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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 28
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    30

    सि॒ञ्चन्ति॒ परि॑ षिञ्च॒न्त्युत्सि॑ञ्चन्ति पु॒नन्ति॑ च।सुरा॑यै ब॒भ्वै्र मदे॑ कि॒न्त्वो व॑दति कि॒न्त्वः॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सि॒ञ्चन्ति॒। परि॑। सि॒ञ्च॒न्ति॒। उत्। सि॒ञ्च॒न्ति॒। पु॒नन्ति॑। च॒। सुरा॑यै। ब॒भ्र्वै। मदे॑। कि॒न्त्वः। व॒द॒ति॒। कि॒न्त्वः ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिञ्चन्ति परि षिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च । सुरायै बर्भ्वै मदे किन्त्वो वदति किन्त्वः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सिञ्चन्ति। परि। सिञ्चन्ति। उत् । सिञ्चन्ति। पुनन्ति। च। सुरायै। बभ्वै्र। मदे। किन्त्वः। वदति। किन्त्वः॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 28
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषये शारीरिकविषयमाह॥

    अन्वयः

    ये बभ्वै्र सुरायै मदे महौषधिरसं सिञ्चन्ति परिसिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च, ते शरीरात्मबल-माप्नुवन्ति, यः किन्त्वः किन्त्वश्चेति वदति, स किञ्चिदपि नाप्नोति॥२८॥

    पदार्थः

    (सिञ्चन्ति) (परि) सर्वतः (सिञ्चन्ति) (उत्) (सिञ्चन्ति) (पुनन्ति) पवित्रीभवन्ति (च) (सुरायै) सोमाय (बभ्वै्र) बलधारकाय (मदे) आनन्दाय (किन्त्वः) किमसौ (वदति) (किन्त्वः) किमन्यः॥२८॥

    भावार्थः

    येऽन्नादीनि पवित्रीकृत्य संस्कृत्योत्तमरसैः परिषिच्य युक्ताहारविहारेण भुञ्जते, ते बहुसुखं लभन्ते। यो मूढतयैवं नाचरति, स बलबुद्धिहीनः सततं दुःखं भुङ्क्ते॥२८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों के विषय में शरीरसम्बन्धी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (बभ्वै्र) बल के धारण करनेहारे (सुरायै) सोम वा (मदे) आनन्द के लिये महौषधियों के रस को (सिञ्चन्ति) जाठराग्नि में सींचते सेवन करते (परि, सिञ्चन्ति) सब ओर से पीते (उत्सिञ्चन्ति) उत्कृष्टता से ग्रहण करते (च) और (पुनन्ति) पवित्र होते हैं, वे शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होते हैं और जो (किन्त्वः) क्या वह (किन्त्वः) क्या और ऐसा (वदति) कहता है, वह कुछ भी नहीं पाता है॥२८॥

    भावार्थ

    जो अन्नादि को पवित्र और संस्कार कर उत्तम रसों से युक्त करके युक्त आहार-विहार से खाते पीते हैं, वे बहुत सुख को प्राप्त होते हैं, जो मूढ़ता से ऐसा नहीं करता, वह बलबुद्धिहीन हो निरन्तर दुःख को भोगता है॥२८॥

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    विषय

    दानशील उदार राजा का वर्णन ।

    भावार्थ

    दानशील राजा का वर्णन । प्रजाजन (सिञ्चन्ति ) राजा को अभिषेक करते हैं, ( परि षिञ्चन्ति ) सब ओर से आये प्रजाजन उसका अभिषेक करते हैं, (उत्सिञ्चति ) उसको उत्तम पद पर अभिषिक्त करते हैं और उसको (सुरायै ) सुखपूर्वक देने योग्य या उत्तम भोगने योग्य, ( बभ्रुवै ) सब के भरण पोषण करने वाली राज्यलक्ष्मी की प्राप्ति के लिये ( पुनन्ति ) पवित्र करते हैं, जिससे राजा राजपद पाकर भी पाप व्यसनों में न फंसे, वह भी ( मदे ) लक्ष्मी की प्राप्ति के सुख में तृप्त होकर सबको ( वदति) कहता है (किंत्वः किंत्वः) हे प्रजाजने ! तुझे क्या चाहिये ? तुझे क्या चाहिये ? तुझे क्या कष्ट है, तुझे क्या दुःख है ? वह राज्यलक्ष्मी पाकर दरिद्रों को दुःखितों का कष्ट पूछा करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोम इन्द्रो वा देवता । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    किन्त्वः

