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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 27
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑माना दि॒वस्पर्य॒न्तरि॑क्षादसृक्षत । पृ॒थि॒व्या अधि॒ सान॑वि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मानाः । दि॒वः । परि॑ । अ॒न्तरि॑क्षात् । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । पृ॒थि॒व्याः । अधि॑ । सान॑वि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमानाः । दिवः । परि । अन्तरिक्षात् । असृक्षत । पृथिव्याः । अधि । सानवि ॥ ९.६३.२७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 27
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    शूरादयः (दिवस्परि) द्युलोकादुपरि (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्षतः तथा (पृथिव्याः अधि) पृथ्वीलोकस्य मध्ये (सानवि) शौर्येण सर्वोपरि विराजते ते वीराः (पवमानाः) स्वयं पवित्रीभूय (असृक्षत) शुभगुणमुत्पादयन्ति ॥२७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    जो शूरवीर (दिवस्परि) द्युलोक से ऊपर (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष और (पृथिव्याः अधि) पृथिवीलोक के बीच में (सानवि) शूरवीरता धर्म से सर्वोपरि होकर विराजमान हैं, वे (पवमानाः) स्वयं पवित्र होकर (असृक्षत) शुभगुणों को उत्पन्न करते हैं ॥२७॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि पुरुषो ! तुम अपने शूरवीरतादि धर्मों से इस संसार के उच्च शिखर पर विराजमान होकर सबकी रक्षा करो ॥२७॥

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    विषय

    त्रिलोकी का रक्षण

    पदार्थ

    [१] (पवमाना:) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले ये सोम ! (दिवः परि) = द्युलोक के लक्ष्य से (असृक्षत) = उत्पन्न किये जाते हैं। 'सुरक्षित हुए हुए ये मस्तिष्क रूप द्युलोक को ज्ञानोज्ज्वल बनाते हैं' इसलिए इनका उत्पादन होता है। [२] (अन्तरिक्षात्) = हृदयान्तरिक्ष के दृष्टिकोण से इनका उत्पादन होता है । उत्पन्न हुए हुए ये सोमकण हृदयान्तरिक्ष को बड़ा पवित्र बनाते हैं । [३] (पृथिव्या:) = इस शरीररूप पृथिवी के (अधिसानवि) = समुच्छ्रित प्रदेश के निमित्त यह सोम उत्पन्न किया जाता है। सुरक्षित हुआ हुआ यह सोम हमारे शरीर को खूब उन्नत स्वास्थ्य की स्थिति में रखता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम 'मस्तिष्क, हृदय व स्थूल शरीर' रूप त्रिलोकी को बड़ा ठीक रखता है ।

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    विषय

    वायु वा जल धाराओं के तुल्य सोम, शासकों की विद्यास्थानों से उत्पत्ति।

    भावार्थ

    (दिवः परि पवमानः) सूर्य या दूर आकाश से किरणों के तुल्य, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से वायुओं वा जलधाराओं के तुल्य, (पृथिव्याः) पृथिवी के ऊपर उत्तम ओषधि के समान, (सानवि अधि) उच्च उपभोग्य पद पर (परि असृक्षत) विद्वानों से उत्पन्न हों। वे (पवमानाः) सब को पवित्र दोषरहित करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Pure and purifying Somas, evolutionary powers of nature, divinity and humanity, creative, protective and defensive, are created from the regions of light above, the middle regions and the earth and, on top of the course of evolution and progress, they remain ever active for life in the service of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की, हे पुरुषांनो! तुम्ही आपल्या शूरवीरता इत्यादी धर्मांनी या जगात उच्च शिखरावर विराजमान होऊन सर्वांचे रक्षण करा. ॥२७॥

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