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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 102 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 102/ मन्त्र 5
    ऋषिः - त्रितः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अ॒स्य व्र॒ते स॒जोष॑सो॒ विश्वे॑ दे॒वासो॑ अ॒द्रुह॑: । स्पा॒र्हा भ॑वन्ति॒ रन्त॑यो जु॒षन्त॒ यत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य । व्र॒ते । स॒ऽजोष॑सः । विश्वे॑ । दे॒वासः॑ । अ॒द्रुहः॑ । स्पा॒र्हाः । भ॒व॒न्ति॒ । रन्त॑यः । जु॒षन्त॑ । यत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्य व्रते सजोषसो विश्वे देवासो अद्रुह: । स्पार्हा भवन्ति रन्तयो जुषन्त यत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य । व्रते । सऽजोषसः । विश्वे । देवासः । अद्रुहः । स्पार्हाः । भवन्ति । रन्तयः । जुषन्त । यत् ॥ ९.१०२.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 102; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अस्य) अस्य परमात्मनः (व्रते) नियमे (सजोषसः) संगताः सन्तः (विश्वे, देवासः) सम्पूर्णविद्वांसः (अद्रुहः) द्रोहरहिताः सन्तः परमात्मानमुपासीरन् (यत्) यदि (रन्तयः) रमणशीलास्ते (जुषन्त) प्रेम्णा परमात्मानं भजन्ते तदा (स्पार्हाः) लोकस्यातिहितकारकाः (भवन्ति) भवन्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अस्य) इस परमात्मा के (व्रते) नियम में (सजोषसः) संगत हुए (विश्वे, देवासः) सम्पूर्ण विद्वान् (अद्रुहः) द्रोहरहित होकर उक्त परमात्मा की उपासना करें, (यत्) यदि (रन्तयः) रमणशील उक्त विद्वान् (जुषन्त) उक्त परमात्मा की प्रीति से भक्ति करते हैं, (स्पार्हाः) तो संसार के अत्यन्त प्रिय करनेवाले (भवन्ति) होते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो लोग राग-द्वेषरहित होकर परमात्मा की भक्ति करते हैं, वे अपने सामर्थ्य से संसार का बहुत उपकार कर सकते हैं ॥५॥

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    विषय

    प्रभु के अधीन सब जीव प्रेम से रहें तो उत्तम है।

    भावार्थ

    (अस्य व्रते) इसके व्रत या कर्म में लगे (विश्व देवासः) सब मनुष्य (सजोषसः) समान प्रीतियुक्त, (अद्रुः) परस्पर द्रोह से रहित, (स्पार्हाः) परस्पर प्रेम करने वाले, और (रन्तयः) सुखी प्रसन्न (भवन्ति) होते हैं (यत् जुषन्त) जिससे वे प्रेम करते हैं। इति चतुर्थो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१–४, ८ निचृदुष्णिक्। ५-७ उष्णिक्। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सर्वदेवमय स्पृहणीय जीवन

    पदार्थ

    (अस्य व्रते) = इस सोमरक्षण के कर्म के होने पर (सजोषसः) = समान रूप से प्रीति वाले (विश्वे देवासः) = सब देव (अद्रुहः) = द्रोहशून्य होते हैं । अर्थात् सोमरक्षण से जीवन सर्वदेवमय बनता है । (यत्) = जब (रन्तयः) = सोमरक्षण में प्रीति वाले होते हुए (जुषन्तः) = इस सोम का सेवन करते हैं तो (स्पार्हाः) = स्पृहणीय जीवनवाले (भवन्ति) = होते हैं । वस्तुतः सोमरक्षण ही जीवन को सुन्दर बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से जीवन सर्वदेवमय व स्पृहणीय बनता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Enjoined in the law and order of discipline of this Soma, all divinities of nature and nobilities of humanity, committed and free from malice and negativity, who join and rejoice in him command the enviable love and respect of the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक रागद्वेष रहित होऊन परमेश्वराची भक्ती करतात ते आपल्या सामर्थ्याने जगावर अत्यंत उपकार करतात. ॥५॥

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