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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 22
    ऋषिः - पवित्रो वसिष्ठो वोभौः वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑मान॒: सो अ॒द्य न॑: प॒वित्रे॑ण॒ विच॑र्षणिः । यः पो॒ता स पु॑नातु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मानः । सः । अ॒द्य । नः॒ । प॒वित्रे॑ण । विऽच॑र्षणिः । यः । पो॒ता । सः । पु॒ना॒तु॒ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमान: सो अद्य न: पवित्रेण विचर्षणिः । यः पोता स पुनातु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमानः । सः । अद्य । नः । पवित्रेण । विऽचर्षणिः । यः । पोता । सः । पुनातु । नः ॥ ९.६७.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 22
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः) स परमात्मा (नः) अस्माकं (पवमानः) पवित्रयिता तथा (विचर्षणिः) सकलद्रष्टास्ति। अथ च (पवित्रेण) स्वकीयपवित्रधर्मेण (यः) य ईश्वरः (पोता) सकलपावकोऽस्ति (सः) असौ जगज्जनकः परमेश्वरः (नः) अस्मान् (अद्य पुनातु) अद्यैव पवित्रयतु ॥२२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सः) वह परमात्मा (नः) हम लोगों को (पवमानः) पवित्र करनेवाला तथा (विचर्षणिः) सर्वदृष्टा है और (पवित्रेण) अपने पवित्र धर्मों से (यः) जो (पोता) सबको पवित्र करनेवाला है (सः) वह (नः) हमको (अद्य) अब (पुनातु) पवित्र करे ॥२२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में अपूर्वता का उपदेश किया गया है कि उपासनाकाल में उपासक अपनी पवित्रता का अनुसन्धान करे और उसकी न्यूनता देखकर उसकी याचना परमेश्वर से अवश्यमेव करे ॥२२॥

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    विषय

    'पवित्रता का सम्पादक' सोम

    पदार्थ

    [१]( विचर्षणि:) = विशिष्ट द्रष्टा ज्ञानाग्नि को दीप्त करके हमें वस्तुतत्त्व का द्रष्टा बनानेवाला (सः) = वह सोम (अद्य) = आज (नः) = हमें (पवित्रेण) = पवित्र हृदय से (पवमानः) = पवित्र करनेवाला हो । पवित्र हृदय को प्राप्त कराके यह हमें पवित्र कर डाले । [२] वह सोम (यः) = जो (पोता) = हमें पवित्र करनेवाला है (सः) = वह (नः) = हमें पुनातु - पवित्र करे। सोम शरीर के रोगों को नष्ट करके शरीर शुद्धि का जनक होता है। काम, क्रोध, लोभ आदि को नष्ट करके मानस शुद्धि का कारण बनता है । बुद्धि की मन्दता को दूर करके बुद्धि को भी निर्मल कर डालता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे जीवन को रोग, क्रोध व बुद्धिमान्द्य आदि मलिनताओं से दूर करे।

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    विषय

    वह किनको दण्ड दे।

    भावार्थ

    (सः) वह (विचर्षणिः) विशेष अध्यक्ष, (पवमानः) दुष्टों को दूर करता हुआ (पवित्रेण) शस्त्र बल से युक्त होकर (नः) हमारे बीच (यः पोता) जो पवित्र करने में कुशल है (सः नः पुनातु) वह हमें पवित्र, स्वच्छ करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The Soma that is pure and purifies us now with its sanctity and power, that all watching guardian and universal purifier may, we pray, purify and sanctify us right now.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात या अपूर्वतेचा उपदेश केलेला आहे की, उपासनाकाळात उपासकाने आपल्या पवित्रतेचे अनुसंधान करावे व आपली न्यूनता पाहून त्याची याचना परमेश्वराजवळ अवश्य करावी. ॥२२॥

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