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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1026
    ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
    17

    त्व꣡मि꣢न्द्राभि꣣भू꣡र꣢सि꣣ त्व꣡ꣳ सूर्य꣢꣯मरोचयः । वि꣣श्व꣡क꣢र्मा वि꣣श्व꣡दे꣢वो म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि ॥१०२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । इ꣣न्द्र । अभिभूः꣢ । अ꣣भि । भूः꣢ । अ꣣सि । त्व꣢म् । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣣रोचयः । विश्व꣡क꣢र्मा । वि꣣श्व꣢ । क꣣र्मा । विश्व꣡दे꣢वः । वि꣣श्व꣢ । दे꣣वः । महा꣢न् । अ꣣सि ॥१०२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिन्द्राभिभूरसि त्वꣳ सूर्यमरोचयः । विश्वकर्मा विश्वदेवो महाꣳ असि ॥१०२६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । इन्द्र । अभिभूः । अभि । भूः । असि । त्वम् । सूर्यम् । अरोचयः । विश्वकर्मा । विश्व । कर्मा । विश्वदेवः । विश्व । देवः । महान् । असि ॥१०२६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1026
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमेश्वर के गुण-कर्मों का वर्णन है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) जगदीश्वर ! (त्वम्) आप (अभिभूः) सब काम, क्रोध आदि शत्रुओं को परास्त करनेवाले (असि) हो, (त्वम्) आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमकाया है। आप (विश्वकर्मा) सब कर्मों को करनेवाले, (विश्वदेवः) सबको आनन्द देनेवाले तथा (महान्) महान् (असि) हो ॥२॥

    भावार्थ

    जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति, प्रकाशप्रदान आदि कर्मों से तथा आनन्द देने के द्वारा हमारा उपकार करता है, उस अनन्त महिमावाले परमेश्वर के स्तुतिगीत सबको गाने चाहिएँ ॥२॥

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    पदार्थ

    (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (अभिभूः-असि) तू संसार पर या सब पर अधिकारकर्ता है (त्वं सूर्यम्-अरोचयः) तू सूर्य—जगत् प्रकाशक पिण्ड को चमकाता है—प्रकाशित करता है*109 (विश्वकर्मा) विश्व—संसार को रचने—घड़नेवाला*110 (विश्वदेवः) सबका इष्टदेव (महान्-असि) तू महान् सर्वमहान् है॥२॥

    टिप्पणी

    [*109. “इन्द्रः सूर्यमरोचयत्” [ऋ॰ ८.३.६]।] [*110. “किं स्विद् वनं क उ स वृक्षो यतो द्यावापृथिवी निष्टतक्षुः” [ऋ॰ १०.८१.४]।]

    विशेष

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    विषय

    नृमेध का प्रभु-स्तवन

    पदार्थ

    जो व्यक्ति केवल स्वार्थमय निजी जीवन नहीं बिताता, अपितु जिसका जीवन समष्टि के साथ मिलकर चलता है, वह सब नरों के साथ मेल करनेवाला 'नृमेध' कहता है कि—१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (अभिभूः असि) = सब बुराइयों का अभिभव करनेवाले हैं। वस्तुतः नृमेध समाजहित के कर्मों में लगा हुआ यह गर्व नहीं करता कि वह बुराइयों को दूर करने में लगा है, अपितु वह तो यही भावना रखता है कि सब बुराइयों को दूर करनेवाले तो वे प्रभु ही हैं। २. हे प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (सूर्यम्) = ज्ञान के सूर्य को (अरोचयः) = चमकाते हैं । नृमेध प्रजाओं में ज्ञान का विस्तार करता हुआ यही समझता है कि यह ज्ञान - सूर्य उस प्रभु से ही दीप्त किया जा रहा है । ३. हे प्रभो ! विश्वकर्मा=ये सब कार्य आपकी ही शक्ति से हो रहे हैं । ४. विश्वदेवः = सब दिव्य गुण आपके ही हैं । ५. महान् असि-आप सचमुच महान् हैं—पूज्य हैं। इस प्रकार प्रभु-स्तवन करता हुआ यह नृमेध अपने में किसी प्रकार के गर्व को नहीं आने देता ।

