् । आससे । प्रथमम् । नः । रथम् । कृधि । उपऽमम् । वाजऽयु । श्रवः ॥ ८.८०.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 80; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 35; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 35; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Hey Indra, come on, why tarry behind? Move our chariot on to the front rank, let the honour and prize of victory be closer at hand.
मराठी (1)
भावार्थ
आम्ही या प्रकारे ईश्वराची प्रार्थना करावी, की महासंग्रामातही विजय प्राप्त करावा. ॥५॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे इन्द्र ! हन्तो=हन्त । नु=इदानीम् । त्वं किमाससे=किं त्वं तूष्णीमाससे । नः=अस्माकम् । रथं संग्रामे । प्रथमम् । कृधि=कुरु । तथा । वाजयु=विजयसम्बन्धि । श्रवः=यशः । उपमं=समीपम् । कृधि=कुरु ॥५ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे इन्द्र ! (हन्तो) यह खेद की बात है कि तू (नु) इस समय (किं+आससे) क्यों चुपचाप है, (नः) हम लोगों के (रथं) रथ को (प्रथमम्) सबसे अग्रसर (कृधि) कर तथा (वाजयु) विजयसम्बन्धी (श्रवः) यश (उपमं) समीप कर ॥५ ॥
भावार्थ
हम इस तरह ईश्वर से प्रार्थना करें कि महासंग्राम में भी विजयी होवें ॥५ ॥
विषय
राजावत् प्रभु से प्रार्थनाएं।
भावार्थ
( हन्तो नु ) भला अब ( किम् आससे ) क्यों विलम्ब करता है ? ( नः रथं ) हमारे रथ को ( प्रथमं कृधि ) सबसे मुख्य कर। और तेरा ( वाजयु श्रवः ) ज्ञानयुक्त श्रवणयोग्य उपदेश ( नः उप-मं ) हमारे सदा समीप रहे। अथवा हमारे बलैश्वर्य की कामना से युक्त ( श्रवः ) श्रव्य प्रार्थना वचन तेरे समीप है। इति पञ्चत्रिंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
एकद्यूनौंधस ऋषिः॥ १—९ इन्द्रः। १० देवा देवता॥ छन्दः—१ विराड् गायत्री। २, ३, ५, ८ निचद् गायत्री। ४, ६, ७, ९, १० गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वाजयु श्रवः
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (हन्त नु) = यह दुःख की ही बात है कि (नु किं आससे) = आप अब भी क्यों बैठे ही हैं? आप हमारे पर अनुग्रह करिये और (नः) = हमारे (रथम्) = शरीररथ को (प्रथमं कृधि) = सर्वप्रथम करिये। 'हमारा यह रथ सब से आगे हो' बस ऐसी ही कृपा आप करिये। [२] आपके अनुग्रह से (वाजयु श्रवः) = हमारे साथ शक्ति को जोड़नेवाला ज्ञान (उपमम्) = हमारे अन्तिकतम हो। हमें शक्तियुक्त ज्ञान प्राप्त हो। इसे प्राप्त कराने में आप विलम्ब न करिये।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारे सरीर-रथ को आगे उन्नतिशील बनाते हैं।
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