ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ प॑वमान नो भरा॒र्यो अदा॑शुषो॒ गय॑म् । कृ॒धि प्र॒जाव॑ती॒रिष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठआ । प॒व॒मा॒न॒ । नः॒ । भ॒र॒ । अ॒र्यः । अदा॑शुषः । गय॑म् । कृ॒धि । प्र॒जाऽव॑तीः । इषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवमान नो भरार्यो अदाशुषो गयम् । कृधि प्रजावतीरिष: ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पवमान । नः । भर । अर्यः । अदाशुषः । गयम् । कृधि । प्रजाऽवतीः । इषः ॥ ९.२३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वेषां पावयितर्भगवन् ! (नः) अस्मभ्यं (अर्यः) ये भावाः (अदाशुषः) असुरेभ्यो न ददिरे ते (गयम्) भावाः (आ भर) दीयन्तां (प्रजावतीः इषः) धनपुत्राद्यैश्वर्यं च (कृधि) ददातु ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (नः) हमको (अर्यः) जो भाव असुरों को (अदाशुषः) नहीं दिये, वे (गयम्) भाव (आ भर) देवें और (प्रजावतीः इषः) धनपुत्रादि ऐश्वर्यों को (कृधि) देवें ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा का नाम है “ऋच्छति गच्छति सर्वत्र प्राप्नोति इत्यर्य्यः परमात्मा” जो सर्वत्र व्यापक हो, उस का नाम अर्य है। उस अर्य परमात्मा से यह प्रार्थना की गयी है कि हे परमात्मन् ! आप हमको दैवी सम्पत्ति के गुण दें अर्थात् हम को ऐसे पवित्र भाव दें, जिस से हम में आसुर भाव कदापि न आवे। जो पुरुष सदैव देवताओं के गुणों से सम्पन्न होने की प्रार्थना करते हैं, परमात्मा उन्हें सदैव दिव्य गुणों का दान देता है ॥३॥
विषय
प्रजावती: इषः
पदार्थ
[१] हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (अर्य:) = स्वामी होता हुआ (अदाशुषः) = न देनेवाले के (गयम्) = [wealth] धन को (नः) = हमारे लिये (आभर) = प्राप्त करा । जिस समय शरीर में सोम का रक्षण करते हैं, उस समय यह सोम हमें उदार वृत्तिवाला बनाता है। तब हम धनों को दान में विनियुक्त करनेवाले होते हैं। हमारा धन लोकहित के कार्यों में व्ययित होता है । [२] हे सोम ! तू हमारे लिये (प्रजावती:) = प्रकृष्ट विकासवाली, विकास की साधनभूत (इषः) = प्रेरणाओं को (कृधि) = कर | तेरे रक्षण से हम पवित्र हृदयवाले बनें । उस पवित्र हृदय में हम उन प्रेरणाओं को सुनें जो कि हमें उत्तम मार्ग पर ले चलती हुई विकसित शक्तिवाला बनायें ।
भावार्थ
भावार्थ- सब धनों का स्वामी 'सोम' है । सोम का रक्षक पुरुष सब धनों को प्राप्त करता है और विकास की कारणभूत प्रेरणाओं को सुनता है ।
विषय
ऐश्वर्य आदि की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (पवमान) परम पावन और सब के भीतर पवित्र रूप से विद्यमान व्यापक स्वामिन् ! तू (अर्यः) स्वामी होकर (नः) हम में से (अदाशुषः गयम् आ भर) अदानशील को भी धन गृहादि प्रदान कर। अदाता दरिद्र को भी इतना धन दे कि वह भी खुले हाथ दान दे सके। और तू ही (प्रजावतीः इषः कृधि) प्रजाओं से युक्त अन्न सम्पदाओं को कर, वा हे राजन् ! (प्रजावतीः इषः) तू सेनाओं को प्रजावाला, रक्षक कर। हे प्रभो ! तू (इषः प्रजावतीः कृधि) वृष्टियों को उत्तम अन्नोत्पादक कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१—४, ६ निचृद् गायत्री। ५ गायत्री ७ विराड् गायत्री। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of purity and power, socio-cosmic dynamics, production and munificence, win over the ungiving, uncreative and selfish people and give us all a peaceful home and food, energy, knowledge and wisdom for sustenance and happy continuance of the human family.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात (अर्य:) परमेश्वराचे नाव आहे. ‘ऋच्छति गच्छति सर्वत्र प्राप्नोति इत्यर्य्य: परमात्मा’ जो सर्वव्यापक आहे त्याचे नाव अर्य आहे. त्या अर्य परमेश्वराला ही प्रार्थना केली गेलेली आहे की, हे परमेश्वरा! तू आम्हाला दैवी संपत्तीचे गुण दे. आम्हाला असे पवित्र भाव दे ज्याद्वारे आमच्यामध्ये असुर भाव कधीही येता कामा नयेत. जे पुरुष सदैव देवतांच्या गुणांनी संपन्न होण्याची प्रार्थना करतात, परमेश्वर त्यांना सदैव दिव्य गुणांचे दान देतो. ॥३॥
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