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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 22
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्रास्य॒ धारा॑ बृह॒तीर॑सृग्रन्न॒क्तो गोभि॑: क॒लशाँ॒ आ वि॑वेश । साम॑ कृ॒ण्वन्त्सा॑म॒न्यो॑ विप॒श्चित्क्रन्द॑न्नेत्य॒भि सख्यु॒र्न जा॒मिम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । अ॒स्य॒ । धाराः॑ । बृ॒ह॒तीः । अ॒सृ॒ग्र॒न् । अ॒क्तः । गोभिः॑ । क॒लशा॑न् । आ । वि॒वे॒श॒ । साम॑ । कृ॒ण्वन् । सा॒म॒न्यः॑ । वि॒पः॒ऽचित् । क्रन्द॑न् । ए॒ति॒ । अ॒भि । सख्युः॑ । न । जा॒मिम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रास्य धारा बृहतीरसृग्रन्नक्तो गोभि: कलशाँ आ विवेश । साम कृण्वन्त्सामन्यो विपश्चित्क्रन्दन्नेत्यभि सख्युर्न जामिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । अस्य । धाराः । बृहतीः । असृग्रन् । अक्तः । गोभिः । कलशान् । आ । विवेश । साम । कृण्वन् । सामन्यः । विपःऽचित् । क्रन्दन् । एति । अभि । सख्युः । न । जामिम् ॥ ९.९६.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 22
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अस्य) अस्य परमात्मनः (बृहतीः, धाराः) आनन्दस्य महत्यो धाराः (प्र, असृग्रन्) याः परमात्मप्रेरणया रचिताः (अक्तः) सर्वव्यापकः परमात्मा (गोभिः) स्वज्ञानज्योतिर्भिः (कलशान्) उपासकान्तःकरणानि (आ, विवेश) प्रविशति (साम, कृण्वन्) अखिलजगति शान्तिं तन्वन् (सामन्यः) शान्तितत्परः (विपश्चित्) सर्वज्ञः सः (सख्युः) मित्रस्य (जामिं, न) हस्तं गृहीत्वेव (क्रन्दन्, अभि, एति) शुभशब्दान् कुर्वन् मां प्राप्नोतु ॥२२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अस्य) इस परमात्मा के आनन्द की (बृहतीः, धाराः) बड़ी धारायें (प्रासृग्रन्) जो परमात्मा की ओर से रची गई हैं, (अक्तः) सर्वव्यापक परमात्मा (गोभिः) अपने ज्ञान की ज्योति द्वारा (कलशान्) उपासकों के अन्तःकरणों में (आविवेश) प्रवेश करता है और (साम कृण्वन्) सम्पूर्ण संसार में शान्ति फैलाता हुआ (सामन्यः) शान्तिरस में तत्पर परमात्मा (विपश्चितः) जो सर्वोपरि बुद्धिमान् है, वह (सख्युः) मित्र के (न, जामिम्) हाथ को पकड़ने के समान (क्रन्दन्, अभ्येति) मङ्गलमय शब्द करता हुआ हमको प्राप्त हो ॥२२॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपने भक्तों को सदैव सुरक्षित रखता है। जिस प्रकार मित्र अपने मित्र पर सदैव रक्षा के लिये हाथ प्रसारित करता है, एवं स्वमर्य्यादानुयायी लोगों पर ईश्वर सदैव कृपादृष्टि करता है ॥२२॥

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    विषय

    अभिषेकयोग्य के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (अस्य धाराः बृहतीः) इस की बड़ी २ महान् अर्थ को धारण करने वाली वेद वाणियां और बड़ी २ शक्तियां (प्र असृग्रन्) अच्छी प्रकार प्राप्त हो। उसके पश्चात् वह विद्वान् और वीर (गोभिः अक्तः) वाणियों द्वारा रश्मियों से चमकते सूर्य वा चन्द्रवत् (कलशान् आ विवेश) स्नानार्थ कलशों के बीच प्रवेश करे अर्थात् तदनन्तर वह स्नान करने का अधिकारी हो। वह (विपश्चित्) ज्ञान और कर्मशक्ति का जानने और संचय करने हारा विद्वान् (सामन्यः) सामवेद में, साम गुण के प्रयोग में, एवं सर्वत्र समान व्यवहार, समदृष्टि में कुशल होकर, सब को सान्त्वना, शान्तिमय वचन प्रदान करने वाला होकर और (साम कृण्वन्) साम, सान्त्वना, समदर्शिता, सम्यग् व्यवहार और स्तुति आदि का प्रयोग करता हुआ (क्रन्दन्) उत्तम उपदेश करता हुआ, (सख्युः न जामिम्) सब को मित्र के बन्धु के तुल्य (अभि एति) स्नेह से प्राप्त करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'साम कृण्वन्- सामन्यः ' सोमः

    पदार्थ

    (अस्य) = इस सोम की (बृहती:) = वृद्धि की कारणभूत (धाराः) = धारायें (प्र असृग्रन्) = प्रकर्षेण सृष्ट होती हैं । (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा (अक्तः) = कान्त बनाया गया यह सोम (कलशान्) = इन सोलह कलाओं के आधारभूत शरीर में (आविवेश) = समन्तात् प्रवेश करता है। (साम कृण्वन्) = शान्ति को करता हुआ यह सोम (सामन्यः) = [समनम् संग्राम नाम नि० २.१७] समन में, संग्राम में कुशल है । रोगकृमि आदि को संग्राम में समाप्त करके ही यह शान्ति को प्राप्त कराता है। (विपश्चित्) = यह ज्ञानी है, बुद्धि का वर्धन करके हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाला है। (क्रन्दन्) = प्रभु का आह्वान करता हुआ यह (सख्युः) = उस सखा प्रभु की (जामिम्) = पत्नी के समान जो यह वेदवाणी है, इसकी (अभि एति) = ओर यह जानेवाला होता है । सोमरक्षक ज्ञान की ओर झुकाव वाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्वाध्याय की प्रवृत्ति, वासनाओं से बचाकर, हमें सोमरक्षण के योग्य बनाती है । यह सोम 'शान्ति - ज्ञान - प्रभुप्रवणता' को देता हुआ हमें वेदवाणी की ओर ले जाता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The streams of this Soma joy flow vaulting full, and the spirit adorned by songs of celebration seeps into the heart core of chosen souls. Thus does Soma, creating peace, supreme peace itself, cosmic intelligence omniscient, goes forward with humanity proclaiming its presence and loving like a twin brother and sister.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर आपल्या भक्तांचे सदैव रक्षण करतो. ज्या प्रकारे मित्र आपल्या मित्राच्या रक्षणासाठी तत्पर असतो, त्याप्रकारे स्वमर्यादा अनुयायी लोकांवर ईश्वर सदैव कृपा करतो. ॥२२॥

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