ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 64/ मन्त्र 18
परि॑ णो याह्यस्म॒युर्विश्वा॒ वसू॒न्योज॑सा । पा॒हि न॒: शर्म॑ वी॒रव॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । नः॒ । या॒हि॒ । अ॒स्म॒ऽयुः । विश्वा॑ । वसू॑नि । ओज॑सा । पा॒हि । नः॒ । शर्म॑ । वी॒रऽव॑त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि णो याह्यस्मयुर्विश्वा वसून्योजसा । पाहि न: शर्म वीरवत् ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । नः । याहि । अस्मऽयुः । विश्वा । वसूनि । ओजसा । पाहि । नः । शर्म । वीरऽवत् ॥ ९.६४.१८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 64; मन्त्र » 18
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 39; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 39; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (अस्मयुः) भक्तैः प्राप्तव्यो भवान् (नः) अस्माकं (विश्वा) सम्पूर्णानि (वसूनि) धनानि (ओजसा) सबलानि (परियाहि) सर्वतः प्रापयतु। अथ च (नः) अस्माकं (वीरवत्) वीरान् पुत्रान् (शर्म) शीलं च (पाहि) रक्षयतु ॥१८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (अस्मयुः) भक्तों को प्राप्त होनेवाले आप (नः) हम लोगों के (विश्वा) सम्पूर्ण (वसूनि) धनों को (ओजसा) बल के सहित (परियाहि) सब ओर से प्राप्त कराइये और (नः) हम लोगों के (वीरवत्) वीर पुत्रों की और (शर्म) शील की (पाहि) रक्षा कीजिये ॥१८॥
भावार्थ
जो लोग सदाचारी हैं और सदाचारी से अपने शील को बनाते हैं, परमात्मा उनकी सदैव रक्षा करता है ॥१८॥
विषय
वीरवत शर्म
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (अस्मयुः) = हमारे हित की कामना करता हुआ (ओजसा) = ओजस्विता के साथ (न:) = हमारे (विश्वा वसूनि) = सब वसुओं के (परियाहि) = चारों ओर गतिवाला हो। अर्थात् हमारे वसुओं का रक्षण कर। [२] निवास के लिये आवश्यक सब तत्त्वों को हमारे में सुरक्षित करके (नः) = हमारे लिये (वीरवत्) = वीरता से पूर्ण (शर्म) = सुख को (पाहि) = रक्षित कर । हम तेरे द्वारा वीर बनें और सुखी हों।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम सब वसुओं का रक्षण करता है। हमें वीर बनाता है, सुख प्राप्त कराता है।
विषय
ज्ञान वाणियों द्वारा परम-पद प्राप्ति।
भावार्थ
हे राजन् ! विद्वन् ! (अस्मयुः) हमें चाहता हुआ, (ओजसा) बल पराक्रम द्वारा (नः) हमारे (विश्वा वसूनि) समस्त ऐश्वर्यों को तू (परि पाहि) प्राप्त कर और (नः) हमें (शर्मवत् परि पाहि) गृह के समान रक्षा कर और राजा प्रजा के जान और माल की रक्षा कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४, ७, १२, १३, १५, १७, १९, २२, २४, २६ गायत्री। २, ५, ६, ८–११, १४, १६, २०, २३, २५, २९ निचृद् गायत्री। १८, २१, २७, २८ विराड् गायत्री। ३० यवमध्या गायत्री ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of peace, light and beauty divine, lover of us all, bring us all wealths of the world with the light and lustre of glory. Protect our peace and home blest with brave progeny.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक सदाचारी आहेत व सदाचाराने आपले शील वाढवितात परमात्मा त्यांचे सदैव रक्षण करतो. ॥१८॥
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