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार सोम की रक्षा करनेवाले व्यक्ति इस सोम को (सिञ्चन्ति) = शरीर में ही सिक्त करते हैं, (परिषिञ्चन्ति) = शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्गों में इसे सिक्त करने के लिए यत्नशील होते हैं उत्सिञ्चन्ति = और अन्ततः इसे ऊर्ध्वगति के द्वारा मस्तिष्क की ज्ञानाग्नि में सिक्त करते हैं। अग्नि में जैसे घृत डालते हैं, उसी प्रकार ये मस्तिष्क की ज्ञानाग्नि में इस सुरक्षित सोम को समिधा के रूप में रखते हैं और उसे दीप्त करने का प्रयत्न करते । २. इस प्रकार ये व्यक्ति - ज्ञानाग्नि में सोम का सेचन करके ज्ञानवृद्धि के द्वारा (पुनन्ति च) = अपने को पवित्र करते हैं । ३. इस ज्ञान के द्वारा अपने को पवित्र करके वे (सुरायै) = [सुर् to shine] चमकने के लिए होते हैं, ज्ञान की दीप्ति से मनुष्य क्यों न चमकेगा ? क्षात्रबल से ब्रह्मबल की दीप्ति कहीं अधिक है। चमकने के साथ यह (बभ्रुवै) = उत्तम भरण व पोषण के लिए होता है। मस्तिष्क में 'ब्रह्म' [ज्ञान] है तो इसके शरीर में 'क्षत्र' [बल] होता है। ज्ञान से वासनाओं के विनाश के कारण ही शरीर में शक्ति सुरक्षित रहती है। ४. इस प्रकार ज्ञान व शक्ति होने पर इसके जीवन में एक विशेष उल्लास होता है और (मदे) = उस उल्लास के होने पर यह अपने को ही प्रेरणा-सी देते हुए (वदति) = कहता है कि (किन्त्वः) = 'कस्य त्वम्' आज तू उस आनन्दमय प्रजापति परमात्मा का बना है। उस (कः) = 'अनिर्वचनीय परमात्मा' का बनने के कारण ही तेरा नाम (किन्त्वः) = इस प्रकार हो गया है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सोम को शरीर में सुरक्षित करें, अङ्ग-प्रत्यङ्ग में व्यापक रक्खें, उसकी ऊर्ध्वगति करें। इससे हम अपने जीवनों को पवित्र बनाएँ। ज्ञान की दीप्ति व शरीर का ठीक पोषण होने पर जो एक विशेष उल्लास प्राप्त होता है, उसे प्राप्त कर लेने पर हम अपने लिए कह सकेंगे कि 'तू आज उस आनन्दमय अनिर्वचनीय महिमावाले प्रभु का हो गया है', तेरा नाम ही 'किन्त्व' प्रसिद्ध हुआ है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे लोक अन्न संस्कारित करून शुद्ध करतात व रसयुक्त आहार, विहार करतात ते अत्यंत सुखी होतात. जे मूढ लोक असे करत नाहीत ते बल व बुद्धीने हीन बनून सतत दुःख भोगतात.

