ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
म॒घोन॒ आ प॑वस्व नो ज॒हि विश्वा॒ अप॒ द्विष॑: । इन्दो॒ सखा॑य॒मा वि॑श ॥
स्वर सहित पद पाठम॒घोनः॑ । आ । प॒व॒स्व॒ । नः॒ । ज॒हि । विश्वाः॑ । अप॑ । द्विषः॑ । इन्दो॒ इति॑ । सखा॑यम् । आ । वि॒श॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मघोन आ पवस्व नो जहि विश्वा अप द्विष: । इन्दो सखायमा विश ॥
स्वर रहित पद पाठमघोनः । आ । पवस्व । नः । जहि । विश्वाः । अप । द्विषः । इन्दो इति । सखायम् । आ । विश ॥ ९.८.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे परमैश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! भवान् (नः, मघोनः) अस्मान्विविधधनवतः कुरुताम् (आ, पवस्व) सर्वथा पावयतु च (विश्वा) सर्वान् (अप, द्विषः) दुष्टान् अपहन्तु तथा (सखायम्) सज्जनान् (आविश) सर्वत्र तनोतु च ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे परमैश्वर्यवाले परमात्मन् ! आप (मघोनः) हमको ऐश्वर्यसम्पन्न करें (आ, पवस्व) और सब प्रकार से पवित्र करें (विश्वा) सब (अप, द्विषः) दुष्टों का नाश करें और (सखायम् आविश) सज्जनों को सर्वत्र फैलायें ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे पुरुषों ! तुम इस प्रकार के प्रार्थनारूप भाव को हृदय में उत्पन्न करो कि तुम्हारे सत्कर्मी सज्जनों की रक्षा हो और दुष्टों का नाश हो ॥७॥
विषय
यज्ञशीलता व प्रभु मित्रता
पदार्थ
[१] [मघवान्-मखवान्] हे सोम ! (मघोनः) = यज्ञशील (नः) = हमें (आपवस्व) = सर्वथा प्राप्त हो । हमें प्राप्त होकर तू (विश्वाः द्विषः) = सब द्वेष की भावनाओं को (अपजहि) = हमारे से दूर कर । सदा यज्ञों में लगे रहने पर सोम का शरीर में सुरक्षित होना स्वाभाविक है । सोम के सुरक्षित होने पर हमारे जीवनों में 'ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध' नहीं रहते । [२] (इन्दो) = हे शक्ति का संचार करनेवाले सोम ! (सखायम्) = प्रभु का मित्रभूत मुझे (आविश) = समन्तात् प्राप्त हो। मैं प्रभु का मित्र बनूँ । प्रभु का मित्र बनने पर वासनाओं से मैं आक्रान्त न हूँगा और सोम को शरीर में ही व्याप्त करके 'नीरोग निर्मल व दीप्त' बन पाऊँगा ।
भावार्थ
भावार्थ-यज्ञशील व प्रभु के मित्र बनकर हम सोम को अपने अन्दर सुरक्षित करें ।
विषय
उत्तम अध्यक्षों की नियुक्ति कर दुष्टों का दमन।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! दयावन् ! स्नेहयुक्त ! तू (नः मघोनः आ पवस्व) हमारे उत्तम धनवानों को प्राप्त हो और उनको पवित्र या उत्तम पदों पर अभिषिक्त कर। तू (नः विश्वा द्विषः अप जहि) हमारे समस्त द्वेषी अप्रीति-कर अमित्रों को दण्डित कर। और (सखायम्) मित्र को (आ विश) प्राप्त कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ५, ८ निचृद् गायत्री। ३, ४, ७ गायत्री। ६ पादनिचृद् गायत्री। ९ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord of peace and bliss, come and purify the devotees, men of wealth, power and honour, and ward off all our negativities, oppositions, jealousies and enmities from us and bless us all to live together as friends.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की, हे माणंसानो! तुम्ही या प्रकारचे प्रार्थनारूपी भाव हृदयात उत्पन्न करा की, सत्कर्मी सज्जनांचे रक्षण व्हावे व दुष्टांचा नाश व्हावा. ॥७॥
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