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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 6
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - आप्रियः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒शि॒ल्पे बृ॑ह॒ती म॒ही पव॑मानो वृषण्यति । नक्तो॒षासा॒ न द॑र्श॒ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒शि॒ल्पे इति॑ सुऽशि॒ल्पे । बृ॒ह॒ती इति॑ । म॒ही इति॑ । पव॑मानः । वृ॒ष॒ण्य॒ति॒ । नक्तो॒षसा॑ । न । द॒र्श॒ते इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुशिल्पे बृहती मही पवमानो वृषण्यति । नक्तोषासा न दर्शते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुशिल्पे इति सुऽशिल्पे । बृहती इति । मही इति । पवमानः । वृषण्यति । नक्तोषसा । न । दर्शते इति ॥ ९.५.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (नक्तोषासा) रात्रिरुषःकालश्च (दर्शते) ईशोपासनार्हौ स्तः (सुशिल्पे) सुष्ठु कलाकौशलादिविद्यासाधनार्हौ च स्तः (बृहती) महान्तौ (मही) पूज्यौ सफलनीयौ च स्तः अत्र च (पवमानः) उपास्यमानः परमात्मा (वृषण्यति) सर्वान् कामान् ददाति अभक्ताँश्च (न) न ददाति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (नक्तोषासा) रात्री और उषःकाल (दर्शते) परमात्मा की उपासना करने योग्य है (सुशिल्पे) और सुन्दर २ कला कोशलादि विद्याओं के अनुसन्धान करने योग्य है (बृहती) बड़े और (मही) पूज्य अर्थात् सफल करने योग्य है। इन कालों में (पवमानः) उपास्यमान परमात्मा (वृषण्यति) सब कामनाओं को देता है और जो इस प्रकार के उपासक नहीं, उनकी कामनाओं को (न) नहीं पूर्ण करता ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि उषःकाल अपने स्वाभाविक धर्म से ऐसा उत्तम है कि अन्य कोई काल नहीं, इससे मनुष्य की ईश्वरोपासना की ओर स्वाभाविक रुचि होती है, इसलिये इस ब्राह्ममुहूर्त का वर्णन वेदों में बहुधा आता है। इसी भाव को लेकर मनु आदि ग्रन्थो में ‘ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्ध्येत’ इत्यादि कहा है कि ब्राह्म मुहूर्त में उठे और परमात्मा का चिन्तन करे ॥६॥

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    विषय

    दर्शते नक्तोषासा

    पदार्थ

    [१] सोमरक्षण के होने पर जीवन सुन्दर बनता है। हम उत्तम निर्माणात्मक कार्यों में लगे रहते हैं [सुशिल्पे ] दिन वदिन हम आगे बढ़ते चलते हैं, वृद्धि को प्राप्त होते हैं, [बृहती] प्रभु पूजा की वृत्तिवाले होते हैं [मही] जीवन दर्शनीय बन जाता है [दर्शते] । [२] (पवमानः) = यह पवित्र करनेवाला सोम (न) = [संप्रति सा० ] अब (नक्तोषासा) = हमारे रात-दिन को वृषण्यति शक्तिशाली बनाने की कामना करता है। (सुशिल्पे) = उन्हें उत्तम शिल्पवाला बनाता है, हम कला पूर्ण ढंग से प्रत्येक कार्य को करते हैं। (बृहती) = [परिवृढे] हमारे दिन-रात बढ़े हुए होते हैं, हम प्रतिदिन अपने को आगे बढ़ा हुआ अनुभव करते हैं। (मही) = सुरक्षित सोम हमारे दिन-रात को प्रभु-पूजनवाला कुछ बनाता है, हम प्रभु को कभी भूलते नहीं। दर्शते ये दिन-रात दर्शनीय बनते हैं। हम इनमें कोई भी कार्य ऐसा नहीं करते जो कि इन्हें अमंगल बना दे ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हमारे दिन-रात अत्यन्त सुन्दर बन जाते हैं।

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    विषय

    रात्रिदिनवत् स्त्री पुरुषों के प्रति सूर्यवत् अभिषिक्त राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    (पवमानः) अभिषिक्त होता हुआ राजा (सु-शिल्पे) उत्तम शिल्पों से सम्पन्न, (बृहती) बड़ी गुणयुक्त, (मही) पूज्य, (नक्तोषासा न) रात्रि और दिनवत् (दर्शते) अति दर्शनीय, नक्त अर्थात् रात्रि काल के समान अधिक भूषणों से रहित पुरुष और उषावत् कान्तियुक्त स्त्री, अथवा उषस् अर्थात् दिन के समान तेजस्वी पुरुष और रात्रिवत् लज्जाशील, नाना नक्षत्रों से सुभूषित चन्द्रवत् उज्ज्वल मुख से युक्त स्त्री दोनों वर्गों को वह (वृषण्यति) बलवान् करे, दोनों वर्गों का हित चाहे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः। आप्रियो देवता ॥ छन्द:-- १, २, ४-६ गायत्री। ३, ७ निचृद गायत्री। ८ निचृदनुष्टुप्। ९, १० अनुष्टुप्। ११ विराडनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Beautiful and beatific, vast and grand heaven and earth, the lord of piety and purity loves to shower with grace and abundance as he does the night and day, the glorious dawn and dusk.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की उष:काल स्वाभाविकरीत्या असा उत्तम आहे की अन्य कोणता काळ तसा नाही. यावेळी माणसाची ईश्वरोपासनेकडे स्वाभाविक रुची असते. त्यासाठी वेदामध्ये या ब्राह्ममुहूर्ताचे वर्णन येते. हाच भाव मनुस्मृती इत्यादी ग्रंथात ‘‘ब्राह्मे मुहुर्ते बुद्धयेत’’ म्हटले आहे. ब्राह्ममुहूर्तामध्ये उठावे व परमात्म्याचे चिंतन करावे. ॥६॥

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