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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 58/ मन्त्र 2
उ॒स्रा वे॑द॒ वसू॑नां॒ मर्त॑स्य दे॒व्यव॑सः । तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒स्रा । वे॒द॒ । वसू॑नाम् । मर्त॑स्य । दे॒वी । अव॑सः । तर॑त् । सः । म॒न्दी । धा॒व॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उस्रा वेद वसूनां मर्तस्य देव्यवसः । तरत्स मन्दी धावति ॥
स्वर रहित पद पाठउस्रा । वेद । वसूनाम् । मर्तस्य । देवी । अवसः । तरत् । सः । मन्दी । धावति ॥ ९.५८.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 58; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वसूनाम् उस्रा) अनेकविधरत्नाद्यैश्वर्यदात्री (देवी) तस्य परमात्मनो दिव्यशक्तिः (मर्तस्य अवसः वेद) जीवरक्षायां जागरूका भवति। (तरत् स मन्दी धावति) तथा च स परमात्मा सर्वांस्तारयन् आनन्दरूपेण सर्वत्र व्याप्तोऽस्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वसूनाम् उस्रा) सर्वविध रत्नादि ऐश्वर्यों की प्रदात्री (देवी) उस परमात्मा की दिव्यशक्ति (मर्तस्य अवसः वेद) जीवों की रक्षा करने में जागरूक रहती है (तरत् स मन्दी धावति) और वह परमात्मा सबको तारता हुआ आनन्दरूप से सर्वत्र व्याप्त है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा के आनन्द से ही आनन्दित होकर सब प्राणी सुख को उपलब्ध करते हैं अर्थात् आनन्दमय एकमात्र परमात्मा ही है, कोई अन्य नहीं ॥२॥
विषय
ज्ञानरश्मि-वसु
पदार्थ
[१] गत मन्त्र में वर्णित (अवस:) = रक्षण करनेवाले सोम की धारा (उस्त्रा) = [A ray of light] प्रकाश की किरण ही है। यह अपने रक्षक की ज्ञानदीप्ति को बढ़ानेवाली है। (वसूनां वेद) = [विद लाभे] यह वसुओं को प्राप्त करानेवाली है। इसके रक्षण से शरीर में निवास को उत्तम बनानेवाले सब तत्त्वों का रक्षण होता है। यह सोम की धारा (मर्तस्य देवी) = समान्य मनुष्य को दिव्य गुण- सम्पन्न बनानेवाली है 'ऋषिकृन् मर्त्यानाम्' मनुष्यों को मानो ऋषि बना देती है। [२] (तरत्) = वासनाओं व रोगों को तैरता हुआ (सः) = वह (मन्दी) = ज्ञान से दीप्त होता हुआ (धावति) = अपने जीवन को बड़ा शुद्ध बना लेता है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञानरश्मियों को प्राप्त कराता है, वसुओं को प्राप्त कराता है और हमें देव बना देता है।
विषय
प्रभु की वाणी द्वारा उपासना।
भावार्थ
उस (अवसः) रक्षाकारी पुरुष की (उस्रा) ऊपर ले जाने वाली (देवा) सुख देने वाली वाणी (मर्त्तस्य) मनुष्य को (वसूनां वेद) नाना धन प्राप्त कराती है। (मन्दी) स्तुतिशील (सः) वह (तरत्) सब दुःखों को पार कर जाता और (धावति) अपने को मल रहित कर लेता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३ निचृद् गायत्री। २ विराड् गायत्री। ४ गायत्री॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Mother source of wealth, honour and enlightenment, divine power that commands the saving art for the mortals, saviour, delightful, giver of fulfilment flows on.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या आनंदानेच आनंदित होऊन सर्व प्राणी सुख प्राप्त करतात. अर्थात परमात्माच एकमात्र आनंदमय आहे, दुसरा कोणी नाही. ॥२॥
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