    भावार्थ

    इस संसार में जो कुछ अच्छाई व उत्तमता है, वह सब उस प्रभु की ही है। 

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = हे  ( इन्द्र ) = परमेश्वर ! ( त्वम् अभिभूः असि ) = आप सब [ पर शासन करने] को दबा सकनेवाले हो,  ( त्वम् सूर्यम् अरोचय: ) = आप ही सूर्य को प्रकाश देते हो  ( विश्वकर्मा ) = सब जगतों के रचनेवाले  ( विश्वदेवः ) = सबके प्रकाशक देव और  ( महान् असि ) = सर्वव्यापी महादेव हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे परमात्मन्! आप सर्वशक्तिमान् होने से सबको दबानेवाले हैं। सूर्य, चन्द्र, अग्नि, विद्युत् आदि सब प्रकाशों के प्रकाशक भी आप हैं, आपके प्रकाश के बिना ये सूर्य आदि कुछ भी प्रकाश नहीं कर सकते, इसलिए आपको ज्योतियों का ज्योति सच्छास्त्रों में वर्णन किया है। सब ब्रह्माण्डों के रचनेवाले और सूर्य आदि सब देवों के देव होने से आप महादेव हैं।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे इन्द्र ! (त्वम्) आप (अभिभूः) सबसे अधिक सामर्थ्यवान् (असि) हो। (त्वं) आप ही (सूर्य) सूर्य को (अरोचयः) प्रकाशित करते हो। और आप ही (विश्वकर्मा) समस्त संसार के बनाने हारे (विश्वदेवः) सबके प्रकाशक और उनके उपास्य देव सब ऐश्वर्यों के दाता, सब देवों के देव और (महान्) सबसे बड़े पूजनीय (असि) हो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—त्रय ऋषिगणाः। २ काश्यपः ३, ४, १३ असितः काश्यपो देवलो वा। ५ अवत्सारः। ६, १६ जमदग्निः। ७ अरुणो वैतहव्यः। ८ उरुचक्रिरात्रेयः ९ कुरुसुतिः काण्वः। १० भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा १२ मनुराप्सवः सप्तर्षयो वा। १४, १६, २। गोतमो राहूगणः। १७ ऊर्ध्वसद्मा कृतयशाश्च क्रमेण। १८ त्रित आप्तयः । १९ रेभसूनू काश्यपौ। २० मन्युर्वासिष्ठ २१ वसुश्रुत आत्रेयः। २२ नृमेधः॥ देवता—१-६, ११-१३, १६–२०, पवमानः सोमः। ७, २१ अग्निः। मित्रावरुणौ। ९, १४, १५, २२, २३ इन्द्रः। १० इन्द्राग्नी॥ छन्द:—१, ७ नगती। २–६, ८–११, १३, १६ गायत्री। २। १२ बृहती। १४, १५, २१ पङ्क्तिः। १७ ककुप सतोबृहती च क्रमेण। १८, २२ उष्णिक्। १८, २३ अनुष्टुप्। २० त्रिष्टुप्। स्वर १, ७ निषादः। २-६, ८–११, १३, १६ षड्जः। १२ मध्यमः। १४, १५, २१ पञ्चमः। १७ ऋषभः मध्यमश्च क्रमेण। १८, २२ ऋषभः। १९, २३ गान्धारः। २० धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरस्य गुणकर्माणि वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    हे (इन्द्र) जगदीश्वर ! (त्वम्) अभिभूः सर्वेषां विघ्नानां कामक्रोधादिशत्रूणां वा अभिभविता (असि) वर्तसे। (त्वम् सूर्यम्) आदित्यम् (अरोचयः) दीपितवानसि। त्वम् (विश्वकर्मा) सर्वकर्मा, (विश्वदेवः) सर्वमोदकः।[विश्वान् सर्वान् सज्जनान् देवयति मोदयते यः सः। दिवुः मोदार्थः।] (महान्) महामहिमश्च (असि) वर्तसे ॥२॥

    भावार्थः

    यो जगदुत्पत्तिस्थितिप्रकाशनादिकर्मभिरानन्दप्रदानेन चास्मानुपकरोति तस्याऽनन्तमहिम्नः परमेश्वरस्य स्तुतिगीतानि सर्वैर्गातव्यानि ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।९८।२, अथ० २०।६२।६।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, Thou art the Conqueror, Thou givest splendour to the Sun, Thou art the Maker of all things, Thou art the God of gods, and art Mighty!

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    Meaning

    Indra, you are the lord supreme dominant over all, you give light to the sun, you are the maker of the universe, you are the one adorable light and spirit of the world, you are the one great and glorious life of the world. (Rg. 8-98-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्द्र) હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (अभिभूः असि) તું સંસાર અથવા સૌની ઉપર અધિકારકર્તા છે. (त्वं सूर्यम् अरोचयः) તું સૂર્ય-જગત પ્રકાશક પિંડને ચમકાવે છે-પ્રકાશિત કરે છે. (विश्वकर्मा) વિશ્વસંસારને રચનાર-ઘડનાર છે. (विश्वदेवः) સર્વનો ઇષ્ટદેવ (महान् असि) તું મહાન સર્વ મહાન છે. (૨)
     

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ত্বমিন্দ্রাভিভূরসি ত্বং সূর্যমরোচয়ঃ।

    বিশ্বকর্মা বিশ্বদেবো মহাঁ অসি।।৪৪।।

    (সাম ১০২৬)

    পদার্থঃ  হে (ইন্দ্র ) পরমেশ্বর! (ত্বম অভিভূঃ অসি) তুমি সকলের উপর শাসন করতে ও সকলকে দমন করতে পার। (ত্বম সূর্যম্ অরোচয়ঃ) তুমিই সূর্যকে প্রকাশকারী, (বিশ্বকর্মা) সম্পূর্ণ জগতের রচয়িতা, (বিশ্বদেবঃ) সকল কিছুর প্রকাশক দেব এবং (মহান্ অসি) সর্বব্যাপী মহাদেব। 

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে পরমাত্মা! তুমি সর্বশক্তিমান হওয়ায় সবাইকে দমন করার সামর্থ্যবান। সূর্য, চন্দ্র, অগ্নিবিদ্যুৎ সহ সবকিছুর  প্রকাশক তুমি। তোমার প্রকাশ ছাড়া সূর্যও কোন কিছুই প্রকাশিত করতে পারে না। এ কারণেই তোমাকে সকল জ্যোতির জ্যোতি হিসেবে বিভিন্ন শাস্ত্রে বর্ণনা করা হয়েছে। সম্পূর্ণ ব্রহ্মাণ্ডের রচয়িতা এবং সূর্য সহ সকল বাহ্য দেবতাদেরও দেবতা হওয়ায়, তুমি মহাদেব ।।৪৪।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो जगाची उत्पत्ती, स्थिती व प्रकाश प्रदान करतो व आनंदही देतो. आमच्यावर उपकार करतो. त्या अनंत महिमायुक्त परमेश्वराचे स्तुतीगीत सर्वांनी गावे. ॥२॥

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