ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 29/ मन्त्र 2
सप्तिं॑ मृजन्ति वे॒धसो॑ गृ॒णन्त॑: का॒रवो॑ गि॒रा । ज्योति॑र्जज्ञा॒नमु॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठसप्ति॑म् । मृजन्ति । वे॒धसः॑ । गृ॒णन्तः॑ । का॒रवः॑ । गि॒रा । ज्योतिः॑ । ज॒ज्ञा॒नम् । उ॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्त: कारवो गिरा । ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठसप्तिम् । मृजन्ति । वेधसः । गृणन्तः । कारवः । गिरा । ज्योतिः । जज्ञानम् । उक्थ्यम् ॥ ९.२९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 29; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वेधसः) कर्मयोगिनो ये (गृणन्तः) परमात्मपरायणाः (कारवः) कर्मकाण्डिनः (गिरा जज्ञानम्) वेदरूपगिर उत्पन्नां (सप्तिम्) शक्तिं (मृजन्ति) वर्द्धयन्ति (ज्योतिः) सा ज्योतिर्मयी शक्तिः (उक्थ्यम्) प्रशंसनीया ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वेधसः) कर्मयोगी लोग जो (गृणन्तः) परमात्मपरायण हैं, (कारवः) वे कर्मकाण्डी लोग (गिरा जज्ञानम्) वेदरूपी वाणी द्वारा उत्पन्न हई (सप्तिम्) शक्ति को (मृजन्ति) बढ़ाते हैं (ज्योतिः) वह ज्योतिर्मय शक्ति (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे विद्वानों ! तुम अपनी शक्तियों को वेदरूपी वाणी द्वारा बढ़ाओ। जो लोग अपनी शक्तियों को ईश्वराज्ञा से बढ़ाते हैं, उनका ऐश्वर्य विश्वव्यापी हो जाता है ॥२॥
विषय
ज्ञान- ज्योति व स्तुति
पदार्थ
[१] (वेधसः) = बुद्धिमान् पुरुष, (गृणन्तः) = प्रभु-स्तवन करते हुए (कारवः) = उत्तमता से अपने कर्त्तव्य कर्मों को करनेवाले (गिरा) = ज्ञान की वाणियों से इन ज्ञान की वाणियों के स्वाध्याय में लगकर (सप्तिम्) = इस शरीर में समवेत होनेवाले सोम को मृजन्ति शुद्ध करते हैं [ सप्= To connect ]। सोम को परिशुद्ध रखने व शरीर में ही सम्बद्ध करने के तीन उपाय हैं— [क] प्रभु-स्तवन [गृणन्त:], [ख] कुशलता से कर्मों में लगे रहना [कारवः], [ग] स्वाध्याय [गिरा] । समझदार लोग इन उपायों से सोम को शरीर में ही व्याप्त करते हैं । [२] उस सोम को परिशुद्ध करते हैं जो कि (ज्योतिः जज्ञानम्) = ज्ञान- ज्योति को उत्पन्न कर रहा है तथा (उक्थ्यम्) = स्तुति के योग्य है अथवा स्तुति में उत्तम है । अर्थात् हमें सुरक्षित होने पर प्रभु-स्तुति प्रवण करता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के साधन हैं— [क] प्रभु-स्तवन, [ख] कुशलता से कार्यों में व्यापृत रहना, [ग] स्वाध्याय । सुरक्षित सोम हमारी ज्ञानदीप्ति को बढ़ाता है और हमें प्रभु की स्तुति की ओर झुकाता है।
विषय
सातों प्राणों के स्वामी आत्मा की साता प्रकृतियों के स्वामी राजा से तुलना। आत्मा ‘सप्ति’ का वर्णन।
भावार्थ
(वेधसः) विद्वान् लोग (गृणन्तः) उपदेश करते हुए (कारवः) उत्तम स्तुतिकर्त्ता वा कर्मण्य पुरुष, (सप्तिं) सातों प्राणों के स्वामी, इस आत्मा को (गिरा) वेद वाणी वा प्रभु-गुण-स्तुति से (मृजन्ति) शुद्ध पवित्र करते हैं। और उसी को (उक्थम्) स्तुत्य (जज्ञानं ज्योतिः) प्रकट होने या जन्म लेने वाली ज्योति करके जानते हैं। इसी प्रकार राजा सप्त प्रकृतियों का स्वामी होने से सप्ति है। वह परम तेजोवत् है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेध ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री। २–४, ६ निचृद् गायत्री। ५ गायत्री॥ षडृर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Sages embellish and exalt the might of the omniscient and omnipotent Soma, poets and artists, with the language of their art, celebrate the divine light thus emerging and rising more and more admirable.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे विद्वानांनो! तुम्ही आपल्या शक्तींना वेदरूपी वाणीद्वारे वाढवा. जे लोक आपल्या शक्तींना ईश्वराज्ञेने वाढवितात, त्यांचे ऐश्वर्य विश्वव्यापी होते. ॥२॥
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