ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 8
समु॑ प्रि॒या अ॑नूषत॒ गावो॒ मदा॑य॒ घृष्व॑यः । सोमा॑सः कृण्वते प॒थः पव॑मानास॒ इन्द॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ऊँ॒ इति॑ । प्रि॒याः । अ॒नू॒ष॒त॒ । गावः॑ । मदा॑य । घृष्व॑यः । सोमा॑सः । कृ॒ण्व॒ते॒ । प॒थः । पव॑मानासः । इन्द॑वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
समु प्रिया अनूषत गावो मदाय घृष्वयः । सोमासः कृण्वते पथः पवमानास इन्दवः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । ऊँ इति । प्रियाः । अनूषत । गावः । मदाय । घृष्वयः । सोमासः । कृण्वते । पथः । पवमानासः । इन्दवः ॥ ९.१०१.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(गावः) इन्द्रियाणि (घृष्वयः) दीप्तिमन्ति (प्रियाः) परमात्मानुरागवन्ति च (मदाय) आनन्दाय (सम् अनूषत) परमात्मानं सम्यक् साक्षात्कुर्वन्ति अथ च (पवमानासः) पावयितारः (इन्दवः) ज्ञानविज्ञानादिप्रकाशकाः (सोमासः) परमात्मसौम्यस्वभावा इन्द्रियैः साक्षात्कृता लोकान्संस्कृत्य (पथः, कृण्वते) सन्मार्गं गमयन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(गावः) इन्द्रियें (घृष्वयः) जो दीप्तिवाली हैं, वे (उ) और जो (प्रियाः) परमात्मा में अनुराग रखनेवाली हैं, वे (मदाय) आनन्द के लिये (समनूषत) परमात्मा का भली-भाँति साक्षात्कार करती हैं, (सोमासः) परमात्मा के सौम्य स्वभाव (पवमानासः) जो सबको पवित्र करनेवाले हैं, (इन्दवः) जो ज्ञानविज्ञानादि गुणों के प्रकाशक हैं, वे इन्द्रियों से साक्षात्कार किये हुए लोगों को संस्कृत करके (पथः कृण्वते) सन्मार्ग के यात्री बनाते हैं ॥८॥
भावार्थ
गावः शब्द के अर्थ यहाँ इन्द्रियवृत्तियों के हैं, किसी गौ, बैल आदि पशुविशेष के नहीं, क्योंकि “सर्वेऽपि रश्मयो गाव उच्यन्ते” नि० २।१०। इस प्रमाण से प्रकाशक रश्मियों का नाम यहाँ गावः है ॥८॥
विषय
वेदवाणियों और विद्वानों का स्तुत्य और प्राप्य लक्ष्य प्रभु है।
भावार्थ
(घृष्वयः) एक दूसरे से स्पर्द्धा करने वाली (प्रियाः) हृदय को प्रिय (गावः) वाणियां, (मदाय) अन्तरानन्द के लिये (सम्-अनूषत) भली प्रकार स्तुति करती हैं। (इन्दवः सोमासः) तेजस्वी, सौम्य गुणों वाले (पवमानासः) अपने को पवित्र करने वाले जन (पथः कृण्वते) सामान्य जनों के मार्गों का उपदेश करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
विषय
प्रियाः घृष्वयः [गाव:]
पदार्थ
(उ) = निश्चय से (प्रियाः) = प्रीति की जनक (घृष्वयः) = शत्रुओं का घर्षण करनेवाली (गावः) = ज्ञान की वाणियाँ (सम्) = अनूषत मिलकर सोम का स्तवन करती हैं। इन में सोम के गुणों का शंसन है । और वे कह रही हैं कि (सोमासः) = ये सोमकण (मदाय) = जीवन में उल्लास के लिये होते हैं। ये सोम ही (पथः कृण्वते) = मार्गों को करते हैं, अर्थात् हमें मार्गभ्रष्ट नहीं होने देते। (पवमानासः) = ये पवित्रता को करनेवाले हैं और (इन्दवः) = हमें शक्तिशाली बनाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- वेदवाणियाँ स्पष्ट कह रही हैं कि ये सोमकण उल्लास के जनक हैं, पवित्र करनेवाले व शक्ति को देनेवाले हैं ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Dear daring voices exalt and extol Soma for the sheer joy of illumination. Indeed men of Soma vision and courage, blazing brilliant, pure, purifying and pursuing, create and carve their own paths of progress.
मराठी (1)
भावार्थ
गाव: शब्दाचा अर्थ येथे इन्द्रियवृत्ती आहेत. एखाद्या गाय, बैल इत्यादी पशू विशेषचा नाही. कारण ‘‘सर्वेऽपि रश्ययो गाव उच्यन्ते’’ नि. २-१। या प्रमाणाने प्रकाशक रश्मींचे नाव येथे गाव: आहे. ॥८॥
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