ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 15
यन्ना॑सत्या परा॒के अ॑र्वा॒के अस्ति॑ भेष॒जम् । तेन॑ नू॒नं वि॑म॒दाय॑ प्रचेतसा छ॒र्दिर्व॒त्साय॑ यच्छतम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ना॒स॒त्या॒ । प॒रा॒के । आ॒र्वा॒के । अस्ति॑ । भे॒ष॒जम् । तेन॑ । नू॒नम् । वि॒ऽम॒दाय॑ । प्र॒ऽचे॒त॒सा॒ । छ॒र्दिः । व॒त्साय॑ । य॒च्छ॒त॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्नासत्या पराके अर्वाके अस्ति भेषजम् । तेन नूनं विमदाय प्रचेतसा छर्दिर्वत्साय यच्छतम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । नासत्या । पराके । आर्वाके । अस्ति । भेषजम् । तेन । नूनम् । विऽमदाय । प्रऽचेतसा । छर्दिः । वत्साय । यच्छतम् ॥ ८.९.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 15
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(नासत्या) हे सत्यवादिनौ ! (यद्, भेषजम्) यो भोगार्हपदार्थः (पराके) दूरदेशे (अर्वाके) समीपे वा (अस्ति) विद्यते (प्रचेतसा) हे प्रज्ञानौ ! (तेन) तेन पदार्थेन सह (विमदाय) मदरहितस्य (वत्साय) स्वजनस्य (छर्दिः) गृहम् (नूनम्) निश्चयम् (यच्छतम्) दत्तम् ॥१५॥
विषयः
पुनस्तमर्थमाह ।
पदार्थः
हे नासत्या=नासत्यौ=सत्यस्वभावौ असत्यरहितौ राजानौ ! पराके=अतिदूरदेशे । अर्वाके=समीपे च । यद् भेषजम्=रोगशमनकारि औषधं क्षुधानिवृत्तिकरमन्नादिकञ्च । अस्ति । तद् । युवाम् वित्थः । हे प्रचेतसा=प्रकृष्टचेतसौ प्रजानामुपरि कृपावन्तौ परमोदारौ ! तेन भेषजेन सहितम् । छर्दिर्गृहम् । वत्साय=अनुकम्पनीयाय । विमदाय=मदरहिताय पुरुषाय च । नूनमवश्यम् । यच्छतम्=दत्तम् ॥१५ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(नासत्या) हे सत्यवादिन् ! (यद्, भेषजम्) जो भोजनार्ह पदार्थ (पराके) दूरदेश में (अर्वाके) अथवा समीप देश में (अस्ति) वर्तमान हैं (प्रचेतसा) हे प्रकृष्टज्ञानवाले ! (तेन) उन पदार्थों के सहित (विमदाय) मदरहित (वत्साय) अपने जन के लिये (छर्दिः) गृह को (नूनम्) निश्चय (यच्छतम्) दें ॥१५॥
भावार्थ
हे सत्यवादी सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप हमको भोजन के लिये अन्नादि पदार्थों सहित वासयोग्य उत्तम गृह प्रदान करें, जिसमें वास करते हुए हम लोग आत्मिकोन्नति में तत्पर रहें ॥१५॥
विषय
पुनः उसी अर्थ को कहते हैं ।
पदार्थ
(नासत्या) हे सत्यस्वभाव ! असत्यरहित राजा और अमात्यवर्ग ! (पराके) अतिदूर देश में या (अर्वाके) अतिसमीप में (यद्) जो (भेषजम्) रोगशमनकारी औषध और क्षुधानिवृत्तिकर अन्नादिक हैं, उन्हें आप जानते हैं या वे आपके वश में हैं (प्रचेतसा) हे प्रकृष्ट चित्तवाले प्रजाओं के ऊपर कृपा करनेवाले परमोदार राजादि ! (तेन) उस भेषज से युक्त करके (छर्दिः) भवन (वत्साय) अनुकम्पनीय सत्पात्र (विमदाय) और मदरहित निरभिमान पुरुष को (नूनम्) अवश्य ही (यच्छतम्) दीजिये ॥१५ ॥
भावार्थ
राजा को उचित है कि असमर्थ पुरुषों के लिये सुख का गृह बनवा देवें ॥१५ ॥
विषय
