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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र सोमा॑य व्यश्व॒वत्पव॑मानाय गायत । म॒हे स॒हस्र॑चक्षसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सोमा॑य । व्य॒श्व॒ऽवत् । पव॑मानाय । गा॒य॒त॒ । म॒हे । स॒हस्र॑ऽचक्षसे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमाय व्यश्ववत्पवमानाय गायत । महे सहस्रचक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमाय । व्यश्वऽवत् । पवमानाय । गायत । महे । सहस्रऽचक्षसे ॥ ९.६५.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (व्यश्ववत्) कर्मयोगीव (सहस्रचक्षसे) अनन्तशक्तिसम्पन्नं (सोमाय) परमात्मानं (प्र गायत) यूयमुपगायध्वम्। यः परमेश्वरः (महे) सर्वपूज्योऽस्ति। तथा (पवमानाय) सर्वपवित्रकर्तास्ति ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (व्यश्ववत्) कर्मयोगी के समान (सहस्रचक्षसे) अनन्तशक्तिसम्पन्न (सोमाय) परमात्मा को (प्र गायत) आप लोग गान करें, जो परमात्मा (महे) सर्वपूज्य और (पवमानाय) सबको पवित्र करनेवाला है ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! तुम उस पूर्ण पुरुष की उपासना करो, जो सर्वशक्तिसम्पन्न और सब संसार का हर्त्ता ,धर्त्ता तथा कर्त्ता है। इसी अभिप्राय से वेद में अन्यत्र भी कहा है कि सूर्य चन्द्रमा आदि सब पदार्थों का कर्त्ता एकमात्र परमात्मा है ॥७॥

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    विषय

    'व्यश्ववत्'

    पदार्थ

    [१] (सोमाय) = इस सोम के लिये प्रगायत खूब ही गायन करो, जो सोम (पवमानाय) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाला है । (महे) = जो सोम हमारे जीवनों को महत्त्वपूर्ण बनानेवाला है । (सहस्रचक्षसे) = जो सोम हमें सहस्रों ज्ञानों को देनेवाला है । सोम के गुणों का गायन करेंगे, इसके गुणों का स्मरण करेंगे, तो इसके रक्षण में प्रवृत्त होंगे। सुरक्षित हुआ हुआ यह हमें 'पवित्र, महत्त्वपूर्ण व ज्ञानदृष्टिवाला' बनायेगा। [२] (व्यश्ववत्) = हम सोम का गायन उस प्रकार करें, जैसे कि 'व्यश्व' सोम का गायन करता है। विशिष्ट इन्द्रियाश्वोंवाला पुरुष 'व्यश्व' है । सोमरक्षण से ही तो यह 'व्यश्व' बना है। हम भी सोम का रक्षण करें और 'व्यश्व' बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'पवित्र, महत्त्वपूर्ण जीवनवाला व ज्ञानदृष्टिवाला' बनाता है।

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    विषय

    वराह पुरुष की राजा के तुल्य स्तुति हो

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! (पवमानाय) सत्यासत्य का विवेक करने वाले, विद्याओं तथा जलों द्वारा अभिषेक कराये जाने वाले (सहस्र- चक्षसे) अनेक ज्ञानों का दर्शन कराने वाले (महे) महान पूज्य (सोमाय) विद्वान् वरार्ह, वधू के अभिलाषी की (वि-अश्ववत्) विविध अश्वों वाले राजा, महारथी के तुल्य (प्र गायत) खूब स्तुति करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O celebrants, like people of real attainments, sing songs of adoration in honour of Soma, lord giver of peace and purity, honour and achievement, the lord that is great, who watches everything with a thousand eyes.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की हे माणसांनो! तुम्ही त्या पूर्ण पुरुषाची उपासना करा. जो सर्वशक्तिसंपन्न व सर्व जगाचा हर्ता, धर्त्ता व कर्त्ता आहे. या दृष्टीने वेदामध्ये इतरत्र ही म्हटले आहे की सूर्य-चंद्र इत्यादी सर्व पदार्थांचा कर्ता एकमात्र परमात्मा आहे. ॥७॥

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