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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 74/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अरा॑वीदं॒शुः सच॑मान ऊ॒र्मिणा॑ देवा॒व्यं१॒॑ मनु॑षे पिन्वति॒ त्वच॑म् । दधा॑ति॒ गर्भ॒मदि॑तेरु॒पस्थ॒ आ येन॑ तो॒कं च॒ तन॑यं च॒ धाम॑हे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अरा॑वीत् । अं॒शुः । सच॑मानः । ऊ॒र्मिणा॑ । दे॒व॒ऽअ॒व्य॑म् । मनु॑षे । पि॒न्व॒ति॒ । त्वच॑म् । दधा॑ति । गर्भ॑म् । अदि॑तेः । उ॒पऽस्थे॑ । आ । येन॑ । तो॒कम् । च॒ । तन॑यम् । च॒ । धाम॑हे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अरावीदंशुः सचमान ऊर्मिणा देवाव्यं१ मनुषे पिन्वति त्वचम् । दधाति गर्भमदितेरुपस्थ आ येन तोकं च तनयं च धामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अरावीत् । अंशुः । सचमानः । ऊर्मिणा । देवऽअव्यम् । मनुषे । पिन्वति । त्वचम् । दधाति । गर्भम् । अदितेः । उपऽस्थे । आ । येन । तोकम् । च । तनयम् । च । धामहे ॥ ९.७४.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 74; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ऊर्मिणा) स्वीयानन्दतरङ्गैः (सचमानः) सङ्गतः (अंशुः) व्यापकः परमात्मा (अरावीत्) सदुपदेशं करोति। अथ च (मनुषे) मनुष्याय (देवाव्यं त्वचम्) देवभावोत्पादकं शरीरं (पिन्वति) पुष्णाति। तथा (अदितेः उपस्थे) अस्याः पृथिव्याः (गर्भम्) नानाविधौषधेरुत्पत्तिरूपं गर्भं (आ दधाति) धारयति। (येन) यतः (तोकम्) दुःखनाशकं (तनयम्) पुत्रपौत्रादिकं (धामहे) वयं धारयेम ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ऊर्मिणा) अपने आनन्दलहरों से (सचमानः) संगत (अंशुः) सर्वव्यापक परमात्मा (अरावीत्) सदुपदेश करता है और (मनुषे) मनुष्य के लिये (देवाव्यं त्वचम्) देवभाव को पैदा करनेवाले शरीर को (पिन्वति) पुष्ट करता है तथा (अदितेः उपस्थे) इस पृथिवी पर (गर्भम्) नाना प्रकार के औषधियों के उत्पत्तिरूप गर्भ को (आ दधाति) धारण कराता है, (येन) जिससे (तोकम्) दुःख के नाश करनेवाले (तनयम्) पुत्र-पौत्र को (धामहे) हम लोग धारण करें ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा की कृपा से ही सुकर्मा पुरुष को नीरोग और दिव्य शरीर मिलता है, जिससे वह सत्सन्तति को प्राप्त होकर इस संसार में अभ्युदयशाली बनता है ॥५॥

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    विषय

    सूर्य द्वारा जलवृष्टि का वैज्ञानिक रहस्य।

    भावार्थ

    वही (अंशुः) व्यापक तत्व (ऊर्मिणा) ऊपर स्थित जल-संघ वा वायु के साथ (सचमानः) मिलता हुआ (अरावीत्) मेघ बन गर्जन करता है। वही (मनुषे) मनुष्य की (देवाव्यम् त्वचम्) प्राणों इन्द्रियों को रक्षा करने वाले त्वचा, देह को (पिन्वति) बढ़ाता है। अथवा—(मनुषे) मनुष्यों के हितार्थ (देवाव्यं) किरणों में संगत (त्वचं) भूमि के ऊपर के पृष्ठ को जल रूप में (पिन्वति) सेचित करता है। इत्येकत्रिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवानृषिः। पवमानः सोमो देवता। छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ६ विराड् जगती। ४, ७ जगती। ५, ९ निचज्जगती। ८ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ऊर्मिणा सचमानः सोमः अराबीत्

    पदार्थ

    [१] (अंशुः) = प्रकाश को प्राप्त करानेवाला यह सोम (ऊर्मिणा) = [ light] ज्ञान के प्रकाश से (सचमानः) = समवेत हुआ हुआ अरावीत् प्रभु के नामों का उच्चारण करता है, स्तवन करता है । सोमरक्षण से जहां ज्ञान बढ़ता है, वहां प्रभु-स्तवन की वृत्ति उत्पन्न होती है। यह सोम (मनुषे) = विचारशील पुरुष के लिये (देवाव्यम्) = दिव्यगुणों के रक्षण में उत्तम (त्वचम्) = त्वचा को, रक्षक आवरण को (पिन्वति) = बढ़ाता है । सोमरक्षण से शरीर को वह कवच तुल्य त्वचा प्राप्त होती है जो उसे रोग आदि से आक्रान्त नहीं होने देती। [२] यह सोमरक्षक पुरुष (अदितेः) = अदीना देवमाता की (उपस्थे) = गोद में रहता हुआ, अदीन व दिव्यगुणोंवाला बनता हुआ, (गर्भं दधाति) = सबके अन्दर निवास करनेवाले, सबके वर्णरूप उस प्रभु को (दधाति) = धारण करता है। येन जिस प्रभु के धारण से (तोकं च) = पुत्रों को (च) = व (तनयं च) = पौत्रों को भी (आधामहे) = हम धारण करनेवाले बनते हैं । प्रभु का स्मरण हमारे सन्तानों को भी उत्तम बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हम [क] प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले बनते हैं, [ख] हमारा ज्ञान बढ़ता है, [ग] हमारी त्वचा कवच का रूप धारण करती है, [घ] हमारे सन्तान भी उत्तम होते हैं ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The soma spirit of divine vitality, one in love with life, vitalises and strengthens the holy earth and body health of humanity with the waves of its joy and love desire. It vests the womb of earth with seed and fertility by virtue of which we beget our children and grand children.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या कृपेनेच चांगले कर्म करणाऱ्या पुरुषाला निरोगी व दिव्य शरीर मिळते. ज्यामुळे त्याला चांगली संतती प्राप्त होऊन या जगात त्याचा अभ्युदय होतो. ॥५॥

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