पक्षान्तर में राजा और सेनापति के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (नासत्या) असत्य ज्ञान से रहित, सदा सत्य, सुपरीक्षित ज्ञान वाले विद्वान् पुरुषो ! ( यत् भेषजम् पराके ) रोगादि के नाश करने वाला जो पदार्थ दूर देश में हो वा जो (अर्वाके भेषजम् अस्ति) समीप स्थान में औषधादि हो ( तेन ) उससे है ( प्र-चेतसा) उत्तम ज्ञान और चित्त वाले दयालु जनो ! ( वत्साय ) पुत्रवत् राष्ट्र में बसे प्रजाजन के उपकार के लिये ( वि-मदाय ) विशेष हर्ष और आनन्द लाभ के लिये ( नूनं ) अवश्य ( छर्दि: यच्छतम् ) गृह, आवास प्रदान करो। उत्तम औषधि आदि के द्वारा समस्त प्रजा को सुख से राष्ट्र में बसने का मौका दो । जिससे सब नगर गृहादि नीरोग और सुखप्रद हों । इति द्वात्रिंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'वत्स विमद'
पदार्थ
[१] प्राणापान वासना को विनष्ट करके ज्ञानदीप्ति का साधन बनते हैं, सो इन्हें 'प्रचेतसा ' कहा गया है। हे (नासत्या) = हमारे जीवनों से असत्य को दूर करनेवाले प्राणापानो ! (यत्) = जो (पराके) = दूर देश के विषय में तथा (अर्वाके) = समीप क्षेत्र के विषय में (भेषजम्) = औषध (अस्ति) = है। (तेन) = उस औषध के साथ, हे (प्रचेतसा) = प्रकृष्ट ज्ञान के साधनभूत प्राणापानो! (नूनम्) = निश्चय से (वत्साय) = इस ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करनेवाले (विमदाय) = मद व अभिमान से शून्य जीवनवाले इस ऋषि के लिये (छर्दिः) = सुरक्षित गृह को प्राप्त कराओ। [२] यह शरीर ही 'सुरक्षित गृह' है। जब इसमें प्रथम ड्योढ़ी के रूप में स्थित अन्नमयकोश नीरोग होता है तथा तृतीय ड्योढ़ी के रूप में स्थित मनोमयकोश वासनाशून्य होता है तो यह शरीर गृह बड़ा सुन्दर बनता है। इसे ऐसा बनाने के लिये प्राणसाधना ही साधन है। यही प्राणों का 'अर्वाक व पराक' क्षेत्र के विषय में भेषज है। ये प्राण रोगों व वासनाओं पर आक्रमण करके इस गृह को दृढ़ व प्रकाशमय बनाते हैं । प्राणापान ऐसे शरीर गृह को 'वत्स विमद' के लिये प्राप्त कराते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से शरीर के रोग दूर होंगे और मन की वासनायें नष्ट होंगी। इस प्रकार यह शरीर गृह बड़ा सुन्दर बनेगा।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, versatile powers of health and longevity, whatever food or sanative or efficacious remedies be there far or near, by that without fail, O masters of knowledge and expertise, provide a home of health and peace for the dear devotee free from the pride and arrogance of drugs and intoxication.
मराठी (1)
भावार्थ
हे सत्यवादी सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, तुम्ही आम्हाला भोजनासाठी अन्न इत्यादी पदार्थांसह निवास करण्यायोग्य उत्तम गृह द्या, ज्यामुळे त्यात राहून लोकांनी आत्मोन्नती करण्यास तत्पर व्हावे ॥१५॥
हिंगलिश (1)
Subject
Drugs & intoxicants trade
Word Meaning
By truthful policies prevent invasion and spread of foreign drugs and intoxicants from far & near sources, among youth of the nation and enable good life style among them. सत्य व्यवहार द्वारा दूर और समीपस्थ देशों से आने वाली मादक औषधियों से अपने राष्ट्र के युवकों को सुरक्षा प्रदान करो और सुव्यवस्थित जीवन शैली का विकास करो.
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