Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 41 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 41/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॑ णः शर्म॒यन्त्या॒ धार॑या सोम वि॒श्वत॑: । सरा॑ र॒सेव॑ वि॒ष्टप॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । नः॒ । श॒र्म॒ऽयन्त्या॑ । धार॑या । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । सर॑ । र॒साऽइ॑व । वि॒ष्टप॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि णः शर्मयन्त्या धारया सोम विश्वत: । सरा रसेव विष्टपम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । नः । शर्मऽयन्त्या । धारया । सोम । विश्वतः । सर । रसाऽइव । विष्टपम् ॥ ९.४१.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 41; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! (रसेव विष्टपम्) लोकं व्यापकतयाधितिष्ठत् ब्रह्मेव (शर्मयन्त्या धारया) शर्म प्रयच्छन्त्यानन्दधारया (नः विश्वतः परिसर) मम हृदयं सर्वतो व्याप्नुहि ॥६॥ इत्येकचत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (रसेव विष्टपम्) जिस प्रकार रस से अर्थात् ब्रह्म से लोक व्याप्त हो रहा है, उसी प्रकार (शर्मयन्त्या धारया) सुख देनेवाली आनन्द की धारासहित (नः विश्वतः परिसर) मेरे हृदय में आप भली प्रकार निवास कीजिये ॥६॥

    भावार्थ

    आनन्दस्त्रोत एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिये आनन्दाभिलाषी जनों को चाहिये कि उसी आनन्दाम्बुधि का रसपान करके अपने आपको आनन्दित करें ॥६॥ यह ४१ वाँ सूक्त और ३१ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    द्राक्षारस का पात्र [A cup of tea]

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (शर्मयन्त्या) = सुख को देनेवाली (धारया) = धारा से (नः विश्वतः) = हमारे चारों ओर (परि सरा) = गतिवाला हो। सोम का हमारे शरीर में चारों ओर प्रवाह हो । यह प्रवाह अंग-प्रत्यंग को शक्तिशाली बनाकर हमें सुखी करनेवाला हो । [२] यह सोम हमारे अंगों में इस प्रकार प्रवाहवाला हो (इव) = जैसे कि (रसा) = द्राक्षारस (विष्टपम्) = एक पात्र [cup] में प्रवेश करता है। शरीर ही वह विष्टप [चमस = पात्र] हो, जिसमें कि रसारूप सोम का प्रवेश हो । शरीर को अन्यत्र 'चमस' कहा ही गया है । सोम के लिये रस शब्द का प्रयोग होता ही है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर रूप पात्र में डला हुआ यह सोम रूप द्राक्षारस हमारा कल्याण करता है । मेध्यातिथि ही कहता है-

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मेघ के समान वाणी द्वारा प्रभु वा स्वामी का प्रजा को प्राप्त होना।

    भावार्थ

    (रसा इव विष्टपम्) मेघ जिस प्रकार इस लोक को जल से व्यापता है उसी प्रकार हे (सोम) शुभ ऐश्वर्यदातः ! तू (नः) हमें (शर्मयन्त्या धारया) सुख देने वाली वाणी और पोषण सम्पदा से (विश्वतः) सब प्रकार से (सर) प्राप्त हो। इत्येकत्रिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४, ५ गायत्री। २ ककुम्मती गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, spirit of beauty, bliss and peace, just as the universe from centre to summit abounds in the beauty and majesty of divinity, so let us all in heart and soul be blest with showers of peace and pleasure of total well-being from all around our life in space and time.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आनंदाचा स्रोत एकमात्र परमात्माच आहे. त्यासाठी आनंदाभिलाषी लोकांनी त्याच आनंदाम्बुधीचे रसपान करून स्वत:ला आनंदित करावे. ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top