ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पव॑मानो अ॒भि स्पृधो॒ विशो॒ राजे॑व सीदति । यदी॑मृ॒ण्वन्ति॑ वे॒धस॑: ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानः । अ॒भि । स्पृधः॑ । विशः॑ । राजा॑ऽइव । सी॒द॒ति॒ । यत् । ई॒म् । ऋ॒ण्वन्ति॑ । वे॒धसः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो अभि स्पृधो विशो राजेव सीदति । यदीमृण्वन्ति वेधस: ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानः । अभि । स्पृधः । विशः । राजाऽइव । सीदति । यत् । ईम् । ऋण्वन्ति । वेधसः ॥ ९.७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमानः) सर्वस्य पावयिता (अभि स्पृधः) सर्वोत्कर्षेण वर्तमानः (विशः राजा इव सीदति) प्रजा राजेवानुशास्ति (यद् ईम्) सम्यक् (ऋण्वन्ति) सत्कर्मसु प्रेरयति (वेधसः) सर्वोपरि ज्ञाता विधाता चास्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमानः) “पवत इति पवमानः” सबको पवित्र करनेवाला (अभि स्पृधः) सबको मर्दन करके विराजमान है (विशः राजा इव सीदति) प्रजाओं को राजा के समान अनुशासन करता है (यद् ईम्) भली-भाँति (ऋण्वन्ति) सत्कर्म में प्रेरणा करता है (वेधसः) सर्वोपरि बुद्धिमान् है ॥५॥
भावार्थ
राजा की उपमा यहाँ इसलिये दी गयी है कि राजा का शासन लोकप्रसिद्ध है, इस अभिप्राय से यहाँ राजा का दृष्टान्त है। ईश्वर के समान बल्सूचना के अभिप्राय से नहीं और जो मन्त्र में बहुवचन है, वह व्यत्यय से है ॥५॥२८॥
विषय
राजा की तरह
पदार्थ
[१] (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से (वेधसः) = ज्ञानी पुरुष (ऋण्वन्ति) = इस सोम को अपने अन्दर प्रेरित करते हैं [प्रेरयन्ति ] तो (पवमानः) = यह जीवनों को पवित्र करनेवाला सोम (स्पृधः) = जीवन के शत्रुभूत रोगकृमियों के प्रति (अभिसीदति) = उनके विनाश के लिये जाता है। इस प्रकार उनके विनाश के लिये जाता है (इव) = जैसे कि (राजा) = एक शासक (स्पृधः विश:) = शत्रुभूत मनुष्यों के प्रति जाता है । [२] शरीर में प्रेरित हुआ हुआ सोम हमारा इस प्रकार रक्षण करता है, जैसे कि एक राजा राष्ट्र का रक्षण करता है। राजा राष्ट्र के शत्रुओं का विनाश करता है, इसी प्रकार सोम शरीर के शत्रुभूत रोगकृमियों का विनाश करता है ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में प्रेरित सोम शरीर राष्ट्र का रोगकृमिरूप शत्रुओं से रक्षण करता है ।
विषय
सन्मार्ग में प्रेरित राजा का दुष्टदमन का कार्य।
भावार्थ
(यद् ईम्) जब इसको (वेधसः) विद्वान् लोग (ऋण्वन्ति) सन्मार्ग में प्रेरित करते और उपदेश देते हैं तब वह (पवमानः) स्वयं पवित्र होकर राष्ट्र आदि को भी दुष्टों का नाश कर पवित्र करता हुआ (स्पृधः अभि पवमानः) अपने स्पर्धालु शत्रुओं पर आक्रमण करता हुआ प्रजाओं पर अध्यक्ष (राजा इव विशः सीदति) राजा के समान समस्त होकर विराजता है। इत्यष्टाविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ५–९ गायत्री। २ निचृद् गायत्री। ४ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The pure and purifying Soma rises over all rivals and sits on top of people like a ruler when the wise sages pray and move his attention and love.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाची उपमा यासाठी दिलेली आहे की, राजाचे शासन लोक प्रसिद्ध असते. त्यामुळे तेथे राजाचा दृष्टांत आहे. ईश्वराप्रमाणे बलाच्या अभिप्रायाने नाही. तसेच मंत्रात बहुवचन आहे ते व्यत्ययाने आहे. ॥५॥
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