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    विषय

    आता पुढील मंत्रात विद्वानांविषयी व शरीराविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जो माणूस (बभ्र्वै) बळ प्राप्तीसाठी (सुरायै) सोम औषधी आणि (मदे) आनन्ददायक अन्य महौषधीचा रस (सिञ्चन्ति) जाठराग्नीवृद्धीसाठी सेवन करतात (परि, सिञ्चन्ति) सर्व प्रकारे वा विविध रूपाने त्या रसांचे पान करतात (रसांचे वेगवेगळे प्रकार तयार करतात आणि (उत्सिञ्चन्ति) उत्तमरूपाने सेवन करतात व अशा प्रकारे (पुनन्ति) पवित्र होतात, तेच लोक शारीरिक व आत्मिक शक्ती प्राप्त करतात. या उलट जे लोक (औषधीबद्दल) (किन्त्वः) ‘हे काय आहे? ह्याने काय होणार आहे?` अथवा (किन्त्वः) ‘ह्याने काय होणार आहे?` असे (वदन्ति) म्हणतात (म्हणजे औषधीविषयी अविश्वास करतात वा व्यर्थ नाना शंका करीत बसतात) ती शंकेखोर माणसें काही प्राप्त करू शकत नाहीत. (औषधी सेवना सोबत त्यावर आणि वैद्यावर विश्वास ठेवणे आवश्यक आहे) ॥28॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक अन्न (औषधी ) आदी पदार्थ स्वच्छ करून आणि सुसंस्कारित करून, त्यामधे उत्तम (पुष्टिकर स्वादिष्ट) रस मिसळून त्या पदार्थांचे सेवन करतात, आहार-विहार व खान-पान व्यवस्थित ठेवतात, ते पुष्कळ सुख मिळवितात. जो अज्ञानी माणूस असे करीत नाही. (अस्वच्छ, शिळे आदी पदार्थ खातात-पितात, ते बळ, बुद्धि गमावून बसतात आणि नेहमी दुःखातच निमग्न राहतात. ॥28॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Those who aspire after power, for delight pour in the stomach the sap of medicines, drink it, receive it excellently, and purify themselves, strengthen their body and soul. He who says What is this, What is that, gains nothing.

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    Meaning

    Those who take the shower of bliss in soma, life divine, merge wholly, purge and raise themselves, and purify their soul with the nectar for the sake of vitality, dignity and ecstasy of living, they are the immortals. ‘So what?’ says the sceptic and ends up in the doubt.

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    Translation

    They pour it (into vessels); they mix it thoroughly; they pour it into jugs; they strain it. In the ecstasy of brown-red fermented drink, the aspirant exclaims : "what a thing you are ! What a thing you are!" (1)

    Notes

    Sincanti, they pour. Kim tvah, what a thing your are!

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বিদ্বদ্বিষয়ে শারীরিকবিষয়মাহ ॥
    এখন বিদ্বান্দের বিষয়ে শরীরসম্বন্ধীয় বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যাহারা (বভ্রূবৈ) বলের ধারণকারী (সুরায়ৈ) সোম বা (মদে) আনন্দ হেতু মহৌষধি সমূহের রসকে (সিঞ্চন্তি) জঠরাগ্নিতে সিঞ্চন করে সেবন করে (পরি, সিঞ্চন্তি) সব দিক দিয়া পান করে (উৎসিঞ্চন্তি) উৎকৃষ্টতাপূর্বক গ্রহণ করে (চ) এবং (পুনন্তি) পবিত্র হয়, তাহারা শরীর ও আত্মার বলকে প্রাপ্ত হয় এবং যাহারা (কিন্ত্বঃ) তাহারা কী (কিন্ত্বঃ) কী আর এমন (বদতি) বলে তাহারা কিছুই পায় না ॥ ২৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যাহারা অন্নাদিকে পবিত্র ও সংস্কার করিয়া উত্তম রস দ্বারা যুক্ত করিয়া যুক্ত আহার-বিহার পূর্বক পানাহার করে তাহারা বহু সুখকে প্রাপ্ত হয় । যাহারা মূঢ়তা পূর্বক এমন করে না তাহারা বলবুদ্ধিহীন হইয়া নিরন্তর দুঃখ ভোগ করে ॥ ২৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সি॒ঞ্চন্তি॒ পরি॑ ষিঞ্চ॒ন্ত্যুৎসি॑ঞ্চন্তি পু॒নন্তি॑ চ ।
    সুরা॑য়ৈ ব॒ভ্ব্রৈ মদে॑ কি॒ন্ত্বো ব॑দতি কি॒ন্ত্বঃ ॥ ২৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সিঞ্চন্তীত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ভুরিগুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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