ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 33/ मन्त्र 5
अ॒भि ब्रह्मी॑रनूषत य॒ह्वीॠ॒तस्य॑ मा॒तर॑: । म॒र्मृ॒ज्यन्ते॑ दि॒वः शिशु॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । ब्रह्मीः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । य॒ह्वीः । ऋ॒तस्य॑ । मा॒तरः॑ । म॒र्मृ॒ज्यन्ते॑ । दि॒वः । शिशु॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि ब्रह्मीरनूषत यह्वीॠतस्य मातर: । मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । ब्रह्मीः । अनूषत । यह्वीः । ऋतस्य । मातरः । मर्मृज्यन्ते । दिवः । शिशुम् ॥ ९.३३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 33; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ऋतस्य मातरः) सत्योत्पादिकाः (यह्वीः ब्रह्मीः) अतिविस्तृताः परमात्मसम्बद्धा वेदवाचः (अभि अनूषत) स्ववक्तारं विभूषयन्ति (मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम्) ब्रह्मचारिणं च पवित्रयन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ऋतस्य मातरः) सत्य को उत्पन्न करनेवाली (यह्वीः ब्रह्मीः) अतिविस्तृत परमात्मसम्बन्धी वेदवाणियें (अभि अनूषत) अपने वक्ता को विभूषित कर देती हैं (मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम्) और ब्रह्मचारी को पवित्र कर देती हैं ॥५॥
भावार्थ
वेदवाणियें परमात्मा के साथ वाच्यवाचकभावसम्बन्ध से रहती हैं, इसीलिये इनको ब्रह्मी कहा गया है, जैसा कि गीता में “एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति” जिस प्रकार पुरुष ब्राह्मी स्थिति को पाकर मोह को नहीं प्राप्त होता, इसी प्रकार वेदवाणियें पुरुष के अज्ञान को सर्वथा छिन्न-भिन्न कर देती हैं ॥५॥
विषय
स्वाध्याय द्वारा सोम शुद्धि
पदार्थ
[१] (ब्रह्मीः) = ब्रह्म का प्रतिपादन करनेवाली इन ज्ञान की वाणियों का (अभि) = लक्ष्य करके उपासक (अनूषत) = उस प्रभु का स्तवन करते हैं । ये वेदवाणियाँ यह्वी महान् हैं, इनके द्वारा प्रभु की ओर जाया जाता है और प्रभु को पुकारा जाता है [यातश्च हूतश्च नि० ] । ये (ऋतस्य मातरः) = हमारे जीवनों में ऋत का निर्माण करनेवाली हैं। हमारे से अनृत को दूर करके ये हमें ऋत की ओर ले चलती हैं । [२] ये (दिवः शिशुम्) = ज्ञान के तीव्र करनेवाले [शो तनूकरणे] ज्ञानाग्नि को दीप्त करनेवाले सोम को (मर्मृज्यन्ते) = खूब ही शुद्ध कर देती हैं । 'तृतीयस्यामितो दिवि सोम आसीत् '। सोम शरीर में ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ मस्तिष्क में पहुँचता है । सब से प्रथम इस शरीर रूप पृथिवी में यह नीरोगता व दृढ़ता को जन्म देता है। फिर दूसरे हृदयान्तरिक्ष में यह निर्मलता को, निर्देषता आदि को लानेवाला होता है । अन्ततः तीसरे द्युलोक में यह ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है। वेदवाणियाँ इस सोम को शुद्ध रखती हैं । वेदवाणियों का अध्येता पुरुष वासनाओं से बचा रहता है । यह वासनाओं से बचाव ही सोम को शुद्ध रखता है ।
भावार्थ
भावार्थ- हम स्वाध्याय में प्रवृत्त रहें जिससे हमारा सोम शुद्ध बना रहे।
विषय
माता के तुल्य विद्वानों का उपदेश कार्य।
भावार्थ
(मातरः शिशुम् मर्मृज्यन्ते) माताएं जिस प्रकार छोटे बच्चे को स्वच्छ करती हैं उसी प्रकार (ऋतस्य मातरः) सत्य ज्ञान, वेद के जानने वाले विद्वान् जन (दिवः शिशुम्) ज्ञान के भीतर शासन करने योग्य शिष्य का (मर्मृज्यन्ते) निरन्तर परिष्कार करें और वे (यह्वः) महान् (ब्रह्मीः) ब्रह्म का प्रतिपादन करने वाली वेद-वाणियों का भी (अभि अनूषत) उसको उपदेश किया करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ५ गायत्री। ३, ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Holy voices, creators and sustainers of the rule of truth and rectitude, ceaselessly flow around strong, refining and doing honour to the teacher, scholar and learner as they enlighten and sanctify the child of heaven, the rising generation.
मराठी (1)
भावार्थ
वेदवाणी परमेश्वराबरोबर वाच्यवाचकभाव संबंधाने राहते. त्यासाठी तिला ब्रह्मी म्हटले आहे. जसे गीतेत ‘‘एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्मति’’ ज्या प्रकारे पुरुष ब्राह्मी स्थिती प्राप्त करून मोहात अडकत नाही. याचप्रकारे वेदवाणी पुरुषाच्या अज्ञानाला संपूर्णपणे नष्ट करते. ॥५॥
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